Corbett Tiger Reserve: अधिकारियों की खींचतान से वन विभाग की छीछालेदर, सतह पर आ चुकी जंग
अवैध निर्माण और पेड़ कटान के बहुचर्चित मामले में वन विभाग के आला अधिकारियों की खींचतान चर्चा का विषय बनी है। दोषियों पर दोष के निर्धारण को दो अलग-अलग जांच अधिकारी नामित करने से अधिकारों की जंग के सतह पर आने से विभाग की छीछालेदर हुई।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग में अवैध निर्माण और पेड़ कटान के बहुचर्चित मामले में वन विभाग के आला अधिकारियों की खींचतान चर्चा का विषय बनी है। प्रकरण में दोषियों पर दोष के निर्धारण को दो अलग-अलग जांच अधिकारी नामित करने से अधिकारों की जंग के सतह पर आने से विभाग की छीछालेदर हुई है। विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी प्रकरण में आला अधिकारियों को आपसी समन्वय और पारदर्शिता के साथ ही कोई कदम बढ़ाना चाहिए। साथ ही इसमें राष्ट्र और प्रदेश हित का ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
कालागढ़ टाइगर रिजर्व में पाखरो में निर्माणाधीन टाइगर सफारी के लिए स्वीकृति से अधिक पेड़ों का कटान और पाखरो से लेकर कालागढ़ वन विश्राम भवन तक अवैध निर्माण मसला पिछले कई दिनों से सुर्खियों में है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने अपनी स्थलीय जांच रिपोर्ट में शिकायतों को सही पाते हुए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की है। ऐसे में दोषी अधिकारियों पर दोष निर्धारण के लिए जांच कराई जानी जरूरी है। इस पर विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) और मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक आमने-सामने हो गए।
पीसीसीएफ राजीव भरतरी ने अधिकारियों पर दोष निर्धारण के मद्देनजर जांच के लिए मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी को जांच सौंप दी। इसके साथ ही मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग ने भी अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक बीके गांगटे को जांच अधिकारी नामित कर दिया। एक ही प्रकरण पर दो-दो जांच अधिकारी नामित करने से सवाल उठने लाजिमी थे। हालांकि, दोनों ही जांच अधिकारियों ने जांच करने से इनकार कर दिया है, लेकिन आला अधिकारियों की खींचतान से छवि तो विभाग की ही धूमिल हुई।
यह सही है कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संरक्षित क्षेत्र में होने वाले किसी भी मामले में कार्रवाई अथवा जांच के आदेश देने का अधिकार मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को ही है। बावजूद इसके जब मामला सुर्खियों में हो तो मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक और विभाग प्रमुख को आपस में बैठकर किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए। इस प्रकरण में यही संवादनहीनता सामने आई, जो विभाग की छीछालेदर की वजह भी बनी। ये बात अलग है कि अब शासन ने प्रकरण की विजिलेंस जांच बैठा दी है, लेकिन आला अधिकारियों को भविष्य के लिए इस प्रकरण से सबक लेना चाहिए।
पहले भी छिड़ी रही है जंग
विभाग के मुखिया और मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के आमने-सामने होने का यह पहला मामला नहीं है। पूर्व विभाग प्रमुख जयराज और पूर्व मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डीबीएस खाती के मध्य सेवाकाल के दौरान राजाजी टाइगर रिजर्व में हुए कथित शिकार के प्रकरण को लेकर लंबे समय तक तलवारें ङ्क्षखची रही थीं।
समन्वय व पारदर्शिता से हों काम
वन विभाग के सेवानिवृत्त मुखिया डा आरबीएस रावत विभाग में आला अधिकारियों के मध्य अधिकारों की जंग को सही नहीं मानते। उनका कहना है कि वन एवं वन्यजीवों के संरक्षण-संवद्र्धन का जिम्मा वन विभाग का है। अधिकारियों को सीमित संसाधनों में राष्ट्र व प्रदेश हित में व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए आपसी समन्वय और पारदर्शिता से कार्य करना चाहिए। जो भी कार्य हों, उसमें नीयत साफ होनी चाहिए और ये सुनिश्चित होना चाहिए कि कार्य पूरी ईमानदारी से हों।
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