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दून ने 18 साल का लंबा सफर किया तय, फिर भी परिवहन व्यवस्था है बदहाल

प्रदेश की अस्थायी राजधानी बने 18 साल का लंबा सफर तय करने के बावजूद दून में परिवहन व्यवस्था बदहाल।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 06:34 PM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 09:09 PM (IST)
दून ने 18 साल का लंबा सफर किया तय, फिर भी परिवहन व्यवस्था है बदहाल
दून ने 18 साल का लंबा सफर किया तय, फिर भी परिवहन व्यवस्था है बदहाल

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। स्मार्ट सिटी का तमगा लगने और प्रदेश की अस्थायी राजधानी बने 18 साल का लंबा सफर तय करने के बावजूद दून में परिवहन व्यवस्था बदहाल। प्रदेश सरकार और शहर में विकास कार्यों के लिए जिम्मेदार महकमे आमजन को 'स्मार्ट सिटी' में जनसुविधाएं बेहतर होने की उम्मीद जगा रहे, मगर शहर में बदहाल सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को सुधारने की परवाह किसी को नहीं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साधनों व सड़कों की बात करें तो इन पर शहरवासी इन पर हिचखोले खा रहे हैं। बेलगाम सिटी बसें व विक्रम शहर की फिजा बिगाडऩे पर आमादा हैं। न गति पर नियंत्रण है न नियमों की परवाह। ऑटो मनमाने किराए के लिए बदनाम हैं। लेकिन, जिम्मेदारों के ख्वाब तब भी बड़े-बड़े नजर आ रहे। एमडीडीए मोनो रेल के सब्जबाग दिखा रहा तो मुख्यमंत्री साहब देहरादून से हरिद्वार तक मेट्रो ट्रेन के,जबकि काला सच यह है कि हम आजतक शहर में बसों के स्टॉपेज तय नहीं कर पाए। 

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शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट दुरुस्त करने के लिए साल 2008 में उन्हें जेएनएनयूआरएम योजना के तहत लो-फ्लोर बस दी गई थीं। इनका मकसद था यात्रियों को आरामदायक व सुविधाजनक सफर उपलब्ध कराना। सूबे में देहरादून-हरिद्वार शहर को 75-75 बसें व नैनीताल को 45 बसें मिलीं, मगर किसी भी शहर में इनका संचालन नहीं हुआ। बसें पहले डेढ़ वर्ष तक खड़ी रहीं, बाद में इन्हें रोडवेज के सुपुर्द कर दिया गया। अब बसें एक शहर से दूसरे शहर दौड़ रही हैं। खैर! शहरवासियों को लो-फ्लोर बसों में सफर तो नसीब नहीं हुआ, मगर सिटी बसों और विक्रमों में धक्के खाकर सफर जारी है। इस बीच जब दो साल पहले देहरादून का नाम स्मार्ट सिटी व अमृत सिटी के लिए चयनित हुआ तो शहरवासियों को लगा कि शायद अब मूलभूत सुविधाएं दुरुस्त होंगी। जिसमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट अहम बिंदु है। उम्मीद की जा रही कि शायद अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट में कुछ सुधार जरूर होगा, लेकिन हैरत ये कि अब तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट को लेकर कोई प्लान बना ही नहीं। 

शहर की वर्तमान तस्वीर देखें तो अंदाजा लग जाता है कि यहां कभी भी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर ध्यान नहीं दिया गया। विक्रमों में क्षमता से ज्यादा सवारी बैठ रहीं तो सिटी बसों में दरवाजों पर लटकती हुई सवारियां नजर आती हैं। कायदे-कानून का इन्हें कोई खौफ नहीं। ऑटो की बात करें तो मीटर सिस्टम के बावजूद यहां ऑटो में न मीटर लगे हैं, न चालक प्रति किलोमीटर तय किराये पर ही चलते हैं। प्रीपेड ऑटो सुविधा आइएसबीटी और रेलवे स्टेशन से शुरु जरूर की गई थी, लेकिन उसी तेजी से यह धड़ाम हो गई। 

