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गजब! उत्तराखंड में 17 साल बाद भी नहीं बन पार्इ ईको टूरिज्म को नीति

उत्तराखंड में ईको टूरिज्म (पारिस्थितिकीय पर्यटन) के लिए अभी तक कोई नीति ही नहीं है। ये बात हैरान करने वाली जरूर है, लेकिन सच है।

By Edited By: Published: Wed, 01 Aug 2018 03:02 AM (IST)Updated: Thu, 02 Aug 2018 09:11 AM (IST)
गजब! उत्तराखंड में 17 साल बाद भी नहीं बन पार्इ ईको टूरिज्म को नीति
गजब! उत्तराखंड में 17 साल बाद भी नहीं बन पार्इ ईको टूरिज्म को नीति

देहरादून, [केदार दत्त]: बात चौंकाने वाली, मगर है सोलह आने सच। नैसर्गिक सौंदर्य और जैव विविधता के मामले में धनी 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में ईको टूरिज्म (पारिस्थितिकीय पर्यटन) के लिए अभी तक कोई नीति ही नहीं है। राज्य के पर्यटन विकास के मास्टर प्लान में प्रावधान के बावजूद नीति-नियंताओं का ध्यान इस तरफ नहीं गया है, जबकि मास्टर प्लान की अवधि 2022 में खत्म हो जाएगी। हालांकि, अब नवगठित ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग ने ईको टूरिज्म के विकास के मद्देनजर कार्ययोजना का खाका खींच रहा है, जो आने वाले दिनों में नीति की राह तैयार करेगा।

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विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में अर्थव्यवस्था के लिहाज से पर्यटन एवं तीर्थाटन सबसे महत्वपूर्ण है। इस साल चारधाम समेत अन्य धार्मिक स्थलों के साथ ही पर्यटक स्थलों की ओर जिस तरह से देशी-विदेशी श्रद्धालुओं व पर्यटकों ने उत्साह दिखाया, उसे देखते हुए अनुमान है कि इनकी संख्या दो-ढाई करोड़ तक पहुंच जाएगी। आने वाले वर्षाें में यह और बढ़ेगी। इसके मद्देनजर ही राज्य सरकार ने पर्यटन से जुड़ी कुछ गतिविधियों को उद्योग का दर्जा दिया है। हालांकि, अनियोजित व अनियंत्रित पर्यटन की चुनौती भी कम नहीं है। इसे देखते हुए प्रदेश में ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने की बात राज्य गठन के बाद से ही हो रही, मगर गंभीरता से प्रयास नहीं हो पाए।

ईको टूरिज्म के तहत वन्य जीव पर्यटन, होम स्टे, राफ्टिंग समेत अन्य गतिविधियां संचालित हो रही हैं, लेकिन इनमें करीब 60 फीसद लोगों की पसंद कार्बेट नेशनल पार्क ही है। साफ है कि दूसरे क्षेत्रों में वैसे प्रयास नहीं, हुए जिनकी दरकार है। जाहिर है कि आर्थिकी के लिहाज से अहम ईको टूरिज्म के लिए नीति की कमी खल रही है। थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो 2007 में 15 साल के लिए बने 'उत्तराखंड टूरिज्म डेवलपमेंट मास्टर प्लान' में उल्लेख है कि इको टूरिज्म के लिए नीति तैयार कर इसके अनुरूप कदम उठाए जाएंगे, लेकिन यह नीति अब तक अस्तित्व में नहीं आ पाई। यही कारण है कि नीति के अभाव में पारिस्थितिकीय पर्यटन गति नहीं पकड़ पा रहा, जबकि इसकी अपार संभावनाएं हैं। ईको टूरिज्म को महत्वपूर्ण मानते हुए ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग ने भी इस पर फोकस करने की ठानी है।

आयोग के उपाध्यक्ष डॉ.एसएस नेगी के अनुसार इको टूरिज्म के लिए आयोग प्रदेशभर के लिए कार्ययोजना तैयार कर रहा है। इसके तहत ईको टूरिज्म की स्थिति, संभावनाएं, क्षेत्र, गतिविधियां समेत अन्य बिंदुओं का गहनता से अध्ययन कर ठोस प्रारूप तैयार किया जाएगा। डॉ.नेगी कहते हैं कि ईको टूरिज्म तभी रफ्तार पकड़ पाएगा, जब इसके लिए ठोस नीति होगी। दुर्भाग्य से अभी तक नहीं बन पाई है। उन्होंने बताया कि अब आयोग की ओर से तैयार किए जाने वाले प्रारूप को सरकार को सौंपा जाएगा, जो ईको टूरिज्म की नीति बनाने की राहत आसान करेगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार जल्द ही पारिस्थितिकीय पर्यटन के विकास को नीति लाएगी।

क्या है ईको टूरिज्म

प्रकृति से बिना किसी छेड़छाड़ के पर्यटन गतिविधियां संचालित करना ही ईको टूरिज्म या पारिस्थितिकीय पर्यटन का सार है। यह दुनियाभर में पर्यटन के क्षेत्र में नया दृष्टिकोण है। इसके तहत पर्यावरण के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में पर्यटकों और स्थानीय जन की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। यही नहीं, इससे स्थानीय जनमानस के लिए रोजगार के अवसर भी सृजित होते हैं। इस लिहाज से संपूर्ण उत्तराखंड खासी संभावनाओं वाला क्षेत्र है। यहां छह नेशनल पार्क, सात अभयारण्य, चार कंजर्वेशन रिजर्व के साथ ही अनेक ऐसे ऐसे स्थल हैं, जहां ईको टूरिज्म की गतिविधियों को बढ़ावा देकर वन और जन के रिश्तों को और अधिक प्रगाढ़ किया जा सकता है।

तमाम राज्य बना चुके हैं नीति

ईको टूरिज्म के महत्व को देखते हुए देश में उत्तर प्रदेश, पंजाब, सिक्किम, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश समेत अन्य राज्यों में इसके लिए बाकायदा नीति है। हिमाचल प्रदेश में तो दो बार ईको टूरिज्म नीति में संशोधन भी किया जा चुका है।

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