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किसानों को संपन्न बना रही है हर्ब्स की खेती

देहरादून जिले में डोईवाला ब्लाक के किसानों ने अब पारंपरिक कृषि की बजाए नकदी व मुनाफे वाली फसलें उगानी शुरू कर दी हैं। इनमें उनकी सबसे पसंदीदा बनी है हर्ब्स की खेती।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 26 Feb 2018 03:19 PM (IST)Updated: Sun, 04 Mar 2018 08:42 AM (IST)
किसानों को संपन्न बना रही है हर्ब्स की खेती
किसानों को संपन्न बना रही है हर्ब्स की खेती

रायवाला, ऋषिकेश [दीपक जोशी]: वर्तमान में जहां कृषि में नई तकनीकी का समावेश किया जा रहा है, वहीं किसान भी अब कृषि के तरीकों से अलग कुछ नया करने लगे हैं। देहरादून जिले में डोईवाला ब्लाक के किसानों ने अब पारंपरिक कृषि की बजाए नकदी व मुनाफे वाली फसलें उगानी शुरू कर दी हैं। इनमें उनकी सबसे पसंदीदा बनी है हर्ब्स की खेती। यहां उगाए जा रहे विभिन्न हर्ब्स का उपयोग मसाले बनाने में किया जाता है। जैविक विधि से होने वाली यह खेती किसान और पर्यावरण, दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है।

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डोईवाला ब्लॉक के छिद्दरवाला, चकजोगीवाला, साहबनगर, जोगीवालामाफी, शेरगढ़, माजरी आदि गांवों में बड़े पैमाने पर हब्र्स की खेती हो रही है। डोईवाला गांव के निकट शेरगढ़ गांव के किसान हरकिशन सिंह बताते हैं कि 'मैं 1990 से हर्ब्स की खेती कर रहा हूं। पारंपरिक फसलों के मुकाबले यह अधिक फायदेमंद है। धान-गेहूं उगाने से तो लागत भी नहीं मिल पाती।'

वह बताते हैं कि तीन से चार महीने में तैयार होने वाली इस फसल से किसानों को नकद मुनाफा होता है। चकजोगीवाला गांव की रीना नेगी भी हरकिशन से सहमत हैं। वह खुद भी बीते एक साल से हब्र्स उगा रही हैं। वह कहती हैं कि अन्य फसलों के मुकाबले हर्ब्स उत्पादन में मुनाफा अधिक है।

किसानों के अनुसार धान-गेहूं के मुकाबले इसमें चार गुना अधिक मुनाफा है। खास बात यह कि इसके लिए बाजार नहीं तलाशना पड़ता, बल्कि इससे जुड़ी फ्लैक्स फूड कंपनी खुद ही खेतों से तैयार फसल ले जाती है। यह कंपनी हब्र्स से मसाले तैयार कर विदेशों में सप्लाई करती है।

पर्यावरण के अनुकूल है खेती

फ्लैक्स फूड लिमिटेड के सहायक महाप्रबंधक विष्णु दत्त त्यागी के अनुसार हब्र्स का उत्पादन पूरी तरह जैविक विधि से किया जाता है। बीज बोने से पहले छह माह तक खेत का उपचार होता है। मृदा परीक्षण के बाद ही खेती की जाती है। खाद के रूप में हरी खाद व गोबर का ही प्रयोग होता है। जबकि, कीटनाशक के रूप में गोमूत्र अर्क का छिड़काव किया जाता है। कहने का मतलब हब्र्स उत्पादन प्राकृतिक तरीके से प्रकृति के अनुकूल किया जाता है। वह कहते हैं कि देहरादून, हरिद्वार और टिहरी में बड़े पैमाने पर हब्र्स की खेती हो रही है। जाहिर है कि किसानों को फायदा हो रहा है, तभी वे हमसे जुड़ रहे हैं।

जंगल के सटे गांवों में फायदेमंद है खेती

खेतों में जंगली जानवरों के उत्पात से परेशान किसानों के लिए हर्ब्‍स उत्पादन फायदेमंद साबित हो रहा है। दरअसल हर्ब्‍स को जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते। जबकि, धान, गेहूं, गन्ना आदि को जानवर चट कर जाते हैं।

हर साल जुड़ रहे नए किसान 

हब्र्स की खेती के फायदे को देखते हुए किसान इसे तेजी से अपना रहे हैं। हालांकि, इसके लिए सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है, लेकिन अधिक फायदे को देखते हुए किसान इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। देवेंद्र सिंह नेगी, बलराज सिंह, जगीर सिंह, हरजीत सिंह, हरकिशन, अशोक चौधरी, ताजेंद्र सिंह आदि किसान लंबे समय से हब्र्स उत्पादन से जुड़े हैं। 

यह हैं हर्ब्‍स

थाइम, पार्सले, मार्जुरोम, पुदीना, सोया व तुलसी। चार से पांच महीने अवधि की एक फसल की तीन से चार कटिंग होती है। एक कटिंग में प्रति हेक्टेयर औसतन 250 क्विंटल तक उत्पादन मिल जाता है। कंपनी इसे आठ से दस रुपये प्रति किलो के भाव से खरीद रही है।

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