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    Avalanche in Uttarkashi: आखिर क्‍या हुआ होगा द्रौपदी के डांडा में? कर्नल अजय कोठियाल ने बताई हादसे की वजह

    By kedar duttEdited By: Sunil Negi
    Updated: Wed, 05 Oct 2022 03:44 PM (IST)

    Avalanche in Uttarkashi नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्राचार्य रहे कर्नल अजय कोठियाल (सेनि) के अनुसार प्रशिक्षण के लिए हर तरह की परिस्थतियां इस चोटी में हैं। भारी बर्फबारी और मौसम का अजीब रुख हादसे की वजह हो सकते हैं।

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    Avalanche in Uttarkashi: नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) के प्राचार्य रहे कर्नल अजय कोठियाल (सेनि)।

    केदार दत्त, देहरादून। Avalanche in Uttarkashi: कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी उत्पन्न हो जाती हैं, जिन्हें भांपना बहुत मुश्किल हो जाता है। संभवतया द्रौपदी डांडा हिमस्खलन हादसे में भी ऐसा ही हुआ होगा।

    वैसे भी वर्तमान में मौसम का रुख अजीब बना हुआ है। हम वर्षा का ही सटीक अनुमान नहीं लगा पा रहे। कहीं अचानक अत्यधिक वर्षा हो रही है, तो कहीं बिल्कुल नहीं। बर्फबारी के मामले में तस्वीर इससे अलग नहीं है।

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    मौसम का जैसा बदला रुख है, उसमें आप कितने भी प्रशिक्षित क्यों न हो, उसका पूर्वानुमान नहीं लगा सकते। यह कहना है नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) के प्राचार्य रहे कर्नल अजय कोठियाल (सेनि) का।

    'दैनिक जागरण' से बातचीत में उन्होंने कहा कि पर्वतारोहण प्रशिक्षण के लिए द्रौपदी का डांडा सुरक्षित चोटी मानी जाती है, लेकिन अभियान के दौरान भारी बर्फबारी और मौसम का अजीब रुख इस हादसे की वजह हो सकते हैं।

    इसलिए सुरक्षित मानी जाती है यह चोटी

    वर्ष 2013 से 2018 तक निम के प्राचार्य रहे कर्नल कोठियाल बताते हैं कि द्रौपदी का डांडा में चलने वाले अभियानों में इस तरह के हादसों की आशंका नहीं रहती। यह चोटी छांटी ही इसलिए गई है, क्योंकि वह सुरक्षित है। लगभग 17500 फीट की ऊंचाई वाली इस चोटी के स्लोप बहुत खतरनाक नहीं हैं।

    • प्रशिक्षु को जिस तरह का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, उसके समर्थन में यहां सभी तरह की परिस्थितियां हैं। कैसे बर्फ में चलना है, पिटआन व रोप लगाने हैं, कहां सांस फूलती है, कैसे उपकरणों का इस्तेमाल करना है, कैसे टीम भावना के साथ सबके सहयोग से आगे बढ़ना है, यहां सब कुछ सीखा जाता है।

    हर तरह की परिस्थितियां होने के बाद ही इस चोटी का चयन किया गया। यहां के प्रशिक्षण के बाद आप किसी भी तरह की चोटी का आरोहण कर सकते हैं। साथ ही यह भी सीखते हैं कि मौसम के रुख को देखते हुए कैसे कार्ययोजना बनानी है। यद्यपि, यहां ऐसा स्लोप नहीं कि एवलांच आ जाए। इस जगह एवलांच की संभावना कम रहती है, लेकिन इस बार आया तो है ही।

    एडवांस कोर्स की समाप्ति पर अभियान

    निम के प्राचार्य रहने के दौरान चार बार द्रौपदी का डांडा का आरोहण कर चुके कर्नल कोठियाल ने बताया कि निम का प्रशिक्षण सबसे उत्तम प्रशिक्षण है। सबसे पहले प्रशिक्षुओं की 28 दिन की बेसिक कोर्स की ट्रेनिंग होती है और फिर एडवांस ट्रेनिग कोर्स की।

    • एडवांस कोर्स जब समाप्ति की ओर होता है, तब प्रशिक्षुओं को इस चोटी के आरोहण अभियान में ले जाया जाता है। निम के सभी प्रशिक्षक ट्रेंड होने के साथ ही एवरेस्ट चढ़े हैं।

    कुछ ने केदारनाथ के पुनर्निर्माण में भूमिका निभाई है। यहां के अनुदेशक भी ट्रेंड और ऐसे हादसों के न्यूनीकरण के लिए सबसे ज्यादा क्वालिफाइड हैं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ के लोग भी निम से प्रशिक्षित हैं।

    एहतियातन लिए गए होंगे सभी निर्णय

    कर्नल कोठियाल ने कहा कि द्रौपदी का डांडा में क्या हुआ होगा, ये तो नहीं मालूम, लेकिन अभियान शुरू होने पर एहतियातन सभी तरह के निर्णय लिए गए होंगे। वैसे भी जब समिट के लिए जाते हैं तो बेसकैंप में भी एक टीम रहती है, लेकिन मौके पर उसे पहुंचने में भी तीन-चार घंटे लग जाते हैं।

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    मुश्किलों में घुसने से बचना चाहिए

    कर्नल कोठियाल के मुताबिक पर्वतारोहण व ट्रैकिंग के अभियानों के दौरान भी हादसे हो रहे हैं, इससे बचने के लिए आवश्यक है कि हम मुश्किलों में घुसने से बचें। मसलन, मौसम खराब है तो अभियान में आगे बढ़ने से बचना चाहिए।

    • यह सुनिश्चित होना चाहिए कि ट्रैकिंग व पर्वतारोहण अभियानों में उन्हीं व्यक्तियों को अनुमति मिले, जो योग्य, अनुभवी व प्रशिक्षित हों। आरोहण में पहले कम ऊंचाई वाले पहाड़ पर चढ़ाई करनी चाहिए और फिर अधिक ऊंचाई की। साथ ही अभियान दल की आपस में समझ ठीक हो।

    मेडिकल टीम, संचार के लिए सेट आदि भी होने आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि यदि जरा भी तबीयत खराब हो तो आगे बढ़ने से बचना चाहिए। मौसम खराब है और जोखिम की संभावना दिखे तो तुरंत वापस लौटना चाहिए।

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