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पहाड़ी दालों का जवाब नहीं, स्वादिष्ट होने के साथ ही औषधीय गुणों से भरपूर

उत्तराखंडी दालें जैविक होने के साथ स्वास्थ्य के लिहाज से भी बेहद लाभदायी हैं। इनकी खेती गढ़वाल-कुमाऊं के पर्वतीय इलाकों में की जाती है।

By TaniskEdited By: Published: Wed, 28 Nov 2018 09:28 PM (IST)Updated: Wed, 28 Nov 2018 09:28 PM (IST)
पहाड़ी दालों का जवाब नहीं, स्वादिष्ट होने के साथ ही औषधीय गुणों से भरपूर
पहाड़ी दालों का जवाब नहीं, स्वादिष्ट होने के साथ ही औषधीय गुणों से भरपूर

देहरादून, दीपिका नेगी। उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं में ही नहीं, यहां के खान-पान में भी विविधता का समावेश है। पौष्टिक तत्वों से भरपूर उत्तराखंडी खान-पान में मोटी दालों को विशेष स्थान मिला हुआ है। यहां होने वाली दालें राजमा, गहथ (कुलथ), उड़द, तोर, लोबिया, काले भट, नौरंगी (रयांस), सफेद छेमी आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं और इन्हें मौसम के हिसाब से उपयोग में लाया जाता है। 

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खास बात यह कि उत्तराखंडी दालें जैविक होने के साथ स्वास्थ्य के लिहाज से भी बेहद लाभदायी हैं। इनकी खेती गढ़वाल-कुमाऊं के पर्वतीय इलाकों में की जाती है। हालांकि अब कई संस्थाओं और संगठनों के माध्यम से इन्हें बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है। जिससे काश्तकारों को इनका अच्छा मूल्य मिल सके और लोग पारंपरिक खेती के प्रति भी आकर्षित हों। 

औषधीय गुणों से भरपूर हैं पहाड़ी दालें 

पोषण से लबरेज है गहथ 

 

हल्के भूरे रंग की गहथ पहाड़ की औषधीय गुण वाली प्रमुख दाल है। अन्य दालों के मुकाबले इसमें रेशा आधिक रहता है इसलिए पचने में आसान रहती है। जाड़े में लोग इसकी  गथ्वाणी खाते हैं, जिससे ठंड पास नहीं फटकती। इसके साथ ही इससे फांणु, पटुंगी, भरवा परांठे, खिचड़ी आदि स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं। यह गुर्दे की पथरी में बेहद कारगर होती है। इसकी कीमत 140 रुपये प्रति किग्रा है। कहा ये भी जाता है कि जब पुराने जमाने में जब डायनामाइट का चलन पहाड़ों में ज्यादा नहीं हुआ था तब लोग इसका उपयोग खेतों के पत्थर तोड़ने में करते थे। रात-रात पत्थर के नीचे आग जलाकर रखते थे और सुबह-सुबह गरम पत्थर पर गथ्वाणी डालते थे तो वह दरक जाता था। खास बात यह है कि गहत ऊबड़-खाबड़ और पथरीली जमीन में अच्छा होता है और बाजार में यह बासमती के बराबर दोमों में बिकता है। 

तुअर का सूप पीने से सर्दी होती है दूर 

हरे और भूरे रंग वाली तोर या तुअर अरहर की एक प्रजाति है, जो मैदानी अरहर से बिल्कुल अलग है। पहाड़ी तोर का दाना छोटा होता है, जिसका शोरबा या सूप बनाकर पीने से सर्दी दूर होती है। यह 240 रुपये प्रति किग्रा की कीमत में बाजार में बिक रही है। 

नौरंगी दालें भी आकर्षण का केंद्र 

विभिन्न आकर्षक नौ रंगों में उगने वाली नौरंगी की दालें बेहद सुपाच्य होती है। इसे रैस, रयांस, तित्रया, झिलंगा भी कहते हैं। यह 100 रुपये प्रति किग्रा की कीमत में बाजार में उपलब्ध हैं। इसका स्वाद लाजवाब होता है। जो इसे एकबार खा लेता है कभी भूल नहीं पाता। 

