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दून महिला अस्पताल अकेले ढो रहा है डिलीवरी का भार, पढ़िए पूरी खबर

महिला अस्पताल अकेले डिलीवरी का भार ढो रहा है। प्रदुरूह क्षेत्रों की महिलाएं भी यहां भर्ती मिलेंगी। यानी पहाड़ के अस्पताल इस लायक भी नहीं बन सके हैं कि सुरक्षित प्रसव करा सकें।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 26 Nov 2019 09:02 AM (IST)Updated: Tue, 26 Nov 2019 08:31 PM (IST)
दून महिला अस्पताल अकेले ढो रहा है डिलीवरी का भार, पढ़िए पूरी खबर
दून महिला अस्पताल अकेले ढो रहा है डिलीवरी का भार, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। प्रदेश में सुरक्षित मातृत्व के दावे की हकीकत जाननी है तो दून महिला अस्पताल का एक चक्कर मार आइये। यहां न सिर्फ दून बल्कि प्रदेश के दुरूह क्षेत्रों की महिलाएं भी भर्ती मिलेंगी। यानी पहाड़ के अस्पताल इस लायक भी नहीं बन सके हैं कि सुरक्षित प्रसव करा सकें।

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उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी समेत तमाम क्षेत्रों से मरीज बस दून ठेले जा रहे हैं। उस पर शहर का हाल देखिये। रायपुर और प्रेमनगर अस्पताल में प्रसव की पूरी सुविधा है। हाल में गांधी नेत्र चिकित्सालय को भी मैटरनिटी केयर यूनिट के तौर पर विकसित किया गया है। लेकिन, दबाव फिर भी अकेले दून महिला अस्पताल पर है। हालत यह है कि यहां गर्भवती महिलाएं कॉरिडोर में फर्श पर अपना ठिकाना तलाश रही हैं। एकाध नहीं कई मरीज फर्श पर चादर डालकर गुजारा करते आपको दिख जाएंगे। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी अस्पतालों के बीच कितना तालमेल है। विकल्प मौजूद हैं, लेकिन संसाधनों का सही ढंग से इस्तेमाल नहीं हो पा रहा। हाकिम भी इस स्थिति से वाकिफ हैं और सुधार के तमाम दावे भी किए गए, लेकिन स्थिति बदल नहीं रही।

रेफर करने में भी दिक्कत

पहले दून महिला अस्पताल गंभीर स्थिति में गर्भवतियों को श्रीमहंत इंदिरेश अस्पताल रेफर कर देता था। श्रीमहंत इंदिरेश अस्पताल से एनएचएम के तहत अनुबंध था। इसके तहत इलाज का खर्च सरकार वहन करती थी। लेकिन, मेडिकल कॉलेज बनने के बाद यह व्यवस्था भी भंग हो गई।

स्टाफ की भी कमी

मानक के अनुसार तीन शिफ्ट में प्रत्येक बेड पर पांच स्टाफ नर्स होनी चाहिएं, लेकिन महिला अस्पताल में यह संख्या बहुत कम है।

निक्कू वार्ड की भी हालत खराब

अस्पताल में नवजातों की सांस का शायद कोई मोल नहीं। अस्पताल की सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में वेंटीलेटर तक की पर्याप्त सुविधा नहीं है। तीन में एक भी वेंटिलेटर काम नहीं कर रहा है। वहीं अस्पताल में 23 में से आधे ही बेबी वार्मर काम कर रहे हैं।

अल्ट्रासाउंड के लिए एक माह तक वेटिंग

दून महिला अस्पताल में गर्भवतियों को अल्ट्रासाउंड के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। इसका कारण है महिला विंग में मात्र एक ही रेडियोलॉजिस्ट की तैनाती। जबकि मरीजों का दबाव कहीं ज्यादा है। 

अधिकारियों के साथ करेंगे बैठक 

मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. मीनाक्षी जोशी के अनुसार इस मामले में सभी अस्पतालों के अधिकारियों के साथ बैठक की जाएगी। आपसी तालमेल से ही इस समस्या से निपटा जा सकता है। यह प्रयास रहेगा कि सामान्य डिलिवरी सब अपने स्तर पर करें और क्रिटिकल केस ही दून महिला अस्पताल में भेजे जाएं। 

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सुविधाओं में सुधार का दावा 

दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना के अनुसार अस्पताल में एनएचएम के तहत निक्कू वार्ड का निर्माण किया गया था। लेकिन, समय के साथ मशीनें और उपकरण पुराने होते चले गए। खराब वेंटीलेटर की स्थिति ऐसी भी नहीं है कि उनकी मरम्मत कराई जा सके। तीन नए वेंटीलेटर की खरीद की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसके टेंडर भी हो चुके हैं। इसके अलावा बेबी वार्मर भी ठीक कराए गए हैं। कुछ ही समय में निक्कू वार्ड आदर्श स्थिति में आ जाएगा। हां, मरीजों का अत्याधिक दबाव जरूर एक समस्या है। क्योंकि मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने का भी काम है। इसके अलावा स्टाफ को शोध कार्यों से भी जोड़ा जा रहा है। 

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