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    देवभूमि में बहुरेंगे खेती-किसानी के दिन

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Fri, 02 Feb 2018 09:28 PM (IST)

    केंद्र सरकार के इस बजट में किए गए प्रावधानों से उत्तराखंड के 10 लाख से अधिक किसानों के दिन बहुरने की उम्मीद जगी है।

    देवभूमि में बहुरेंगे खेती-किसानी के दिन

    v>देहरादून, [विकास धूलिया]: 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की कोशिशों में जुटी केंद्र सरकार के इस बजट में किए गए प्रावधानों से उत्तराखंड के 10 लाख से अधिक किसानों के दिन बहुरने की उम्मीद जगी है। जैविक खेती को प्रोत्साहन दिए जाने से जहां राज्य के पर्वतीय इलाकों में परपंरागत खेती को महत्व मिलेगा, वहीं प्रमुख अन्न उत्पादक ऊधमसिंहनगर और हरिद्वार जिलों के किसानों को एमएसपी, ऑपरेशन ग्रीन्स जैसे उपायों से लाभ मिलेगा। यही नहीं, किसानों को कृषि उत्पाद का उचित दाम मिले, इसके लिए ग्रामीण कृषि बाजार और राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) से मंडियों के जुड़ाव अहम भूमिका निभाएगा।
    उत्तराखंड की कृषि व्यवस्था पर रोशनी डालें तो यह मैदान, पहाड़ और घाटी वाले क्षेत्रों में पसरी है। राज्य के 13 जिलों में 10 विशुद्ध रूप से पहाड़ी हैं, जबकि एक आंशिक और दो जिले पूरी तरह मैदानी स्वरूप वाले हैं। मौसम की मार, पलायन, वन्यजीवों का खौफ, सिंचाई साधनों का अभाव समेत अन्य कारणों से पर्वतीय इलाकों में खेती सिमटी है तो मैदानी क्षेत्रों में शहरीकरण की मार पड़ी है। 
    खुद सरकार भी मानती है कि राज्य गठन के बाद पिछले 17 सालों में करीब 70 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर में तब्दील हुई है, जबकि गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ऐसी भूमि एक लाख हेक्टेयर से अधिक है। हालांकि, मौजूदा राज्य सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, लेकिन अब केंद्रीय बजट में हुए प्रावधानों से इसमें तेजी आएगी। परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत केंद्र सरकार 1500 करोड़ की मंजूरी दे चुकी है। इससे 10 हजार क्लस्टरों में परंपरागत जैविक खेती होनी है। आम बजट में भी जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कही गई है। जाहिर है कि इससे पर्वतीय जिलों, जहां पहले से ही जैविक खेती हो रही है, को संबल मिलेगा।
    ग्रामीण कृषि बाजारों को तवज्जो से पहाड़ और मैदानी क्षेत्र दोनों के किसानों को जहां उपज के अच्छे दाम मिलेंगे, वहीं लघु एवं मझौले किसानों को उत्पाद मंडी तक ले जाने के झंझट से मुक्ति मिलेगी। प्रमुख अन्न उत्पादक जिलों के किसानों को फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ ही उनके ई-नाम से जुड़ने पर उपज के अच्छे दाम मिल सकेंगे। यही नहीं, जल्द नष्ट होने वाली उपज की कीमतों में उतार-चढ़ाव की समस्या से निबटने को ऑपरेशन ग्रीन्स का फंड किसान व उपभोक्ता दोनों के लिए लाभकारी साबित हेागा।
    सगंध खेती की बदलेगी तस्वीर
    प्रदेश में सगंध पादपों की खेती भी किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है। 740 गांवों में 109 क्लस्टर के सात हजार हेक्टेयर में 18 हजार किसान इससे जुड़े हैं। वार्षिक टर्न ओवर है 70 लाख। अब जबकि बजट में अत्यंत विशिष्ट औषध एवं सगंध पौधों की संगठित खेती पर जोर देने के साथ ही इसके लिए दो सौ करोड़ की राशि का आवंटन होने से उत्तराखंड की उम्मीदें भी बढ़ी हैं। ऐसे में यहां भी सगंध खेती में इजाफा होने की उम्मीद जगी है।
    खेतों तक पहुंचेगा पानी
    राज्य के मैदानी जिलों में तो सिंचाई सुविधा उपलब्ध है, लेकिन पहाड़ी जिलों में यह पसर नहीं पाई है। अभी भी पहाड़ में केवल 45 हजार हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा है और वह भी नाममात्र को। अब प्रधानमंत्री कृषि योजना में सिंचाई से वंचित 96 जिलों के लिए 2600 करोड़ के आवंटन से उत्तराखंड के किसानों को भी आस जगी है, अब उनके खेतों तक भी सिंचाई के लिए पानी पहुंच सकेगा। 

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