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उत्तराखंड में हैरान और परेशान करती है शिक्षा व्यवस्था, जानिए इसकी वजह

शिक्षा व्यवस्था हैरान और परेशान करने वाली है। विद्यालयी शिक्षा स्तर में अर्धवार्षिक परीक्षा के अलावा मासिक परीक्षा भी अनिवार्य है पर उच्च शिक्षा में अर्धवार्षिक परीक्षा भी नहीं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 15 Jan 2020 04:26 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jan 2020 08:16 PM (IST)
उत्तराखंड में हैरान और परेशान करती है शिक्षा व्यवस्था, जानिए इसकी वजह
उत्तराखंड में हैरान और परेशान करती है शिक्षा व्यवस्था, जानिए इसकी वजह

देहरादून, अशोक केडियाल। सूबे में शिक्षा व्यवस्था हैरान और परेशान करने वाली है। विद्यालयी शिक्षा स्तर में तो अर्धवार्षिक परीक्षा के अलावा मासिक परीक्षा को भी अनिवार्य कर दिया गया है, जिससे स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का उचित मूल्यांकन हो सके। वहीं, दूसरी ओर उच्च शिक्षा में सेमेस्टर सिस्टम (अर्धवार्षिक परीक्षा) को भी समाप्त कर दिया है। यानि छोटे बच्चे साल में 12 मासिक परीक्षाओं के अलावा अर्धवार्षिक और वार्षिक कुल 14 बार परीक्षा देंगे, जबकि उनके 'बड़े भाई' उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले साल में केवल एक वार्षिक परीक्षा में बैठेंगे, जबकि मूल्यांकन की जरूरत तो उच्च शिक्षा के छात्रों को है, जो पढ़ाई के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करते हैं। लेकिन 'नीति निर्धारित' करने वालों को कौन समझाए कि एक राज्य में शिक्षा की 'दो धाराएं' आखिर क्यों बह रही हैं जो एक-दूसरे की परस्पर विरोधी हैं। 

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कैंपस वाई-फाई और मोबाइल बैन 

उच्च शिक्षा महकमे ने पहले प्रदेश के सभी राजकीय और अशासकीय कॉलेजों परिसर को वाई-फाई से लैस करने की मुहिम शुरू की। प्रदेश के सबसे बड़े डीएवी कॉलेज के छात्रों को पहली बार मुफ्त वाई-फाई का लाभ उठाने का मौका मिलना शुरू हुआ था, लेकिन अब 'मंत्री महोदय' के एक फरमान ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। मंत्री जी ने मंशा जाहिर की है कि कॉलेजों में मोबाइल फोन बैन किया जाएगा। इसके लिए वह जल्द ही आदेश भी जारी करेंगे। ऐसे में कॉलेज में मोबाइल लाने पर ही प्रतिबंध होगा तो वाई-फाई किसके काम आएगा। कुछ दिनों से शांत बैठे छात्र संगठन 'मंत्री जी' के आदेश से नाखुश हैं। उन्होंने सड़कों पर उतरकर विरोध भी शुरू कर दिया है। हां इतना जरूर है कि 'मंत्री जी' के आदेश की 'आंच' फिलहाल कॉलेज शिक्षकों तक नहीं पहुंची है। शिक्षक बेहिचक कॉलेज परिसर में मोबाइल ला सकते हैं और उनका उपयोग भी कर सकते हैं। भले ही कोर्स पूरा हो या न हो।       

आदेश पर आदेश से अधिकारी कनफ्यूज   

उच्च शिक्षा विभाग में आदेश पर आदेश से अब कॉलेज और विश्वविद्यालय के अधिकारी-कर्मचारी कनफ्यूज हैं। श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय को ही ले लीजिए। यहां के प्रशासनिक अधिकारियों ने विवि में सेमेस्टर परीक्षा के लिए 28 पेजों का परीक्षा कार्यक्रम विवि की वेबसाइट पर अपलोड किया ही था कि 12 घंटे के भीतर ही नया शासनादेश मिल गया। जिसमें कहा गया कि श्रीदेव सुमन विवि से संबद्ध सभी निजी वित्तपोषित व अशासकीय कॉलेजों से स्नातक स्तर पर सेेमेस्टर सिस्टम समाप्त कर दिया गया है। 

'बेचारे' अधिकारियों को सेमेस्टर परीक्षा कार्यक्रम रद कर आगे की तैयारी करनी पड़ी। अब बीते सोमवार को विवि की शैक्षिक परिषद ने 'रोल बैक' करते हुए निजी और अशासकीय कॉलेजों से केवल बीए, बीएससी व बीकॉम में सेमेस्टर सिस्टम समाप्त करने का निर्णय लिया। यहां व्यवसायिक कोर्स में सेमेस्टर जारी रहेगा। इस तरह अधिकारी कनफ्यूज हैं कि आखिर वह करें तो क्या करें। 

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उम्मीद भरी घोषणा 

इंजीनियरिंग के क्षेत्र में छात्र-छात्राओं की साल-दर साल घटती दिलचस्पी के बीच अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की घोषणा 'नई उम्मीद' लेकर आई है। परिषद ने नए शिक्षकों के लिए आठ मॉड्यूल का प्रशिक्षण लेने के बाद ही इंजीनियरिंग का नियमित शिक्षक प्रमाण पत्र देने की घोषणा की है। ऐसा इसलिए किया गया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई की गुणवत्ता बेहतर हो सके। छात्रों में इंजीनियरिंग के प्रति दोबारा रुझान बढ़ेगा, यह उम्मीद की जा रही है। उत्तराखंड के 89 निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में इस वर्ष 65 फीसद तक सीटें रिक्त रह गई थीं। 

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यही हाल देशभर के इंजीनियरिंग कॉलेजों का है। पर अब सख्ती के बाद उम्मीद की जा रही है कि तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और देश को उच्चकोटि के इंजीनियर मिलेंगे। भले ही इसरो ने चंद्रयान तक 'उड़ान' भर ली हो, लेकिन देश का आधारभूत ढांचा तैयार करने का जिम्मा आज भी हमारे इंजीनियरों के कंधों पर हैं। रेल कोच, फ्लाइओवर, बांध से लेकर मेट्रो और गगनचुंबी इमारतें इंजीनियरों की मेहनत के ही उदाहरण हैं। 

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