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    धराली आपदा: मलबे में 20 जगह मिले जिंदगी के संकेत, रेस्क्यू रडार का इस्तेमाल; मशीनों की जगह हाथ से की जा रही खोदाई

    Updated: Tue, 12 Aug 2025 11:07 AM (IST)

    उत्तराखंड के धराली में एनडीआरएफ की टीम मलबे में जीवन के निशान खोजने के लिए जीपीआर और रेस्क्यू रडार जैसे उपकरणों का इस्तेमाल कर रही है। मशीनों की जगह जीवन की उम्मीद वाले स्थानों पर हाथों से खुदाई की जा रही है। जीपीआर से कुछ जगहों पर ढांचों का पता चला है जिससे उम्मीद बंधी है। रेस्क्यू रडार भी मानव जीवन के संकेतों की तलाश में जुटा है ।

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    धराली में जीपीआर से मिले जिंदगी के संकेत के बाद हाथ से औजारों के माध्यम से खोदाई करती एनडीआरएफ।

    सुमन सेमवाल, धराली। धराली में चौतरफा पसरे मलबे में जिंदगी के निशान खोजने में एनडीआरएफ और सेना की टीम युद्धस्तर पर जुटी है। जिस तरह आपदाग्रस्त क्षेत्र में बड़े बड़े होटल, होस्ट हाउस, होमस्टे और अन्य भवन जलप्रलय के साथ आए मलबे में जमींदोज हुए हैं, उसे देखते हुए मलबे में जिंदगी के निशान खोजने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं।

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    भवनों वाली जगह पर भारी मशीनों से खोदाई नहीं की जा सकती है। क्योंकि, कहीं यदि को किसी तरह जीवित भी हुआ, तो उसे बचाने की गुंजाइश भी खत्म हो जाएगी। लिहाजा, रविवार को ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) जबकि सोमवार को रेस्क्यू रडार भी एनडीआरएफ ने धरातल पर उतार दिया है।

    एनडीआरएफ की टीम के अनुसार, जीपीआर 50 मीटर गहराई तक मौजूद वस्तुओं का पता लगा सकता है। रविवार से इसका प्रयोग शुरू किया गया था। अभी निचले क्षेत्रों में जीपीआर से स्कैनिंग की गई है।

    ढाई से तीन मीटर की गहराई में अब तक 20 जगह ऐसी मिली हैं, जहां भवनों या उसे जैसे अन्य ढांचों का पता चला है। तीन मीटर से नीचे हल्का मलबा और फिर ठोस धरातल पाया गया है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि वहां शव हो सकते हैं या कोई जीवित भी मिल सकता है।

    क्योंकि, यहां मिट्टी दलदली है और धंस रही है। लिहाजा, सभी तरह की संभावना के अनुरूप काम किया जा रहा है। जिंदगी के संकेतों वाले स्थलों पर मशीनों का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। इन स्थलों को चिह्नित कर हाथ से प्रयोग किए जाने वाले औजारों से खोदाई कराई जा रही है।

    जिंदगी की तलाश को और सुदृढ़ करने के लिए सोमवार से रेस्क्यू रडार को भी धराली में उतार दिया गया है। इस उपकरण का प्रयोग कर रहे एरिका इंजीनियरिंग के तकनीकी अधिकारी के अनुसार, रेस्क्यू रडार रेडियो फ्रीक्वेंसी पर काम करता है।

    मलबे के नीचे दबे मकान के ऊपर रेस्क्यू रडार रखकर सर्च करती एनडीआरएफ टीम। जागरण

    यह 500 मेगाहर्ट्ज पर संचालित किया जाता है। इससे मलबे में 10 मीटर की गहराई में मानव की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। यदि किसी की धड़कन बाकी है तो यह तुरंत संकेत भेज देगा। इसके अलावा मलबे के भीतर किसी भी हलचल को रेस्क्यू रडार पकड़ सकता है।

    सोमवार को धराली के मलबे से भरे विभिन्न क्षेत्रों में इसका प्रयोग भी किया गया। हालांकि, शाम तक इसके माध्यम से कोई संकेत प्राप्त नहीं किया जा सका था।

    ग्राउंड जीरो पर काम कर रहे एनडीआरएफ के अधिकारियों के अनुसार, जब तक मलबे से भरे पूरे क्षेत्र को चिह्नित नहीं कर दिया जाता, तब तक जीपीआर और रेस्क्यू रडार जैसे उपकरणों का प्रयोग किया जाता रहेगा।

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