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    उत्‍तराखंड की सैन्य पंरपरा को आगे बढ़ा रहा युवा लहू, देहरादून के सागर बनेंगे फौज में अफसर

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Fri, 12 Jun 2020 09:41 PM (IST)

    उत्तराखंड की धरती वीर प्रसूता है। इस पावन माटी में जन्म लेते हैं जांबाज सिपाही जो देश की मर मिटने का जज्बा रखते हैं। सदियों की इस परंपरा को अब आगे बढ़ ...और पढ़ें

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    उत्‍तराखंड की सैन्य पंरपरा को आगे बढ़ा रहा युवा लहू, देहरादून के सागर बनेंगे फौज में अफसर

    देहरादून, सुकांत ममगाईं। देव भूमि उत्तराखंड की धरती वीर प्रसूता है। इस पावन माटी में जन्म लेते हैं जांबाज सिपाही, जो देश की मर मिटने का जज्बा रखते हैं। सदियों की इस परंपरा को अब आगे बढ़ा रही है युवा ब्रिगेड।

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    देहरादून के नथुवावाला पुष्प विहार निवासी सागर पालीवाल भी शनिवार को भारतीय सैन्‍य अकादमी (आइएमए) से पास आउट होकर अफसर बन जाएंगे। उनके पिता ऑनरेरी कैप्टन राजेंद्र प्रसाद 8वीं गढ़वाल राइफल में तीन दशक की सेवा के बाद रिटायर हुए। मां दीपा पालीवाल एक गृहणी हैं।

    बेटे की इस उपलब्धि से गौरान्वित सागर के माता-पिता ने बताया कि उसमें बचपन से ही सेना में जाकर देश सेवा करने का जनून था। सैनिक स्कूल घोड़ाखाल से स्कूल की पढ़ाई करने के बाद उसका एनडीए में चयन हो गया। वह कहते हैं कि सेना में अफसर बनकर उसने परिवार ही नहीं क्षेत्र का नाम रोशन किया है। नानी कलादेवी, बुआ कमली भट्ट को भी सागर पर नाज है। हालांकि, कोरोना के कारण इस वर्ष पासिंग आउट परेड में न जा पाने का मलाल भी है। वह कहते हैं कि टीवी पर लाइन प्रसारण देख वह इस लम्हे का अनुभव करेंगे।

    बेटे के खुशी के पलों में शरीक न हो पाने का गम

    अपने लाडले की खुशियों में शामिल होने की ख्वाहिश हर मां-बाप की होती है। भारतीय सैन्य अकादमी में आयोजित होने वाली पासिंग आउट परेड में अद्भुत क्षण होता है जब परिजन अपने हाथों से अपने लाडले के कंधों पर सितारे लगाते हैं। लेकिन इस बार कोरोना की छाया इन खास लम्हों पर भी पड़ी है। कैडेटों के परिजन इस बार पासिंग आउट परेड में शरीक नहीं होंगे। खास बात यह कि अकादमी से ही सटे प्रेमनगर में रहने वाले परिजन भी अपने बेहद करीब होकर भी अपने लाडले को मिलने वाली खुशी के इन पलों को करीब से नहीं देख पाएंगे, जबकि पिछले एक साल से वह इस खास दिन का इंतजार कर रहे थे। 

    सेना के रिटायर नायब सुबेदार मोहन सिंह रावत व उनकी पत्नी मोहिनी रावत को पासिंग आउट परेड में न जा पाने का मलाल है। मूलरूप से चमोली जिले के नारायणबगड़ ब्लॉक के बिनायक गांव निवासी रावत दंपती का इकलौता बेटा हीरा सिंह रावत भी इस बार आइएमए से पास आउट होकर बतौर लेफ्टिनेंट बनने जा रहा है। उसे आर्मी एवियेशन कोर में कमीशन प्राप्त हो रहा है। केंद्रीय विद्यालय आइएमए से दसवीं व 12वीं उर्तीण करने के बाद हीरा ने आगरा स्थित दयालबाग इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक किया था। इसके बाद उसका प्लेसमेंट टाटा कंसल्टेंसी सर्विस मे हुआ, लेकिन हीरा ने मल्टीनेशनल कंपनी के जॉब को ठुकराकर अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सेना ज्वाइन की। उसने सीडीएस की परीक्षा पास कर अकादमी में प्रवेश प्राप्त किया।

    पिछले तीन माह से कोरोना संक्रमण के चलते जो हालात देश-दुनिया में बने हुए हैं उससे अभिभावकों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। परिजनों की मायूसी इस बात को लेकर भी कि महज कुछ दूरी पर आयोजित हो रही पासिंग आउट परेड के यादगार पलों को वह देख नहीं पा रहे हैं। 

    रिटायर नायब सुबेदार मोहन सिंह रावत बताते हैं कि उन्हें अपने बेटे की कामयाबी पर खुशी है। गर्व इस बात का भी दादा, नाना व पिता के बाद बेटा भी अब सैन्य सेवा के जरिये देश के सरहदों की हिफाजत करने जा रहा है। बताया कि बेटा सैन्य यूनिट से जब छुट्टी लेकर घर आएगा तो जरूर वह अपने हाथों से रस्मी तौर पर बेटे के कंधों पर सितारे लगाएंगे।

    इंजीनियिंरग छोड़, फौज में चुना कॅरियर 

    आज जब कॅरियर के लिहाज से विकल्पों की भरमार है, युवा ब्रिगेड में फौजी वर्दी की ललक अब भी जिंदा है। बेशुमार अवसर और मोटी तनख्वाह से इतर युवा पीढ़ी फौज में कॅरियर चुन रही है।  इंजीनियर्स एन्क्लेव निवासी अक्षत चौहान भी उन्हीं में एक हैं। पासिंग आउट परेड के बाद अंतिम पग भर वह आज सेना में अफसर बन जाएंगे। उनके पिता जेएस चौहान लोनिवि में अधिशासी अभियंता व मां नीतू चौहान राजकीय इंटर कॉलेज वैसोगीलानी कालसी में प्रवक्ता हैं। मूल रूप से ग्राम झोटाड़ी, उत्तरकाशी के रहने वाले चौहान परिवार ने बताया कि अक्षत ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट च्यूड्स स्कूल से की।

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    इसके बाद टिहरी हाइड्रो इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक किया। पर उसके मन में फौजी वर्दी की ललक थी। ऐसे में इंजीनियिरंग करने के बाद भी वह अपने इस सपने को पूरा करने में जुटा रहा। सीडीएस की परीक्षा दी और सफल भी हुआ। अक्षत का मानना है कि इस नौकरी में न सिर्फ स्थायित्व है, बल्कि सुरक्षित भविष्य भी। अक्षत की छोटी बहन अपूर्वा एमबीए कर रही है। परिवार के लोगों को इस क्षण का बेसब्री से इंतजार था पर कोरोना के कारण वह पीओपी में नहीं जा पा रहे हैं। जिसका उन्हें मलाल है।

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