यहां माता गौरी संग आए थे महादेव, होती है हर मनोकामना पूरी
हरिद्वार के श्यामपुर रेंज में गौरी शंकर महादेव का मंदिर है। प्रजापति मंदिर में विवाह करने के बाद भगवान शंकर माता गौरी को लेकर मंदिर पहुंचे थे।
देहरादून, [जेएनएन]: गौरी शंकर महादेव मंदिर हरिद्वार की श्यामपुर रेंज में स्थित है। यहां भगवान शंकर माता गौरी के साथ विराजमान है। मंदिर में श्रावण मास में महारुद्राभिषेक का आयोजन होता है। महाशिवरात्रि पर भी यहां विशेष अनुष्ठान होते हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
इतिहास
गौरी शंकर महादेव मंदिर का इतिहास सतयुगी कालीन है। मंदिर का वर्णन शिवपुराण में किया गया है। दक्ष प्रजापति मंदिर में विवाह करने के बाद भगवान शंकर माता गौरी को लेकर मंदिर पहुंचे थे। तभी से मंदिर का नाम गौरी शंकर पड़ा।
तैयारियां
सावन माह में यहां श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। गौरीशंकर महादेव मंदिर हरिद्वार रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन ने तकरीबन दस किमी दूरी पर नील पर्वत की तहलटी में बिजनौर हाईवे पर गंगा किनारे स्थित हैं। यहीं पर चंडी देवी मंदिर के लिए रोपवे भी बनाया गया है। यह मंदिर दिगंबर अणि अखाड़े के अधीन है। यहां तक पक्की सड़क है, हरिद्वार रेलवे और बस स्टेशन से यहां तक बस, टेंपो, टैक्सी के साथ-साथ निजी वाहनों से आसानी के साथ पहुंचा जा सकता है।
जो भी सच्चे मन से करता है जप, होती उनकी मनोकामनाएं पूरी
पुजारी महंत प्रेमदास महाराज का कहना है कि भगवान शंकर सृष्टि के पालनहार है। भगवान शिव के मंत्र ओम नम: शिवाय का जो भी भक्त सच्चे मन से जप करता है, भगवान उसकी मनोकामनाएं पूर्ण कर सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। चातुर्मास में भगवान शिव के हाथ में सृष्टि का संचालन होता है। भगवान शंकर जल मात्र से खुश होने वाले हैं।
शिवत्व: शिव करुणा के सागर
महामडलेश्वर हरिचेतनानंद महाराज ने बताया कि देवाधिदेव महादेव सृष्टि के सर्वशक्तिमान देव हैं। जो श्रवण मास में हरिद्वार में रहकर संसार की व्यवस्था का संचालन करते हैं। श्रवण मास में शिव की कृपा बरसती है, इसीलिए हरिद्वार में रुद्राभिषेक-जलाभिषेक करने वाले पर भगवान शिव की सीधी कृपा होती है। शिव करुणा के सागर हैं। अपने भक्तों के लिए उनकी दया अपार है। श्रवण मास में उनकी यह कृपा और भी बढ़ जाती है। शिव को जल खासकर गंगाजल बहुत प्रिय है, श्रवण मास जल की प्रधानता का मास है, यही वजह है कि श्रवण में भोले शंकर अपने भक्तों पर विशेष कृपावान रहते हैं।
भगवान शिव करुणा के सागर हैं। भोलेशंकर कभी कामदेव, कभी अघोर तो कभी तत्पुरुष जैसे अनेकाधिक रूपों में प्रकट होकर अपने भक्तों पर दया करते हैं, उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं, उन पर करुणा करते हैं। उन्होंने 27 अवतार लेकर अपने भक्तों पर हर वक्त कृपा बरसाई है। भगवान शिव शंकर सच्चे मन और भाव से अपने दरबार में आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं, उनके लिए वह करुणा का सागर बन जाते हैं।
वह सच्चे मन व भाव से अपने दरबार में आने वाले को कभी निराश नहीं करते, यही उनकी महिमा है और यही उनका गुणगान। अपने इन्हीं गुणों की वजह से भगवान शिव शंकर का एक नाम भोले भंडारी और भोले शंकर भी है। भगवान राम और कृष्ण के नामों के आगे भोला शब्द नहीं लगता, यह सिर्फ और सिर्फ भगवान शिवशंकर के नाम के ही आगे लगता है। केवल इन्हें ही भोला कहा जाता है और इनके नाम पर कांवड़ लेने आने वाले भक्तों को भी भोला व भोली का नाम दिया गया है।
सभी उन्हें इन्हीं नामों से बुलाते हैं। भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल को कंठ में धारण किया था और उसकी गर्मी को शांत करने के लिए उन्होंने गंगा में स्नान किया था, गंगा पर धरती पर आईं थी तो उन्होंने ही गंगा जी को अपनी जटाओं में धारण किया था।
यही वजह है कि उन्हें गंगाजल विशेष प्रिय है। श्रवण मास में वे गंगातट हरिद्वार में वास करते हैं, भगवान विष्णु के शयन में जाने पर यही से तीनों लोगों की सत्ता संभालते हैं, भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं। यही वजह है कि श्रवण मास में गंगाजल से शिव जलाभिषेक करने से उनकी विशेष करुणा व दया प्राप्त होती है।
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