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अंग्रेजों के जमाने में बसा देहरादून का पलटन बाजार, जानिए इसका रोचक इतिहास

अंग्रेजों के जमाने में बसा सौ साल पुराना पलटन बाजार दून की आन-बान-शान है। यही वजह है कि देहरादून का भ्रमण तब तक पूरा नहीं माना जाता जब तक इसमें न घूम लिया जाए।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 01:34 PM (IST)Updated: Mon, 16 Sep 2019 08:39 PM (IST)
अंग्रेजों के जमाने में बसा देहरादून का पलटन बाजार, जानिए इसका रोचक इतिहास
अंग्रेजों के जमाने में बसा देहरादून का पलटन बाजार, जानिए इसका रोचक इतिहास

देहरादून, दिनेश कुकरेती। दून के खुशगवार मौसम में चलिए एतिहासिक पलटन बाजार की सैर करें। अंग्रेजों के जमाने में बसा तकरीबन सौ साल पुराना यह बाजार दून की आन-बान-शान है। यही वजह है कि देहरादून का भ्रमण तब तक पूरा नहीं माना जाता, जब तक कि रंगीन पलटन बाजार न घूम लिया जाए। यह ऐसा बाजार है, जहां से खाली हाथ लौटने का मन नहीं करता। कारण, यह बाजार हर वर्ग की पॉकेट का ख्याल रखता है। विश्वसनीयता के मामले में इसका कोई शानी नहीं। बहुत से लोग किताबें व कपड़े खरीदने या घूमने का आनंद लेने के लिए यहां आते हैं। घंटाघर तक फैले इस बाजार में चूड़ियां, दूल्हा-दुल्हन के कपड़े, तैयार वस्त्र (रेडीमेट गारमेंट्स), हर प्रकार के मसाले, जूते, रोजाना घरेलू उपयोग में आने वाली वस्तुएं, उपहार का सामान, गुणवत्ता वाले बासमती चावल से लेकर ट्रैकिंग और लंबी पैदल यात्रा का साजो-सामान सब-कुछ वास्तविक कीमतों पर उपलब्ध रहता है। अगर आप मोलभाव करने का हुनर रखते हैं तो यहां बहुत सारी वस्तुएं न्यूनतम दाम पर खरीद सकते हैं। ब्रांडेड कपड़ों के कई शोरूम भी यहां मौजूद हैं। इसके अलावा आप प्राचीन वस्तुएं, शॉल, स्वेटर, कॉर्डिगन, सजावटी और पीतल के सामान जैसी हस्तशिल्प वस्तुएं भी पलटन बाजार में खरीद सकते हैं।

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ऐसे पड़ा 'पलटन बाजार' नाम

ब्रिटिश हुकूमत के दौर में जब वर्ष 1822 के आसपास सहारनपुर मार्ग अस्तित्व में आया, तब मसूरी व तत्कालीन गढ़वाल राज्य के समीपस्थ क्षेत्रों तक सामान पहुंचाने के लिए देहरादून से लगे राजपुर गांव तक भी यातायात व्यवस्था शुरू हुई। उस कालखंड में आज के देहरादून-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर मोहंड में बनी सुरंग से देहरादून और फिर मुख्य सड़क राजपुर रोड में प्रवेश किया जाता था। तब एकमात्र सड़क धामावाला गांव से आज के घंटाघर के समीप से होते हुए राजपुर गांव तक पहुंचती थी। इसी कारण वर्ष 1892 के आसपास तक दर्शनी गेट से राजपुर तक की सड़क 'राजपुर रोड' कहलाती थी। वर्ष 1864 में मुख्य मार्ग के समीप (वर्तमान पलटन बाजार में) अंग्रेजों की ओल्ड सिरमौर बटालियन ने अपनी छावनी स्थापित की। साहित्यकार देवकी नंदन पांडेय अपनी पुस्तक 'गौरवशाली देहरादून' में लिखते हैं कि तब आज के यूनिवर्सल आयरन स्टोर से लेकर जंगम शिवालय के सामने वाली गली तक सैन्य अधिकारियों के आवासीय स्थल होते थे और इसके पीछे बटालियन ठहरती थी। घंटाघर से लेकर पलटन बाजार स्थि‍त सिंधी स्वीट शॉप के सामने तंग गली तक सड़क के दोनों ओर के क्षेत्र सेना के पास थे। सेना की आवाजाही के कारण कालांतर में यही क्षेत्र 'पलटन बाजार' कहलाया।

परेड ग्राउंड में थी गोरखा बटालियन की छावनी

यह वह दौर है जब परेड ग्राउंड गोरखा बटालियन की छावनी के रूप में विकसित था। सिरमौर बटालियन और गोरखा बटालियन के सैनिक व अधिकारियों के लिए बाजार व पूजा स्थल विकसित किए गए। घंटाघर का हनुमान मंदिर, सब्जी मंडी की मस्जिद, फालतू लाइन का गुरुद्वारा और कचहरी रोड का चर्च भी उसी काल में अस्तित्व में आए।