भट(सोयाबीन) की छह प्रजातियों का लाजवाब स्वाद 

उत्तराखंड में काले, भूरे और सफेद रंग के भट की छह प्रजातियां मिलती हैं। काले भट में भरपूर मात्रा में प्रोटीन और ओमेगा-3 पाया जाता है। इससे बनने वाला चुड़कानी व डुबके बेहद स्वादिष्ट होते हैं। भट की कीमत 100 रुपये प्रति किग्रा है। 

उड़द के पकौड़े और चैंसू हैं मशहूर 

पहाड़ी उड़द के पकौड़े और चैसूं का जायका बेहद लजीज होता है। बासमती और रानी पोखरी इसकी लोकप्रिय प्रजातियां हैं। यह 100 रुपये प्रति किग्रा के हिसाब से बाजार में बिक रही है। 

मुनस्यारी का राजमा देश की सर्वोत्तम किस्म 

उत्तराखंड में राजमा को छेमी के नाम से जाना जाता है। हर्षिल, चकराता, जोशीमठ और मुन्स्यारी में होने वाली राजमा पूरे देश में सर्वोत्तम किस्म की मानी जाती है। पहाड़ की राजमा आसानी से पकने वाली और स्वाद में उत्तम होती है। इसकी तासीर गर्म होती है। इसकी कीमत 190 रुपये प्रति किग्रा से 220 रुपये प्रति किग्रा है। 

एंटी आक्सीडेंट है लोबिया 

लोबिया या सुंठा की दाल आमतौर पर रोजाना घरों में बनाई जाती है। हल्के पीले और सफेद रंग की लोबिया में अन्य दालों के मुकाबले फाइबर की मात्रा अधिक होती है। लोबिया में एंटी आक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं। यह शरीर में लगने वाली बीमारियों से बचाता हैं। यह 100 रुपये प्रति किग्रा की कीमत में बाजार में बिक रही है। 

दालों में पौषणमान प्रति ग्राम 

 दालें  जल  प्रोटीन वसा  कार्बोज   फाइबर  कैल्शियम (मि. ग्राम)  फास्फोरस (मि. ग्राम)  आयरन   ऊर्जा (कैलोरी)
 राजमा  12   22.9  1.3  60.6  -  260  410  6.8  346 
 उड़द   10.9  24  1.4  59.6  0.9  154  385  9.1 347  
 गहथ  11.8  22  0.5 57.2   5.3  287  3.11 8.4   321 
 लोबिया  13.4  24.1  1  54.5  3.8  77  414  5.9  323
 तोर  13.4  22.3  1.7  57.6  1.5  73  304  5.8  335
 भट  8.1  43.3  19.5  20.9  3.7  240  690  11.5  432

ये आंकड़े बीज बचाओ आंदोलन के सूत्रधार विजय जड़धारी की पुस्तक उत्तरखंड में पौष्टिक खानपान की संस्कृति से लिए गए हैं। 

लोगों में बढ़ रही जागरुकता 

पहाड़ी उत्पादों के विक्रेता संजय कोठियाल ने बताया कि काफी लोग अब पारंपरिक अनाजों के प्रति जागरूक हो रहे हैं। इनकी खरीददारी को लेकर भी तेजी से ग्राफ बढ़ा है। 

वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. नवीन जोशी बताते हैं कि पहाड़ी दालें सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। हाई प्रोटीन वैल्यू होने के साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती हैं। काले भट में प्रोटीन की प्रचूर मात्रा होती है। वहीं गहथ की दाल की तासीर गर्म होती है, जो गुर्दे की पथरी में बेहद फायदेमंद होती है। इसका सूप बुखार और निमोनिया आदि में लाभदायक है। 

उत्पादन को बढ़ावा देने की है जरूरत 

उत्तराखंड में कृषि के क्षेत्र में काम कर रही संस्था हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी महेंद्र सिंह कुंवर ने बताया कि पहाड़ में खेती उत्पादन कम हो रहा है। इसकी कई वजहें हैं। सरकार और यहां के स्थानीय लोगों को मिलकर इसके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए काम करने की जरूरत है। मार्केट में इनकी मांग अधिक है, लेकिन उस अनुसार इनका उत्पादन काफी कम है। बताया कि संस्था द्वारा प्रदेश के चमोली, उत्तरकाशी, देहरादून, बागेश्वर आदि जिलों में पहाड़ी अनाजों की खेती और उत्पादों को बनाने का काम किया जा रहा है। संस्था के अंतर्गत 38 संगठन काम कर रहे हैं और करीब 45000 लोग इस रोजगार जुड़े हुए हैं।


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