कर्मचारी नेताओं ने उत्तर प्रदेश के कर्मचारी नेताओं से साधा संपर्क
आरक्षण पदोन्नति प्रक्रिया पर सरकार जहां केंद्रीय नेतृत्व की ओर टकटकी लगाए है वहीं कर्मचारी नेता उत्तर प्रदेश के कर्मचारी नेताओं से संपर्क में जुट गए हैं।
देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में बिना आरक्षण पदोन्नति प्रक्रिया बहाल करने के मामले पर सियासी रंग चटख होने लगा है। सरकार जहां केंद्रीय नेतृत्व की ओर टकटकी लगाए है, वहीं कर्मचारी नेता उत्तर प्रदेश के कर्मचारी नेताओं से संपर्क में जुट गए हैं। दरअसल, आठ साल पहले उत्तर प्रदेश में भी कर्मचारियों ने इस मुद्दे पर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी। जिसके बाद साल 2012 में तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार ने विधेयक लाकर पदोन्नति में आरक्षण को खत्म कर दिया था। ऐसे में यूपी के कर्मचारी नेताओं को भी बीस की महारैली में आमंत्रित करने पर सोच-विचार चल रहा है। इस पर सोमवार को उत्तराखंड जनरल-ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन की बैठक में निर्णय लिया जाएगा।
बिना आरक्षण पदोन्नति प्रक्रिया बहाल होने का इंतजार कर रहे जनरल-ओबीसी वर्ग के कर्मचारी इन दिनों सड़क पर हैं। बीस फरवरी को राजधानी के परेड ग्राउंड में महारैली बुलाई गई है, जिसमें सभी कर्मचारियों से पत्नी-बच्चों के साथ पहुंचने का आह्वान किया गया है। वहीं, युवाओं, बेरोजगारों और आम नागरिकों को आरक्षण की कुप्रथा को खत्म कराने के लिए रैली में आने का न्योता दिया गया है। जाहिर है कि कर्मचारियों की यह लड़ाई सरकारी दफ्तरों की चहारदीवारी से बाहर निकल कर राजनीति के अखाड़े में पहुंच गई है।
आंदोलन की अगुवाई कर रहे उत्तराखंड जनरल-ओबीसी इंप्लाइज फेडरेशन के प्रांतीय महासचिव वीरेंद्र सिंह गुसाईं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी बिना आरक्षण पदोन्नति प्रक्रिया बहाल करने में सरकार की ओर से की जा रही देरी से लगने लगा है कि वह इसमें लाखों कर्मचारियों का हक नहीं, बल्कि राजनैतिक नफा-नुकसान देख रही है। नहीं तो खुद अदालत में एसएलपी दायर करने वाली सरकार को इतना सोच-विचार करने की क्या आवश्यकता है। मुद्दे को लेकर उत्तर प्रदेश के कर्मचारी नेताओं से संपर्क किया जा रहा है। प्रयास यह भी है कि उत्तर प्रदेश में जनरल-ओबीसी कर्मचारियों को विजय दिलाने वाले कर्मचारी नेताओं को बीस की रैली में आमंत्रित किया जाए।
रिवर्ट कराएंगे आरक्षण का लाभ पाने वाले कर्मचारियों को
जनरल-ओबीसी कर्मचारियों ने साफ कर दिया है कि आरक्षण के खिलाफ उनकी लड़ाई और व्यापक होगी। सरकार यदि समय रहते फैसला लेती तो वह आरक्षण का लाभ पाकर पदोन्नति पाने वालों को एकबारगी भूल जाने के बारे में सोचते। मगर अब उनकी लड़ाई यह भी होगी कि जो आरक्षण का लाभ पाकर पदोन्नत हुए हैं, उन्हें रिवर्ट कराया जाए, ताकि योग्य लोगों को पदोन्नति का लाभ मिल सके।
कब क्या हुआ
- साल 2010 में विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने पदोन्नति में लागू आरक्षण के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
- दो साल बाद 2012 में 10 जुलाई को विनोद प्रकाश नौटियाल बनाम उत्तराखंड सरकार मामले में हाईकोर्ट से फैसला आया था। जिसमेें पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगा दी गई।
- पांच सितंबर 2012 को सरकार ने शासन आदेश निकाल कर नई व्यवस्था प्रदेश में लागू करते हुए पदोन्नति में आरक्षण को खत्म कर दिया।
- मार्च 2019 में एक कर्मचारी ज्ञानचंद्र ने राज्य में लागू नई व्यवस्था के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
- 31 मार्च 2019 तक पदोन्नति में आरक्षण नहीं मिलने की व्यवस्था लागू रही।
- एक अप्रैल 2019 को हाईकोर्ट ने सरकार के साल 2012 में लागू शासन आदेश को समाप्त कर दिया।
- हाईकोर्ट के शासन आदेश को समाप्त करने के बाद प्रदेश में पदोन्नति पर भी रोक लग गई।
- मई 2019 में विनोद प्रकाश नौटियाल समेत अन्य कर्मचारी प्रतिनिधियों ने हाईकोर्ट में शासन आदेश को समाप्त करने पर रिव्यू लगाई।
- 15 नवंबर 2019 को हाईकोर्ट ने अपने ही फैसले में संशोधन करते हुए सरकार से पिछड़े जनों उनके प्रतिनिधियों समेत अन्य कई विषयों पर पिछड़े वर्गों का क्वांटिफिएबल (मात्रात्मक) डाटा तलब किया। हाई कोर्ट ने सरकार को इसके लिए चार महीने का समय दिया।
- विनोद प्रकाश नौटियाल समेत अन्य कर्मचारी प्रतिनिधियों ने हाईकोर्ट के आंशिक फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया।
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- प्रदेश सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चैलेंज किया। सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पिछड़े वर्ग का क्वांटिफिएबल डाटा सार्वजनिक करना या किसी को उपलब्ध करना केवल सरकार की मर्जी होती है। इसके लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता।
- 15 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख दिया।
- सात फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सार्वजनिक करते कहा कि पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। यह सरकार पर निर्भर है कि वह पदोन्नति में आरक्षण दे या न दे।
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