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    उत्तराखंड: सीएम से मुलाकात के बाद डॉक्टरों ने स्थगित किया आंदोलन, जानिए क्या हैं उनकी मांगें

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Mon, 07 Sep 2020 10:59 PM (IST)

    पांच सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे डॉक्टरों ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात के बाद अपना आंदोलन स्थगित कर दिया है।

    उत्तराखंड: सीएम से मुलाकात के बाद डॉक्टरों ने स्थगित किया आंदोलन, जानिए क्या हैं उनकी मांगें

    देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में पांच सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे डॉक्टरों ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात के बाद अपना आंदोलन स्थगित कर दिया है। आपको बता दें कि डॉक्टर पिछले एक सप्ताह से काली पट्टी बांधकर काम कर रहे हैैं। उन्होंने आठ सितंबर को सामूहिक इस्तीफे की भी चेतावनी दी थी। पर स्वास्थ्य सचिव से वार्ता के बाद यह निर्णय स्थगित कर दिया गया था। अब उन्होंने  सीएम से वार्ता के बाद आंदोलन पूर्ण रूप से स्थगित कर दिया है।

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    प्रांतीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संघ के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. नरेश सिंह नपलच्याल, महासचिव डॉ. मनोज वर्मा व डॉ. एनएस बिष्ट ने सीएम आवास पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात की। मुख्यमंत्री ने कहा कि कोरानाकाल में डॉक्टर सराहनीय कार्य कर रहे हैं। जिस लगन से वे जनसेवा कर रहे हैं, इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों की सभी मांगों को गंभीरता से लिया जाएगा और इन पर जल्द कार्रवाई होगी।पीएमएचएस के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. नरेश सिंह नपलच्याल ने बताया कि मुख्यमंत्री के सकारात्मक रुख और विभिन्न मांगों पर कार्रवाई का आश्वासन के बाद आंदोलन स्थगित कर दिया गया है। बता दें, डॉक्टरों की पांच मागें हैं। उन्होंने सरकार के उस फैसले का विरोध किया है, जिसमें हर माह एक दिन का वेतन काटा जा रहा है।वहीं, दूसरी मांग मुख्यमंत्री की उस घोषणा को लेकर है, जिसमें पीजी करने वाले डॉक्टर को पूरी तनख्वाह देने की बात उन्होंने कही थी, लेकिन इसका आदेश अभी तक जारी नहीं किया गया है। 

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    इसके अलावा जिलाधिकारी द्वारा तहसीलदार, पटवारी आदि को अस्पतालों के निरीक्षण के लिए नामित करने और बढ़ते प्रशासनिक हस्तक्षेप का भी डॉक्टर विरोध कर रहे हैं। साथ ही जसपुर में कंटेनमेंट जोन को लेकर प्रभारी चिकित्साधिकारी से की गई अभद्रता पर जसपुर विधायक के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी उन्होंने की है। ये मांग भी की गई है कि हर विभागीय और प्रशासनिक जांच में अस्पताल में हुई मौत का ठीकरा चिकित्सक के सिर न फोड़े जाए। इसका प्रमुख कारण संसाधनों का अभाव है, जिसमें डॉक्टर की कोई भूमिका नहीं है।

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