सैलानियों के आकर्षण को देखते हुए चौरासी कुटी का होगा सौंदर्यकरण
तीर्थनगरी ऋषिकेश से सात किमी के फासले पर पार्क की गौहरी रेंज में स्थित चौरासी कुटी का सौंदर्यकरण किया जाएगा। ऐसा सैलानियों के आकर्षण को देखते हुए किया जा रहा है।
देहरादून, केदार दत्त। राजाजी नेशनल पार्क की वन्यजीव विविधता बेजोड़ है। यह आध्यात्मिक, सांस्कृतिक पहलुओं का समावेश भी लिए है। तीर्थनगरी ऋषिकेश से सात किमी के फासले पर पार्क की गौहरी रेंज में स्थित चौरासी कुटी इसकी तस्दीक करती है।
भावातीत ध्यान योग के प्रणेता महर्षि महेश योगी ने 1970 के आसपास वहां शकराचार्य नगर स्थापित किया। इस सुरम्य स्थली में योग साधना को गुंबदनुमा 84 कुटियाएं बनाई गर्इं, जिससे इससे यह चौरासी कुटी के नाम से मशहूर हुई। विश्व प्रसिद्ध रॉक बैंड बीटल्स गु्रप के चार सदस्यों ने यहां कई गीतों की धुनें तैयार की थीं।
राजाजी पार्क के अस्तित्व में आने के बाद 1984 में चौरासी बंद कर दी गई। 2015 में इसे खोला गया तो सैलानी मानो टूट पड़े। गत वर्ष वहां 40 हजार सैलानी आए। सैलानियों के आकर्षण को देखते हुए अब चौरासी कुटी को उसके नैसर्गिक सौंदर्य, आध्यात्मिकता, सांस्कृतिक पहलू के अनुरूप संवारने, निखारने की तैयारी है।
धारण क्षमता का चलेगा पता
उत्तराखंड में राष्ट्रीय पशु बाघ का कुनबा तो पहले ही खूब फल-फूल रहा, राष्ट्रीय विरासत पशु हाथी के कुनबे में भी निरंतर इजाफा हो रहा है। राज्य के दोनों टाइगर रिजर्व कार्बेट और राजाजी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सूबे में बाघों की संख्या चार सौ के पार है, जबकि हाथियों की तादाद 2026 पहुंच गई है।
ये दर्शाता है कि यहां वन्यजीवों के लिए मुफीद वासस्थल हैं। इस सब पर रश्क करना तो बनता ही है। बावजूद इसके चुनौती भी बढ़ी है। जिस हिसाब से बाघ और हाथी बढ़े हैं, क्या उसके अनुरूप हमारे जंगल इन्हें धारण करने की क्षमता रखते हैं।
भविष्य की स्थिति के मद्देनजर इसका अध्ययन कराना आवश्यक है। इसके दृष्टिगत ही वन्यजीव महकमे ने कार्बेट व राजाजी में बाघ, हाथियों की धारण क्षमता का अध्ययन कराने का निश्चय किया गया है। इसका पता लगने के बाद दोनों रिजर्व में प्रभावी कदम उठाए जा सकेंगे।
राजाजी की सीमा का रैशनलाइजेशन
वर्ष 1983 में जब राजाजी नेशनल पार्क अस्तित्व में आया तो किसी ने नहीं सोचा होगा कि भविष्य में यहां के वन्यजीव परेशानी का सबब बन सकते हैं। कम लोग जानते हैं कि पहले इस क्षेत्र में राजाजी, मोतीचूर, चीला अभयारण्य थे। इन तीनों को मिलाकर राजाजी नेशनल पार्क बनाया गया। तीन जिलों हरिद्वार, देहरादून, पौड़ी के क्षेत्रों को खुद में समेटे राजाजी के चारों तरफ आबादी है।
सूरतेहाल, वहां वन्यजीव प्रबंधन किसी चुनौती से कम नहीं। आए दिन पार्क से लगे क्षेत्रों में वन्यजीवों के हमले सुर्खियां बनते हैं। सर्वाधिक दिक्कत पार्क की सीमा के भीतर आबादी वाले क्षेत्रों में आ रही। ऐसे में 830 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस पार्क का रैशनलाइजेशन (सुव्यवस्थितीकरण) समय की मांग है। इस दिशा में पहल शुरू हो गई है। पार्क सीमा में मौजूद गांवों को इससे बाहर निकालने पर मंथन चल रहा। देखना होगा कि ये मुहिम कब परवान चढ़ती है।
जल्द आएंगे गैंडे, वाइल्ड डॉग
कार्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व में प्रायोगिक तौर पर गैंडे व वाइल्ड डॉग (सोन) के रूप में नए मेहमानों को लाने की मुहिम अब तेजी से परवान चढ़ेगी। राज्य वन्यजीव बोर्ड की पिछले वर्ष नवंबर में हुई बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी, लेकिन कोरोना संकट समेत अन्य कारणों से इसकी पहल ठंडी पड़ गई। दरअसल, गैंडों को कार्बेट में लाया जाना है, जबकि वाइल्ड डॉग को राजाजी टाइगर रिजर्व में। दोनों ही वन्यजीव एक दौर में यहां थे।
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वन विभाग के अभिलेखों में इसका जिक्र है। इसे देखते हुए फिर से यहां इनकी बसागत की तैयारी की जा रही है। 29 जून को हुई वन्यजीव बोर्ड की बैठक में यह मसला उठा तो इस मुहिम में तेजी लाने के निर्देश भी दिए गए। अब वन्यजीव महकमे ने इसके अनुरूप कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। ऐसे में जल्द ही लोग इनका दीदार कर सकेंगे।