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यहां लुप्त होने से बचाई गर्इ धान की सैकड़ों पारंपरिक किस्में, जानिए कैसे

पारंपरिक खेती और बीजों के संरक्षण को लेकर कार्य कर रहे हेंवलघाटी के बीज बचाओ आंदोलन ने धान की सैकड़ों पारंपरिक किस्मों को लुप्त होने से बचाया है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Thu, 29 Nov 2018 04:56 PM (IST)Updated: Thu, 29 Nov 2018 08:29 PM (IST)
यहां लुप्त होने से बचाई गर्इ धान की सैकड़ों पारंपरिक किस्में, जानिए कैसे

देहरादून, जेएनएन: टिहरी जिले के चंबा में पारंपरिक खेती और बीजों के संरक्षण को लेकर कार्य कर रहे हेंवलघाटी के बीज बचाओ आंदोलन ने धान की सैकड़ों पारंपरिक किस्मों को लुप्त होने से बचाया है। संस्था के इस काम से उन काश्तकारों का फायदा हो रहा है, जो पारंपरिक किस्में उगाना चाह रहे हैं। 

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पिछले ढाई दशक से यह संस्था बीजों को संरक्षण देने का काम कर रही है। आज धान की तीन सौ से अधिक किस्में और उनकी जानकारी संस्था के पास है। संस्था यह बीज उन किसानों को दे रही है, जो पारंपरिक किस्में उगाना चाह रहे हैं। एक समय था जब हरित क्रांति के बाद लोगों ने वैज्ञानिकों की विकसित धान की प्रजातियां उगानी शुरू कर दी थी और पारंपरिक किस्मों से मुंह मोड़ लिया था। 

ऐसे में बीज बचाओ आंदोलन ने एक दशक पूर्व लोगों को जागरूक करना शुरू किया कि वे पारंपरिक किस्मों को उगाना न छोड़ें। पारंपरिक किस्मों का अपना अलग महत्व है। उनकी कई विशेषताएं हैं। इसके लिए आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों की पैदल यात्राएं की और धान की प्रजातियों का संकलन किया। दूरस्थ गांव में जहां लोग पारंपरिक किस्में उगा रहे थे, उनसे बीज लेकर उनका संग्रह किया। जिन किसानों के पास पारंपरिक धान की किस्में नहीं थी, उन्हें आंदोलन बीज उपलब्ध करा रहा है। 

आंदोलन का उद्देश्य और बीजों का महत्व 

बीज बचाओ आंदोलन का मानना है कि किसी भी फसल के बीज प्रकृति की देन हैं, जिसे किसान पीढ़ियों से उगाते आ रहे हैं। धान की पारंपरिक किस्में वैज्ञानिकों की विकसित नई किस्मों से बेहतर हैं। उनमें सूखा झेलने की क्षमता है। उनमें औषधीय गुण हैं और उनका स्वाद अच्छा है। इसलिए उनका अलग महत्व है और किसानों के पास इस तरह के बीज होने चाहिए। इसी उद्देश्य व महत्व को लेकर आंदोलन पारंपरिक बीजों के संरक्षण का कार्य कर रहा है। 

धान की कुछ पारंपरिक किस्में 

हंसराज, कांगुड़ी, चैनाचार, रिख्वा, गरूड़ा, बासमती, लाल धान, थापाचिन्नी, बंक्वा, कलौ, बाड़ाहटी, झुमक्या, लुआकाट, लालमती, नागमती,  घ्यासू, झैल्डू, बंग्वै साकेत आदि प्रमुख प्रजातियां हैं।   

वैज्ञानिक डॉ. राजेश बिजल्वाण ने बताया कि पारंपरिक किस्मों के बीजों की अपनी विशेषता रही है। किसान पीढ़ी दर पीढ़ी इसे उगाते आ रहे हैं। पारंपरिक बीज स्थानीय जलवायु के अनुसार उगते हैं और उनका स्वाद अच्छा होता है। धान की पारंपरिक किस्में औषधीय गुणों से भरपूर हैं, इन्हें किसानों को उगाना नहीं छोड़ना चाहिए। 

सहायक कृषि अधिकारी डीपी सेमल्टी ने बताया कि धान की पारंपरिक किस्में सबसे अच्छी होती हैं और उनका स्वाद और चारा अच्छा होता है। बीज बचाओ आंदोलन पारंपरिक बीजों के संरक्षण का कार्य कर रहा है। जितनी किस्में आंदोलन के पास है, उतनी किसी दूसरे के पास नहीं हैं। हमें पारंपरिक बीजों का संरक्षण करना चाहिए और उन्हें उगाना भी चाहिए। 

बीज बचाओ आंदोलन के संयोजक विजय जड़धारी बताते हैं कि उन्होंने विभिन्न जगह से धान की पारंपरिक बीजों का संकलन किया है। दूरस्थ के गांव में ही बीज मिले। सड़क के नजदीकी गांव के लोग इन्हें उगाना छोड़ चुके थे, लेकिन अब हम उन्हें बीज उपलब्ध करा रहे हैं। खेतों का महत्व तभी है, जब बीज हैं और बीज किसानों के पास पहले की तरह होने चाहिए। बीज खेतों में ही जिंदा रह सकते हैं। 

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