हिमालयन कॉन्क्लेव: उत्तराखंड ने खुद के लिए गढ़ ली नई पहचान, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड के नेतृत्व में हिमालयी हितों के संरक्षण की हिमालयन कॉन्क्लेव इस पहल ने न केवल प्रदेश सरकार बल्कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कद में भी इजाफा किया है।
देहरादून, विकास धूलिया। पहले इन्वेस्टर्स समिट और अब हिमालयन कॉन्क्लेव के सफल आयोजन ने देशभर में उत्तराखंड को एक नई पहचान दिलाई है। कहने को तो पिछले तीन-चार दशकों से हिमालयी सरोकारों के संरक्षण के साथ विकास की समन्वित सोच को लेकर विभिन्न मंचों पर आवाज उठती रही है, मगर यह पहला अवसर है जब किसी हिमालयी राज्य ने इस दिशा में धरातल पर ठोस पहल की। देश-दुनिया को पर्यावरणीय सेवाएं देने वाले हिमालयी राज्यों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है, जिसका असर इन राज्यों पर साफ तौर पर नजर भी आता है। उत्तराखंड 71 फीसद वन भूभाग वाला सूबा है और हिमालयी राज्यों में सबसे छोटी आयु वाला भी, लिहाजा उसके समक्ष दिक्कतें कुछ ज्यादा हैं। इस लिहाज से उत्तराखंड के नेतृत्व में हिमालयी हितों के संरक्षण की इस पहल ने न केवल प्रदेश सरकार, बल्कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कद में भी इजाफा किया है।
लगभग ढाई साल पहले भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति को सर्वोच्च प्राथमिकता बता उत्तराखंड में सत्ता संभालने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पिछले दस महीने के दौरान दो बड़े आयोजन के जरिये प्रदेश की नई पहचान गढ़ ली है। गत वर्ष अक्टूबर में देहरादून में तीन दिनी इन्वेस्टर्स समिट उत्तराखंड के लिहाज से खासी सफल साबित हुई और राज्य में निवेशकों ने जिस तरह रुचि प्रदर्शित की, वह अप्रत्याशित रही। अब, देश के 11 हिमालयी राज्यों को एक मंच पर लाकर उत्तराखंड ने इन राज्यों की विशेष भौगोलिक परिस्थितियों और इससे पैदा दुश्वारियों को रेखांकित करते हुए केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने की मुहिम का नेतृत्व किया, तो यह सरकार और उसके मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं।
केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही हिमालयी राज्यों की समस्याओं के निदान को तरजीह देने का संकेत दे चुके हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीमारमण के अलावा नीति आयोग और 15 वें वित्त आयोग के नुमाइंदे स्वयं हिमालयन कॉन्क्लेव में मौजूद रहे, यह इस तथ्य की तस्दीक भी करता है कि केंद्र सरकार वास्तव में हिमालयी राज्यों के समक्ष पेश आने वाली कठिनाइयों के समाधान के लिए उत्सुक है। हिमालयन कॉन्क्लेव में जिस तरह इसमें हिस्सेदारी कर रहे सभी राज्यों ने 'मसूरी संकल्प' के रूप में एक कॉमन एजेंडा तैयार कर इसे केंद्र को सौंपा, उसके साफ संकेत हैं कि भविष्य में हिमालयी राज्यों का यह फोरम केंद्र सरकार के लिए खासा महत्वपूर्ण साबित होगा। वह इसलिए, क्योंकि इसके जरिये केंद्र के समक्ष समान परिस्थितियों वाले राज्यों की समस्याओं को आसानी से और समन्वित तरीके से उठाया जा सकता है।
अब इस महत्वपूर्ण पहल का श्रेय उत्तराखंड और इसके मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को जाता है, तो इससे देश में उनका कद बढऩा लाजिमी ही कहा जाएगा। त्रिवेंद्र रावत सरकार के लिए यह आयोजन इसलिए भी बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि उत्तराखंड की देश-दुनिया में परंपरागत छवि एक धार्मिक-आध्यात्मिक प्रदेश की बनी हुई है। इस कॉन्क्लेव के सकारात्मक नतीजे इसमें बड़ा बदलाव ला सकते हैं और तब उत्तराखंड की पहचान पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले ऐसे छोटे मगर सशक्त प्रदेश के रूप में बनेगी, जो तमाम दुश्वारियों के बाद भी न केवल इनसे पार पाने में कामयाब रहा, बल्कि उसने समान भौगोलिक परिस्थितियों वाले अन्य राज्यों को भी राह दिखाई। जहां तक राजनीतिक निहितार्थ का सवाल है, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए व्यक्तिगत रूप से भी हिमालयन कॉन्क्लेव उन्हें स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
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