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अफसरी छोड़ बंजर खेतों को किया हरा-भरा, 82 साल की उम्र में खुद को बताया नौजवान

कल्जीखाल ब्लॉक के सांगुड़ा निवासी प्रगतिशील काश्तकार विद्यादत्त शर्मा ने 1965 में भूलेख अधिकारी के पद को छोड़ स्वावलंबन की बुनियाद तैयार की।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 25 Nov 2018 08:20 PM (IST)Updated: Mon, 26 Nov 2018 10:03 AM (IST)
अफसरी छोड़ बंजर खेतों को किया हरा-भरा, 82 साल की उम्र में खुद को बताया नौजवान
अफसरी छोड़ बंजर खेतों को किया हरा-भरा, 82 साल की उम्र में खुद को बताया नौजवान

सतपुली, गणेश काला। 'उत्तम खेती मध्यम बान, निषिद्ध चाकरी भीख निदान, जो हल जोते खेती बाकी और नहीं तो जाकी ताकी।' कवि घाघ की उक्त सूक्ति को चरितार्थ करते हुए छह दशक पहले सरकारी अफसरी छोड़ स्वावलंबन की अलख जगाने घर लौटे विद्यादत्त शर्मा।

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82 साल की उम्र में खुद को नौजवान बताने वाले इस शख्स ने तमाम बाधाओं को पार कर पहाड़ में काश्तकारी के तौर तरीकों को नित नए आयाम दिए हैं। आज जहां चहुंओर पानी बचाने के लिए आवाजें उठ रही हैं। विद्यादत्त शर्मा ने चार दशक पूर्व ही एक लाख लीटर का वर्षा जल संग्रह टैंक का निर्माण कर सूखी जमीन को हरियाली की सौगात देने की मिसाल भी पेश की।

मौजूदा समय में पहाड़ के युवा नौकरी की चाहत के चलते जहां बड़ी संख्या में पलायन कर शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, वहीं पौड़ी जनपद के कल्जीखाल ब्लॉक के सांगुड़ा निवासी प्रगतिशील काश्तकार विद्यादत्त शर्मा ने 1965 में भूलेख अधिकारी के पद को छोड़ स्वावलंबन की बुनियाद तैयार कर दी थी। गांव लौटे तो बिखरी जोत को एकत्र कर दो हेक्टेयर का चक बनाकर पिता के नाम से मोतीबाग नाम देकर उसे ही कर्मभूमि बना डाला।

गांव में पानी की कमी थी, तो चार दशक पूर्व माता के नाम पर एक लाख लीटर का सुखदेई वर्षाजल संग्रह टैंक का निर्माण कर सूखी जमीन को हराभरा रखने का अनूठा प्रयास कर डाला। खुद को आज भी नौजवान बताने वाले शर्मा आज भी खुद हल जोतने के साथ ही अकेले के दम पर बागवानी के साथ सब्जी उत्पादन करते हैं। उनके बाग में उन्नत प्रजाति के आड़ू, पुलम, माल्टा, नाशपाती की मिठास है।

मौनपालन से लेकर अन्य साग भाजी का बिना रासायनिक खादों से उत्पादन कर उन्होंने चक्रीय खेती को प्रोत्साहित किया है। गांव से तीस किलोमीटर दूर पौड़ी, सतपुली में लोग उनके मोतीबाग के उत्पादों का बेसब्री से इंतजार करते हैं।

जीवनसाथी के असमय स्वर्गवासी हो जाने के बाद से गांव में अकेले ही रह रहे शर्मा की उन्नत खेती-किसानी का जलवा जिले ही नहीं उत्तराखंड से बाहर भी है। उप्र और उत्तराखंड सरकारों के अलावा कई नामी संस्थाओं ने इस कर्मयोगी को सम्मानित कर उनकी खेती किसानी के फलसफे का मान बढ़ाया है।

23 किलो का मूला उगाकर बनाया रिकॉर्ड 

छह दशक से भी अधिक समय से खेती के तौर तरीकों में विविध प्रयोग कर रहे विद्यादत्त शर्मा ने पिछले साल 23.5 किग्रा का मूला उगाकर कृषि वैज्ञानिकों को भी भौंचक कर दिया था। 12 किग्रा की गोभी के अलावा दो सौ ग्राम तक के आड़ू उनकी उपलब्धियों में शामिल है। क्षेत्र में पेड़-पौधों से बतियाने वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध शर्मा युवाओं को खेती से जुड़कर स्वावलंबन की अपील करते हैं।

लिख चुके हैं कई किताबें

खेती-किसानी और रोजगार के  लिए पलायन पर शर्मा अब तक एक दर्जन पुस्तकें भी लिख चुके हैं। उनकी कलम सरकारी सिस्टम के सताए काश्तकारों की पीड़ा से लेकर नीतिगत खामियों को बेधड़क उजागर करती है। 

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