Avalanche Story: कर्नल अजय कोठियाल ने बताया एवलांच का वाकया, कहा- 10 फीट बर्फ से हम सुरक्षित निकल आए थे बाहर
Avalanche In Uttarakhand वर्ष 2013 से 2018 तक नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) के प्राचार्य रहे कर्नल अजय कोठियाल (सेनि) ने बताया कि एक अभियान के दौरान अचानक एवलांच आया। इस दौरान हम लोग 10 फीट बर्फ में दब गए थे।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। Avalanche In Uttarakhand उत्तरकाशी जनपद के द्रौपदी डांडा हिमस्खलन (Avalanche) हादसे का उल्लेख होते ही कामेट हादसे से जूझ चुके कर्नल अजय कोठियाल (सेनि) की यादें ताजा हो उठी।
19 सितंबर 2010 की है बात
वह बताते हैं, 'बात 19 सितंबर 2010 की है। विश्व के आठवें सबसे ऊंची चोटी बनासलू (नेपाल) के आरोहण के लिए मैं सेना की टीम का चयन करने के मद्देनजर उसे बदरीनाथ धाम से आगे माणा के पास कामेट चोटी पर ले गया।
10 फीट बर्फ में दब गए थे हम
अभियान के दौरान लगभग 17 हजार फीट की ऊंचाई पर हमारा टेंट था। भीतर हम 16-17 लोग थे। तभी अचानक हिमस्खलन हुआ और हम 10 फीट बर्फ में दब गए। तब सबसे पहले मैं बर्फ से बाहर निकला और फिर टीम के अन्य सदस्यों को निकालने में सफलता पाई। यद्यपि, इस दौरान हमने दो अधिकारियों को खोया।
पैदल हम बेस कैंप तक पहुंचे
कर्नल कोठियाल के अनुसार बर्फ निकलकर हम पैदल बेस कैंप तक पहुंचे। घटनास्थल से बेस कैंप पहुंचने में लगभग पौन घंटा लगना था, लेकिन हमें वहां तक आने में 28 घंटे लग गए। तब फ्रास बाइट (बर्फ लगना) की भी दिक्कत थी, लेकिन दो अधिकारियों को छोड़ सभी सुरक्षित निकल आए।
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स्पिट टेस्ट होता है महत्वपूर्ण
निम के पूर्व प्राचार्य एवं जून 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य से जुड़े रहे कर्नल कोठियाल के अनुसार बर्फ में दबने पर स्वयं को बचाना भी निम में दिए जाने वाले प्रशिक्षण का हिस्सा होता है। इसमें स्पिट टेस्ट महत्वपूर्ण है।
बर्फ में दबने पर नहीं चलता गुरुत्वाकर्षण का पता
उन्होंने बताया कि बर्फ में दबने पर गुरुत्वाकर्षण का पता नहीं चल पाता। ऐसे में बर्फ में दबने पर थूका जाता है। यदि स्पिट (थूक) आपकी तरफ आता है तो इसका अर्थ है कि आपका मुंह ऊपर की तरफ है। यदि नीचे की तरफ आया तो आपका मुंह जमीन की तरफ है। यह स्पष्ट होने पर बर्फ से निकलने के प्रयास किए जाते हैं।
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