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देहरादून का राजपुर, कभी हुआ करती थी एक संपन्न व्यापारिक बस्ती

देहरादून से मसूरी के लिए मोटर मार्ग नहीं बना था तब शहर के उत्तर में 11 किमी की दूरी पर बसा राजपुर गांव एक संपन्न व्यापारिक बस्ती हुआ करता था।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 28 Dec 2019 05:07 PM (IST)Updated: Sat, 28 Dec 2019 05:07 PM (IST)
देहरादून का राजपुर, कभी हुआ करती थी एक संपन्न व्यापारिक बस्ती
देहरादून का राजपुर, कभी हुआ करती थी एक संपन्न व्यापारिक बस्ती

देहरादून, जेएनएन। जब देहरादून से मसूरी के लिए मोटर मार्ग नहीं बना था, तब शहर के उत्तर में 11 किमी की दूरी पर बसा राजपुर गांव एक संपन्न व्यापारिक बस्ती हुआ करता था। उस दौर में राजपुर गांव ही देहरादून को जौनसार-बावर, जौनपुर और रवाईं क्षेत्र से जोड़ता था और मसूरी की पैदल यात्रा भी यहीं से शुरू होती थी। तब राजपुर में वह सभी सुविधाएं उपलब्ध थीं, जो एक छोटे नगर में होती हैं। 

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यहां प्रार्थना स्थल के अलावा रात्रि विश्राम के लिए एजेंसी होटल, प्रिंस ऑफ वेल्स और कैलेडोनिया होटल मौजूद थे। लेकिन, मसूरी के लिए मोटर मार्ग बनने पर राजपुर की अहमियत खोती चली गई। 

सामुदायिक विकास मंत्रालय के ट्रेनर्स ट्रेनिंग सेंटर (जो अब हैदराबाद में हैं) और को-ऑपरेटिव ट्रेनिंग सेंटर जैसे केंद्रों की स्थापना से जो नवजीवन राजपुर को न मिल सका, बाद में वह इसे तिब्बती शरणार्थियों के बसने से प्राप्त हुआ। हालांकि, वर्तमान में राजपुर भी देहरादून की तरह बहुमंजिली इमारतों का शहर बन चुका है। धीरे-धीरे यहां से भी जंगल गुम हो रहे हैं और बदरंग होती जा रही है इस जन्नत की फिजा। 

राजपुर की सुंदरता से अभिभूत रहीं विजय लक्ष्मी पंडित 

संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष रहीं विजय लक्ष्मी पंडित ने जीवन का अंतिम समय राजपुर में ही बिताया। वह लगभग एक दशक तक राजपुर में रहीं। प्रकृति की गोद में बसे इस गांव की सुंदरता से अभिभूत होकर एक बार उन्होंने कहा था, 'राजपुर में कुछ जादू है, जिसका वशीकरण जैसा प्रभाव डालता है। जब बरामदे में बैठे-बैठे मैं उस ज्योत्सना को देखती हूं, जो पहाड़ों की रेखाओं को उभारकर उन्हें परीलोक जैसा रहस्यमयी एवं मनमोहक बना देती है, तो मैं वह सब भूल जाती हूं, जो राजपुर खो चुका है।'

विरोध के कारण नहीं बिछ पाई थी रेल लाइन

राजपुर स्थिति ढाक पट्टी कभी एक आराम स्थल के रूप में विकसित थी। आवागमन के लिए यह मसूरी का प्रवेश द्वार भी थी। यह मार्ग राजपुर, शहंशाही, झड़ीपानी व बार्लोगंज होते हुए किंक्रेग पहुंचता था। अंग्रेजों ने यहां मोटर मार्ग बनाने से पहले रेल लाइन बिछाने की योजना भी बनाई, किंतु व्यापारियों के विरोध के कारण उसे रोक देना पड़ा। 

1886 में बना था राजपुर में पुलिस थाना

पर्यटन व व्यापार की दृष्टि से यह क्षेत्र महत्वपूर्ण रहा है। इसलिए सुरक्षा प्रबंध के लिए अंग्रेजों ने राजपुर में एक पुलिस थाना बनाने का निर्णय लिया। पांच मार्च 1885 में राजपुर में थाना को स्वीकृति मिली। इसका नियंत्रण तब मेरठ जिले के बड़े थाने से होता था। राजपुर थाना निर्माण के लिए लगभग तीन बीघा जमीन उपलब्ध कराई गई और वर्ष 1886 में इसका विधिवत निर्माण आरंभ हुआ।

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इस थाने में वर्ष 1965 तक उर्दू में कार्य संपादित होता था। वर्ष 1886 के पश्चात कुछ समय तक यहां अंग्रेज भी थानाध्यक्ष पद पर रहे। वर्ष 1908 से देश की आजादी तक हबीबुल्ला, सोहबर सिंह, जमीलू रहमान व प्रेम सिंह इस थाने के भिन्न-भिन्न समय में थानेदार रहे। तब इस थाने के अंतर्गत देहरादून शहर की सीमा से लेकर मसूरी तक के पैदल मार्ग आते थे।

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