1874 तक रही यहां ओल्ड सिरमौर बटालियन

साहित्यकार देवकी नंदन पांडेय के अनुसार ओल्ड सिरमौर बटालियन और गोरखा बटालियन बाद में गढ़ी डाकरा क्षेत्र में स्थानांतरित कर दी गई, जिससे पलटन बाजार क्षेत्र खाली हो गया। तीन जुलाई 1874 को यह क्षेत्र सेना ने इस शर्त के साथ तत्कालीन सुपरिन्टेंडेंट ऑफ दून एचजी रॉस की सुपुर्दगी में दे दिया कि वह प्रतिवर्ष सेना के कोष में इसका नजराना जमा करवाएंगे। सुपरिन्टेंडेंट ऑफ दून ने सेना की ओर से सौंपी गई यह भूमि देखरेख के लिए नगर पालिका को सौंप दी। इसके बाद नगर पालिका की ओर से लंबे समय तक इस विशाल क्षेत्र का वार्षिक नजराना सेना को दिया जाता रहा।

वर्ष 1923 में लिया पलटन बाजार ने आकार

एक मार्च 1923 को रायबहादुर उग्रसेन सिंह ने देहरादून नगर पालिका के अध्यक्ष का कार्यभार संभाला। इसके बाद उन्होंने खाली पड़े कई नजूल भूखंडों का स्वामित्व या तो अपने पक्ष में कर लिया या फिर नजूल नियमावली की अनदेखी कर उन्हें औने-पौने दाम में व्यापारियों के हाथ दिया। यही प्रक्रिया ओल्ड सिरमौर बटालियन की खाली की गई संपत्ति के साथ भी दोहराई गई। जिससे धीरे-धीरे पलटन बाजार आकार लेता चला गया।

उस दौर के प्रतिष्ठित व्यावसायिक प्रतिष्ठान

पलटन बाजार के पुराने व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में प्रमुख रूप से भगवान दास बैंक, चाचा हलवाई, दर्शनलाल टंडन की सोडा वाटर फैक्ट्री, नेशनल न्यूज एजेंसी, कस्तूरी हौजरी स्टोर, सुभाष फैमिली वियर, भाटिया ब्रदर्स, भोजा राम एंड संस, गुप्ता न्यूज एजेंसी, साहित्य सदन, सतपाल कृष्ण कुमार व ओमप्रकाश हलवाई आदि शामिल थे। 

चाचा हलवाई बनाते थे वायसराय के लिए भोजन

चाचा हलवाई की विशाल दुकान नेशनल न्यूज एजेंसी व गांधी आश्रम के स्थान पर हुआ करती थी। वायसराय के देहरादून आने पर यहीं से उनके भोजन की व्यवस्था की जाती थी। इसी तरह ग्रेंड बेकरी की दुकान के स्थान पर दर्शनलाल टंडन की हिमालय सोडा वाटर फैक्ट्री हुआ करती थी। वायसराय के लिए तैयार किया गया शुद्ध पेयजल यहीं से जाता था। 

लार न टपकने लगे तो कहना...

यह बाजार चाट गली के लिए प्रसिद्ध है। आप यहां गोलगप्पे, समोसे, चाट, चाऊमीन, मोमोज, डोसा व टिक्की से लेकर विभिन्न प्रकार के फास्ट फूड का जायका ले सकते हैं। इस बाजार की स्वादिष्ट और फ्लेवरफुल आइसक्रीम की तो बात ही निराली है।  

ब्रांडेड-गैर ब्रांडेड का संगम

पलटन बाजार शॉप-ए-हेलिक्स के लिए सबसे लोकप्रिय स्थान है। यहां पीटर इंग्लैंड, फास्ट ट्रैक, बाटा, कामिनी, वर्धमान जैसे ब्रांड से लेकर अन्य गैर-ब्रांडेड वस्तुएं तक सब-कुछ उपलब्ध हैं। पलटन बाजार की पहचान अपने बेकरी और रेस्टोरेंट (जैसे- गेलॉर्ड एक्सप्रेस, सनराइज बेकर्स, हंगर बेल) के लिए भी है, जहां आप कोई भी स्वादिष्ट भोजन कर सकते हैं।

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बारह घंटे खुला रहता है बाजार

पल्टन बाजार में दुकानें सुबह दस बजे से खुलती हैं और रात 10 बजे तक बंद हो जाती हैं। बाजार हर वक्त आगंतुकों से खचाखच रहता है। खासकर रविवार को तो यहां पैर रखने तक को जगह नहीं मिलती। इसलिए बेहतर यही है कि अपने दुपहिया या चौपहिया वाहनों को उचित स्थान पर पार्क कर ही यहां आएं। पास ही स्थित राजीव गांधी कॉम्प्लेक्स में वाहन पार्क करने के लिए पर्याप्त स्थान मौजूद है।

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