बोर्ड परिणाम जारी, अब छात्रों को खुद को नई चुनौतियों के अनुसार ढालना होगा
बोर्ड परीक्षाएं निपटने के बाद परिणाम घोषित हो चुके हैं। आइसीएसई और सीबीएसई बोर्ड के बाद उत्तराखंड बोर्ड का परिणाम भी आ चुका है।
देहरादून, विजय जोशी। कोरोना महामारी के बीच जैसे-तैसे बोर्ड परीक्षाएं निपटने के बाद परिणाम घोषित हो चुके हैं। आइसीएसई और सीबीएसई बोर्ड के बाद उत्तराखंड बोर्ड का परिणाम भी आ चुका है। यह परिणाम जिन परिस्थितियों में आए हैं, उनमें खुशी के साथ चिंता भी भरपूर है। कोरोना ने शिक्षा का स्वरूप बदल दिया है, तो बच्चों को भी आगे की पढ़ाई के लिए नई चुनौतियों के अनुसार खुद को ढालना होगा। हालांकि, उन्हें इसमें समय लग सकता है। वैसे भी प्रतिस्पर्धा के इस दौरा में सभी एक-दूसरे से बेहतर बनने का प्रयास करते हैं, लेकिन, यह सोचें कि यह हालात सभी के लिए हैं। हो सकता है नई व्यवस्थाओं में सामंजस्य बनाने में कुछ परेशानी आए, लेकिन यह भी हमारे हुनर और क्षमता की परीक्षा साबित हो सकता है। यदि ऑनलाइन क्लास नया अनुभव है, तो सिलेबस कम होना और स्कूली माहौल से दूर रहना भी सभी के लिए नया अनुभव है।
हमारे युवा अधिकारी
संघ लोकसेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में उत्तराखंड के युवाओं ने खुद को फिर साबित किया है। इस बार भी ऑल इंडिया रैंक में प्रदेश के छात्रों ने सम्मानजनक स्थान हासिल किया है। रामनगर निवासी शुभम बंसल ने 43वां स्थान हासिल कर मैदान मार लिया। देहरादून की बेटी विशाखा डबराल ने 134वां स्थान पाया। विशाखा डबराल ने दूसरी बार सिविल सेवा परीक्षा में कामयाबी हासिल की। तमाम चुनौतियों और अड़चनों से पार पाकर उन्होंने अपनी कामयाबी का लोहा मनवाया। वहीं, रुड़की के ओजस्वी राज ने भी 227वीं और डीएवी पीजी कॉलेज से एलएलबी कर रहीं प्रियंका ने 257वां स्थान प्राप्त किया है। दून निवासी मुकुल जमलोकी ने 260वां स्थान हासिल किया। इनमें कई ऐसे हैं जो दूसरी बार परीक्षा में सफल हुए। यही कारण है कि प्रदेश के ऐसे युवा हर बार ही दूसरों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं। यह दर्शाता है कि यहां प्रतिभा की कमी नहीं।
भंग होती एकाग्रता
कई प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं पर कोरोना का ग्रहण लग गया है। लगातार टल रही परीक्षाएं भी छात्रों की चिंताएं बढ़ा रही हैं। जेईई या नीट जैसी परीक्षाओं की कड़ी तैयारी करने वाले छात्रों को परीक्षा टलने से गहरा धक्का लगा है। एकाग्रता भंग होने से लेकर भविष्य की चिंता के बीच छात्र कशमकश में हैं। ऐसी परिस्थिति में छात्रों को चाहिए कि वे अपनी तैयारी को कमजोर न पडऩे दें। नीट हो या जेईई सभी के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चुनौती जरूर होता है, लेकिन चुनौतियों पर पार पाने वाला ही सफल होता है। परीक्षाएं टलने को इस रूप में देखा जा सकता है कि तैयारी करने का थोड़ा और समय मिल रहा है। वैसे भी कोरोना महामारी की रोकथाम को घरों में ही ज्यादा समय बिताना है। फिर परीक्षा की तैयारी ही सही। वैसे भी हम खुद को सुरक्षित रखेंगे, तभी तो भविष्य बनाने में जुटेंगे।
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पहाड़ों की खेती
खरीफ के बाद अब तिलहन और दलहन की फसलों का समय है और कोरोना महामारी के चलते अधिकांश युवा घरों में हैं। यही समय है, अपने मूल कार्य में हाथ आजमाने का। इसी बहाने पहाड़ों की रौनक भी लौट आएगी। गांवों में खेतीबाड़ी छोड़ शहरों में नौकरी करने गए अधिकांश युवा अपने गांव लौट चुके हैं। दोबारा नौकरी पर जाने की उम्मीद कम ही है। हालात कब सामान्य होंगे, कहा नहीं जा सकता। ऐसे में फिलहाल तो खेती से बढिय़ा कोई विकल्प नहीं हो सकता। युवा अपने परिवार के साथ खेतों में खरीफ की फसल की बुआई करें। आजीविका के लिए खेती भी हमेशा से ही बेहतर विकल्प रहा है। हालांकि, थोड़ा मेहनत का कार्य है, लेकिन पहाड़ों में तो खेती-किसानी ही ग्रामीणों का मूल रहा है। हल लगाने से लेकर निराई-गुड़़ाई भी करते रहे हैं। पहाड़ों में बंजर हो रहे खेतों को फिर से लहलहाने का यही मौका है।
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