ठेका परमिट, स्टेज कैरिज में दौड़ रहे 

विक्रमों पर परिवहन विभाग भी खासा मेहरबान रहता है। मोटल व्हीकल एक्ट के तहत विक्रम ठेका परमिट में संचालित होने चाहिए। मसलन, एक स्थान से सभी यात्री को बैठाकर एक निश्चित स्थान पर छोडऩा। इसमें वाहन का निर्धारित किमी के हिसाब से किराया तय होता है, लेकिन विक्रम यह नियम तोड़कर फुटकर सवारी लेकर चलते हैं। जहां सवारी दिखे, वहीं विक्रम रोक देते हैं और ट्रैफिक में बाधा पैदा करते हैं। इतना ही नहीं, इनमें चालक के बगल में सीट भी अवैध लगाई हुई है। जब ये फिटनेस कराने जाते हैं तो सीट निकाल देते हैं और सड़क पर उतरते ही दोबारा सीट लगा लेते हैं। तय मानक के अनुसार विक्रम छह-सात सवारी ले जा सकते हैं, लेकिन इनमें ओवरलोडिंग कर दस सवारियां बैठाई जाती हैं। परिवहन विभाग और पुलिस भी इनकी धींगामुश्ती पर नजरें फेरे रहते हैं। 

राजनीतिक दबाव रहा हावी 

पब्लिक ट्रांसपोर्ट को लेकर शहर हित पर हमेशा राजनीतिक दबाव हावी रहा। सिटी बसों के परमिट की बात हो या विक्रमों को बंद करने की। राजनीतिज्ञों ने कभी इन पर निर्णय नहीं लेने दिया। 

वर्दी न स्पीड गवर्नर 

सिटी बस, विक्रम और ऑटो में चालकों व परिचालकों के लिए नेम प्लेट के साथ वर्दी पहनना अनिवार्य है। मगर, परिवहन विभाग खामोश है। दस साल पहले सिटी बसों में गति पर नियंत्रण को स्पीड गवर्नर लगाने के फैसले पर भी अमल नहीं हुआ। 

ये हैं परिवहन सेवाओं के हालात 

सिटी बस या 'किलर बस'

-किलर बस के नाम से बदनाम सिटी बस कब-कहां-किसे कुचल दें, कहा नहीं जा सकता। 

-क्षमता से ढाई गुना अधिक सवारियां लेकर दौड़ती हैं बसें। 

-महिला और विकलांग आरक्षित सीटों पर मनचलों का कब्जा। 

-चालक-परिचालक के अलावा हेल्पर के रूप में सवार रहते हैं दो-दो मनचले 

-चौराहों और सड़कों पर सीटी बजाकर युवतियों से छेड़छाड़ करते हैं हेल्पर 

-प्रतिबंध के बावजूद बस में बजाते हैं तेज आवाज म्यूजिक सिस्टम 

विक्रमों के झुंड से पब्लिक त्रस्त 

-सड़कों पर झुंड बनाकर चलना है विक्रमों का शगल 

-तेज आवाज में म्यूजिक सिस्टम और प्रेशर हॉर्न बजाते हुए निकलते हैं 

-छह सवारियों के परमिट पर विक्रम में बैठती हैं नौ सवारियां 

-ओवरलोड होने के बावजूद सड़कों पर बेकाबू गति से दौड़ते हैं विक्रम 

-ऑटो चालक वसूलते हैं मनमाना किराया 

-आइएसबीटी और रेलवे स्टेशन पर प्रीपेड सिस्टम का नहीं करते पालन 

-अकेली महिला सवारी के साथ चालक द्वारा कई बार आए छेड़छाड़ के मामले 

शहर में सार्वजनिक परिवहन की तस्वीर 

विक्रम-794 

सिटी बस-319 

ऑटो-3000 

(ये परिवहन विभाग में पंजीकृत आंकड़े हैं लेकिन अनाधिकृत रूप से चलने वाले विक्रमों को मिलाकर कुल संख्या 1100 से ऊपर है।) 

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