इन तीन आपदाओं से दहली थी देवभूमि, जहां ग्लेशियरों के पिघलने की स्पीड तेज वहां लगे ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन
वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने धौली गंगा बेसिन के दूनागिरी और बांगनी ग्लेशियरों पर ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन स्थापित किए हैं। इन स्टेशनों से ग्लेशियरों के पिघलने की दर, हिमपात और जलस्तर जैसे महत्वपूर्ण डेटा की निगरानी की जाएगी। यह पहल हिमालयी क्षेत्र में आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में मददगार होगी।

वर्ष 2021 की चमोली आपदा इसी धौली गंगा बेसिन से निकली थी। प्रतीकात्मक
जागरण संवाददाता, देहरादून । वर्ष 2013 की केदार आपदा के बाद वर्ष 2021 की चमोली आपदा और अब धराली आपदा ने सिस्टम के निगरानी तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े किए। क्योंकि, उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आपदा के बाद ग्लेशियरों की निगरानी के तंत्र को लेकर तमाम बातें होती हैं, लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ खास नजर नहीं आता। लेकिन, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने ग्लेशियर आधारित आपदा के लिहाज से बेहद सनवेदनशील धौली गंगा क्षेत्र को गंभीरता से लिया है। संस्थान ने यहां के दूनागिरी और बांगनी ग्लेशियर को ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (एडब्ल्यूएस) से लैस कर दिया है।
अब इस ग्लेशियर और संबंधित क्षेत्र में होने वाले प्रत्येक मौसमी बदलाव की 24 घंटे निगरानी की जा सकेगी। इन ग्लेशियर में आटोमेटिक वाटर लेवल एंड वेलोसिटी रिकार्डर भी स्थापित किए गए हैं। इन आधुनिक उपकरणों की मदद से वैज्ञानिक अब हिमालय के सबसे संवेदनशील और कठिन भौगोलिक क्षेत्रों में ग्लेशियर पिघलने की दर, हिमपात के बदलाव, जलस्तर, प्रवाह वेग और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सटीक व सतत आकलन कर सकेंगे।
इस तरह काम करेंगे आधुनिक उपकरण
आटोमेटिक वेदर स्टेशन तापमान, वर्षा, आर्द्रता, पवन वेग और सौर विकिरण जैसी जलवायवीय जानकारियां रिकार्ड करेंगे। वहीं, आटोमेटिक वाटर लेवल एंड वेलोसिटी रिकार्डर ग्लेशियरों से निकलने वाली धाराओं और झीलों में जलस्तर व प्रवाह की गति की लगातार निगरानी करेगा। इन आंकड़ों से वैज्ञानिकों को ग्लेशियर मास बैलेंस, रनआफ पैटर्न और ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड जैसी आपदाओं के जोखिम को समझने में मदद मिलेगी।
हिमालय के कठिन भूभाग में अनुसंधान को बढ़ावा
वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक अमित कुमार ने बताया कि हिमालय के उच्च हिमाच्छादित क्षेत्र ताजे जल के महत्वपूर्ण स्रोत हैं, लेकिन दुर्गम भू-आकृति और कठोर मौसम की वजह से इन पर दीर्घकालिक निगरानी बेहद चुनौतीपूर्ण रही है। अब ये स्वचालित प्रणालियां निरंतर आंकड़े उपलब्ध कराकर उस डेटा गैप को भरेंगी जो दशकों से बना हुआ था।
व्यापक निगरानी नेटवर्क की दिशा में मील का पत्थर
यह पहल वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के उस व्यापक अभियान का हिस्सा है, जिसके तहत संस्थान हिमालय के विभिन्न ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मैनुअल सिस्टम से आटोमेटेड, रियल-टाइम मानीटरिंग की दिशा में काम कर रहा है। इससे पहले, संस्थान ने भागीरथी बेसिन के ग्लेशियर क्षेत्र में दो रडार-आधारित और तीन आटो वेदर सेटशन स्थापित किए थे, ताकि ऊंचाई के अनुसार जलवायु में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सके। इसी प्रकार, काराकोरम पर्वत श्रृंखला में स्थित सियाचिन ग्लेशियर से निकलने वाली नुब्रा नदी घाटी में भी झील फटने के जोखिम और बाढ़ जोखिम की निगरानी के लिए उपकरणों का नेटवर्क स्थापित किया है।
केदारनाथ आपदा में ध्वस्त हुआ स्टेशन का अब तक विकल्प नहीं
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने वर्ष 2011 में चौराबाड़ी और डुकरानी ग्लेशियर में आटो वेदर स्टेशन स्थापित किए थे। हालांकि, चौराबाड़ी का स्टेशन वर्ष 2013 की केदार आपदा में ध्वस्त हो गया था। इसके बाद संबंधित क्षेत्र में दोबारा स्टेशन स्थापित नहीं किया जा सका। राहत ही बात रही कि डुकरानी ग्लेशियर का स्टेशन सुरक्षित बच गया था।

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