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    बदरीनाथ आरती की पांडुलिपि धरोहर के रूप में संरक्षित

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Tue, 21 Aug 2018 11:12 AM (IST)

    स्व. धन सिंह बर्त्वाल की लिखी बदरीनाथ आरती की पांडुलिपि को विधि-विधान पूर्वक अंगीकृत कर लिया है। साथ ही धाम में धरोहर के रूप में संरक्षित रखा जाएगा।

    बदरीनाथ आरती की पांडुलिपि धरोहर के रूप में संरक्षित

    रुद्रप्रयाग, [जेएनएन]: बदरीनाथ आरती की पांडुलिपि को अब धाम में धरोहर के रूप में संरक्षित रखा जाएगा। साथ ही मंदिर समिति की आगामी बोर्ड बैठक में स्व.धन सिंह बर्त्वाल को आरती के मुख्य रचयिता का दर्जा देने के लिए प्रस्ताव लाया जाएगा। श्री बदरी-केदार मंदिर समिति ने 137 वर्ष पूर्व रुद्रप्रयाग जिले के सतेराखाल स्यूंपुरी निवासी स्व. धन सिंह बर्त्वाल की लिखी बदरीनाथ आरती की पांडुलिपि को विधि-विधान पूर्वक अंगीकृत कर लिया है। 

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    रविवार को रुद्रप्रयाग जिले के सतेराखाल-स्यूंपुरी गांव में आयोजित कार्यक्रम में बदरीनाथ आरती की पांडुलिपि का मंदिर समिति के वेदपाठियों ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच शुद्धीकरण किया। इसके बाद मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह ने पांडुलिपि को विधिवत रूप से अंगीकृत किया। उन्होंने कहा कि 137 वर्ष पूर्व स्व. धन सिंह बत्र्वाल की लिखी यह पांडुलिपि अब मंदिर समिति की धरोहर है। 

    मंदिर समिति की आगामी बोर्ड बैठक में प्रस्ताव लाकर स्व. धन सिंह बर्त्वाल को बदरीनाथ आरती के रचयिता का दर्जा प्रदान किया जाएगा। कहा कि पूर्व में नंदप्रयाग (चमोली) के बदरुद्दीन द्वारा बदरीनाथ की आरती लिखे जाने की बात कही जाती रही है, लेकिन इसके प्रमाण उपलब्ध नहीं हो पाए। 

    मुख्य कार्याधिकारी सिंह ने कहा कि भगवान बदरीनाथ की आरती इतनी शीतल एवं मधुर है कि पूरे विश्व में कहीं भी व्यक्ति इसका श्रवण कर बदरीनाथ की ओर खिंचा चला आता है। यही वजह है कि 17वीं, 18वीं व 19वीं सदी में भी अंग्रेजों के साथ ही कई देशों के लोग भी बदरीनाथ धाम आते रहे हैं। कहा कि कलयुग में बदरीनाथ आने वाले पहले व्यक्ति आदि शंकराचार्य थे। त्रेता युग में भगवान श्रीराम, द्वापर युग में पांडव और सतयुग में ब्रह्माजी की पुत्री स्वयंप्रभा ने भगवान बदरीनाथ के दर्शन किए थे। 

    यूसैक (उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र) के निदेशक एनपीएस बिष्ट ने कहा कि केंद्र के परीक्षण में पांडुलिपि सही पाई गई। यह पूरे क्षेत्र के लिए गौरव की बात है। कहा कि जिस भवन यह पांडुलिपि लिखी गई थी, वहां कई अन्य पौराणिक धरोहर भी मौजूद हैं। इसलिए प्रशासन व सरकार को इसे म्यूजियम के रूप में विकसित करना चाहिए। 

    जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने कहा, यह पांडुलिपि इस बात का प्रमाण है वर्षों पूर्व भी पहाड़ में विद्वान लोग मौजूद रहे हैं। इसलिए पहाड़ के लोगों को अपने पूर्वजों का मार्गदर्शन लेकर कार्य करना चाहिए। इस मौके पर स्व. धनसिंह बर्त्वाल के परपौत्र महेंद्र सिंह बर्त्वाल, सूरत सिंह बर्त्वाल, गंभीर सिंह बिष्ट, सतेंद्र सिंह बर्त्वाल, कल्पत सिंह, भूपेंद्र सिंह, कर्नल दलवीर सिंह समेत क्षेत्र के गणमान्य लोग मौजूद थे। 

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