धरती का तापमान दो डिग्री बढ़ा तो हिंदू-कुश हिमालय की 75 प्रतिशत बर्फ होगी गायब, आइसीसीआइ की रिपोर्ट हुआ खुलासा
अंतरराष्ट्रीय क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव (आइसीसीआइ) की रिपोर्ट ‘स्टेट आफ द क्रायोस्फीयर 2025’ के अनुसार, अगर धरती का तापमान औद्योगिक युग से दो डिग्री सेल्सियस बढ़ गया तो इस क्षेत्र की केवल 25 प्रतिशत बर्फ ही बच पाएगी। यह रिपोर्ट ब्राजील में होने वाले सीओपी-30 जलवायु सम्मेलन से ठीक पहले जारी की गई है।

सांकेतिक तस्वीर
जागरण संवाददाता, देहरादून: दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वतीय इलाकों में शामिल हिंदू-कुश हिमालय (एचकेएच) और हाई माउंटेन एशिया (एचएमए) के ग्लेशियरों के सामने अब एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। अंतरराष्ट्रीय क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव (आइसीसीआइ) की ताजा रिपोर्ट ‘स्टेट आफ द क्रायोस्फीयर 2025’ के अनुसार, अगर धरती का तापमान औद्योगिक युग से दो डिग्री सेल्सियस बढ़ गया तो इस क्षेत्र की केवल 25 प्रतिशत बर्फ ही बच पाएगी।
यह रिपोर्ट ब्राजील में होने वाले सीओपी (कांफ्रेंस आफ द पार्टीज)-30 जलवायु सम्मेलन से ठीक पहले जारी की गई है। हिंदू-कुश हिमालय और आसपास का पहाड़ी इलाका, जिसे विज्ञानी थर्ड पोल (तीसरा ध्रुव) भी कहते हैं, वह दुनिया की कुछ सबसे बड़ी नदियों जैसे-गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, यांग्त्सी और मेकान्ग को पानी देता है।
इन नदियों पर करीब दो अरब व्यक्तियों का जीवन निर्भर है। चाहे वो पीने का पानी हो, सिंचाई का काम हो या बिजली उत्पादन। जीवन की अभिन्न जरूरत इनसे जुड़ी हैं। यही कारण है कि रिपोर्ट को लेकर विज्ञानियों की चिंता साफ नजर आ रही है। क्योंकि, यदि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ा तो भी करीब 15 प्रतिशत बर्फ हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।
वहीं, तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने पर सिर्फ 25 प्रतिशत बर्फ ही बच पाएगी। यही नहीं, तापमान बढ़ोतरी से हिंदू-कुश और काराकोरम क्षेत्र में बर्फ का 40 प्रतिशत हिस्सा तक खत्म हो सकता है।
चार डिग्री की बढ़ोतरी पर समूची बर्फ होगी गायब
रिपोर्ट के अनुसार, अगर तापमान चार डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक बढ़ गया, तो साल 2100 तक लगभग सारा मौसमी हिम (स्नो) गायब हो जाएगा। जिसका मतलब यह है कि नदियों में पानी का प्रवाह असंतुलित होगा, पहले भारी बाढ़ें आएंगी और बाद में सूखे और जल-संकट की स्थिति बन जाएगी। वह समय मानव के अस्तित्व पर सीधा खतरा पैदा कर देगा।
पेरिस समझौते की शर्तों से आगे बढ़कर काम करना होगा
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2015 के पेरिस समझौते में लक्ष्य तय किया गया था कि तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना होगा। हालांकि, मौजूदा चुनौतियों के मद्देनजर अब यह नाकाफी है। क्योंकि इस लक्ष्य के बावजूद एशिया के ग्लेशियरों को बचाना मुश्किल होगा।
सदी के अंत तक तापमान में 2.5 डिग्री तक की बढ़ोतरी की चेतावनी
विज्ञानियों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की इमीशन्स गैप रिपोर्ट 2025 के अनुसार, सदी के अंत तक तापमान 2.3 से 2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की आशंका है। तब भी जब देश अपने उत्सर्जन घटाने के वादे पूरे कर लें।
30 प्रतिशत बर्फ पहले ही खो चुके ग्लेशियर
आइसीसीआइ की रिपोर्ट बताती है कि हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र के कई ग्लेशियर वर्ष 1900 के बाद से अब तक 30 प्रतिशत बर्फ पहले ही खो चुके हैं, जबकि पिछले 20 सालों में पिघलने की रफ्तार दोगुनी हो गई है। यदि दर ऐसी ही रही तो नदियों के बहाव में असंतुलन होगा, खेती और पेयजल पर असर पड़ेगा और जलविद्युत परियोजनाओं की क्षमता में कमी आएगी। रिपोर्ट में चेतावनी भी दी गई है कि यदि पहाड़ों में जो होता है, वह वहीं नहीं रुकता है तो उसका असर मैदानों और शहरों तक भी पहुंचेगा।
तापमान बढ़ोतरी से हिंदू-कुश हिमालय की बर्फ पिघलने की दशा में भारत पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। लेकिन, इसके लिए विकसित राष्ट्र अधिक जिम्मेदार हैं और उन्हें तापमान कम रखने की दिशा में बड़े कदम उठाने होंगे। क्योंकि, भारत में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत बेहद कम है और इतनी नहीं है, जिससे वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी जैसे खतरे उत्पन्न हो सकें।
-राजेंद्र डोभाल, चेयरमैन (राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, उत्तराखंड)
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