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    इनके लिए सेना एक पेशा नहीं, बल्कि परम्परा है

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sun, 11 Dec 2016 11:16 AM (IST)

    आइएमए से पास आउट 401 युवा अफसरों में इस बार भी 29 उत्तराखंड से हैं। इनमें अधिकांश ऐसे हैं, जिनके लिए सेना एक पेशा नहीं, परम्परा बन गई है।

    देहरादून, [सुकांत ममगाईं]: सैनिक बहुल उत्तराखंड में हर परिवार किसी ने किसी रूप से सेना से जुड़ा रहा है। राज्य की यह सैन्य परंपरा आजादी के पूर्व से ही सतत चल रही है। बात चाहे विक्टोरिया क्रास विजेता नायक दरबान सिंह की हो या आजादी के बाद रण में अदम्य साहस के लिए वीरता पदक जीतने वाले देवभूमि के वीर सपूत। देश रक्षा में कुछ कर गुजरने वाले जांबाजों का यहां की माटी से गहरा नाता रहा है। आइएमए से पास आउट 401 युवा अफसरों में इस बार भी 29 उत्तराखंड से हैं। इनमें अधिकांश ऐसे हैं, जिनके लिए सेना एक पेशा नहीं, परम्परा बन गई है।

    रुद्रप्रयाग के धारकोट इलाके के अनूप भट्ट के मन में वर्दी की ललक पिता को देख कर जगी। पिता हरि प्रसाद भट्ट नौसेना में सीपीओआर (स्पेशल) के पद पर कार्यरत हैं। उनकी भी इच्छा थी कि बेटा फौज में अफसर बने। अनूप ने अपनी ख्वाहिश और पिता के सपने को पूरा कर दिखाया। रायपुर के रांझावाला निवासी भानु डंडरियाल भी पिता के नक्शे कदम पर चल निकले हैं। न सिर्फ पिता कर्नल आरके डंडरियाल उनकी प्रेरणा बने, बल्कि दादा विलास डंडरियाल भी कैप्टन पद से रिटायर थे। कहने के लिए भानु ने कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, रुड़की से बीटेक किया, लेकिन घर में जो माहौल मिला उसने मन में फौजी वर्दी की ललक जगा दी थी। ऐसे में भानु ने परम्परा के पथ पर पग बढ़ा दिया।

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    इनके जीवन की अलग ही 'गणित'
    अल्मोड़ा निवासी संजय कुमार पंत दिल्ली विश्वविद्यालय में गणित के प्राध्यापक हैं। मां कीर्ति सरकारी स्कूल में गणित की प्रवक्ता। लेकिन इस सबके बीच बेटे सोम कार्तिकेय पंत ने अपनी अलग राह चुनी। दिल्ली पब्लिक स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ली और फिर एनडीए की परीक्षा दी। जिसमें उन्हें सफलता भी मिली।

    'सामान्य' नहीं ये रण 'वीर'
    छोटे-छोटे शहरों के सामान्य परिवार और देशभक्ति का अटूट जज्बा। इस दौर में जब रोजगार के असीमित अवसर हैं, ये युवा देश सेवा को समर्पित हैं। राज्य में ऐसे एकाध नहीं कई उदाहरण हैं। पंतनगर के अभिषेक बिष्ट के पिता नंदन सिंह एचएमटी से ऑपरेटर रिटायर हैं। मां दीपा बिष्ट सामान्य गृहिणी। बेहद सामान्य इस परिवार के चिराग ने फौजी वर्दी पहनकर देश रक्षा में जीवन समर्पित किया। ऐसी ही कहानी नई टिहरी के चौहान परिवार की हैं। कपड़े की दुकान चलाने वाले बुद्धि सिंह चौहान का बेटा मनोज अपने परिश्रम के बूते फौज में अफसर बन गया है।

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    मनोज 2005 में जवान भर्ती हुए थे और एसीसी के सहारे अपना सपना साकार किया। ग्राम देवली कीर्तिनगर के नरेंद्र सिंह ने भी विपरीत परिस्थितियों में अपनी अलग राह निकाली। वह वर्ष 2003 में जवान भर्ती हुए थे। लेकिन धीरे-धीरे ही सही चुनौतियों से पार पा अब अफसर बन गए हैं। छोटी सी दुकान चलाने वाले उनके पिता रामसिंह रावत का फरवरी में देहांत हो चुका है। अपनी इस उपलब्धि को वह पिता को श्रद्धांजलि के रूप में देखते हैं।

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    सैनिक स्कूल में पड़ी जोश और जज्बे नींव

    इस बार की पासिंग आउट परेड में सैनिक स्कूल के 'वीर' छाए रहे। नैनीताल निवासी हिमांशु पांडे की पढ़ाई सैनिक स्कूल घोड़ाखाल से हुई। यहीं से उस सफर की शुरुआत हुई जिस पर हिमांशु बिना रुके बढ़ते ही जा रहे हैं। पिता बीएन पांडे स्वास्थ्य विभाग में व मां ममता समाजसेवी हैं। हल्द्वानी के आयुष जोशी की भी कहानी जुदा नहीं है। वह भी सैनिक स्कूल घोड़ाखाल के पूर्व छात्र हैं। पिता लीलाधर जोशी नैनीताल दुग्ध संघ से रिटायर हैं। जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव के बीच आयुष ने अहम मुकाम हासिल किया है।

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