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रंग लाया विंग कमांडर अनुपमा जोशी का संघर्ष, महिलाओं को सेना में मिलेगा स्थायी कमीशन

देहरादून निवासी विंग कमांडर (सेनि) अनुपमा जोशी ने सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन के लिए संघर्ष किया। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्थाई कमीशन पर एतिहासिक फैसला दिया है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 25 Feb 2020 12:19 PM (IST)Updated: Tue, 25 Feb 2020 12:19 PM (IST)
रंग लाया विंग कमांडर अनुपमा जोशी का संघर्ष, महिलाओं को सेना में मिलेगा स्थायी कमीशन
रंग लाया विंग कमांडर अनुपमा जोशी का संघर्ष, महिलाओं को सेना में मिलेगा स्थायी कमीशन

देहरादून, सुकांत ममगाईं। सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन का रास्ता साफ हो गया है। इस सपने को कहीं न कहीं दून निवासी विंग कमांडर (सेनि) अनुपमा जोशी ने पंख दिए। महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन की उनकी लड़ाई अब मुकाम तक आ पहुंची है।

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अनुपमा जोशी देश की उन महिला ऑफिसर्स में शुमार हैं, जिन्होंने 1993 में भारतीय एयरफोर्स ज्वाइन की थी। वायुसेना में महिला अधिकारियों का यह पहला बैच था। इसके बाद वह अपनी मेहनत और जज्बे के बल पर आगे बढ़ती रहीं। पांच साल की सर्विस के बाद आवाज उठाई तो उन्हें तीन साल और फिर तीन साल का एक्सटेंशन मिला। हर बार टुकड़ों में मिल रहे एक्सटेंशन से वह खिन्न आ गईं। वर्ष 2002 में उन्होंने इसके लिए अपने सीनियर अधिकारियों से लिखित में जवाब मांगा।

यहां से कोई जवाब न मिलने पर चीफ को पत्र लिखकर जवाब मांगा। कहीं से कोई जवाब नहीं आया तो फिर उन्होंने इसके लिए कोर्ट में मुकदमा करने की ठान ली। 2006 में उन्होंने कोर्ट में याचिका दाखिल की। कोर्ट ने इस केस की सुनवाई में नई भर्तियों को स्थायी कमीशन देने का फैसला दिया, लेकिन सेवारत महिला अधिकारियों का फैसला नहीं हो पाया। 2008 में वह रिटायर हो गईं, लेकिन उनका संघर्ष जारी रहा। इस बीच कुछ अन्य अधिकारियों ने भी सेना में तैनात महिलाओं को स्थायी कमीशन देने को मामला दायर किया। इस पर हाईकोर्ट ने महिला अधिकारियों के पक्ष में अपना निर्णय सुनाया।

वायुसेना ने यह निर्णय तभी मान लिया था। सेना में हाईकोर्ट के फैसले के नौ साल बाद 10 विभागों में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने की नीति बनाई गई, लेकिन कहा गया कि मार्च-2019 के बाद से सर्विस में आने वाली महिला अफसरों को ही इसका फायदा मिलेगा। इस तरह वे महिलाएं स्थायी कमीशन पाने से वंचित रह गईं, जिन्होंने इस मसले पर लंबे अरसे तक कानूनी लड़ाई लड़ी। पर अब सुप्रीम कोर्ट ने स्थाई कमीशन पर एतिहासिक फैसला दिया है। ऐसे में अनुपमा को भी लगता है कि करीब 14 साल पहले उनके द्वारा शुरू किया गया संघर्ष अब अपने मुकाम पर आ पहुंचा है।

वह कहती हैं कि महिलाएं भी पुरुषों के बराबर ही सामर्थ्‍यवान हैं। महिलाओं के स्थाई कमीशन के लिए भी मेरा यही तर्क था। वह कहती हैं कि हमें पुरानी सोच से बाहर आने की जरूरत है, फिर चाहे वह बेटी को लेकर हो, पत्नी के लिए, महिला कर्मचारी के लिए या फिर किसी और भूमिका में किसी महिला के लिए। मैं उन काल्पनिक बंधनों से आजादी की मांग करती हूं, जो सिर्फ महिलाओं के लिए बनाए गए हैं। ऐसे बंधन, जो महिलाओं की सोच पर बंदिश लगाते हैं, उनकी पंसद पर बंदिश लगाते हैं।

परिवार ने हर कदम पर दिया सहयोग

अनुपमा के इस संघर्ष में परिवार का हर कदम पर सहयोग मिला। वायुसेना में अधिकारी बनने की बात पर वह बताती हैं कि उनके पिता सुभाष जोशी इंडियन फॉरेस्ट सर्विस में थे और उन्होंने अपने मातहत महिलाओं को दूरस्थ क्षेत्रों में शिद्दत से काम करते देखा था। ऐसे में वह उनके वायुसेना में जाने परकाफी उत्साहित थे, क्योंकि उन्हें पता था कि सैन्य सेवा के लिए वह किस कदर जुनून रखती हैं। स्थाई कमीशन की लड़ाई में भी उन्हें न केवल अपने माता-पिता बल्कि पति का भी पूरा सपोर्ट रहा। उनके पति अशोक शेट्टी भी वायुसेना से विंग कमांडर के पद से रिटायर हैं। वह अब एक कमर्शियल पायलट हैं। उत्तराखंड सरकार के लिए भी वह फ्लाइंग कर चुके हैं। वर्तमान में वह दिल्ली में कार्यरत हैं। उनका बेटा अगस्त्य भी एक कमर्शियल पायलट है। वहीं अनुपमा देश के प्रतिष्ठित द दून स्कूल में डायरेक्टर पर्सनल के पद पर कार्यरत हैं।

ग्रामीण जनता को दे रहीं आर्थिक संबल

समाज को आगे बढ़ाने का जज्बा और हौसला अनुपमा में शुरू से ही है। वर्ष 2008 में रिटायरमेंट के बाद उन्होंने सहस्रधारा क्षेत्रीय ग्रामीण फाइनेंशियल सर्विस की नींव रखी। जिसकी उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 28 शाखाएं हैं। सहस्रधारा क्षेत्रीय ग्रामीण फाइनेंशियल सर्विस लघु ऋण, इंश्योरेंस आदि के कार्यों से जुड़ी है। जिसका मकसद पहाड़ के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवा प्रदान करना व लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना है। यानि अपनी इस मुहिम के तहत अनुपमा ग्रामीण लोगों को स्वावलंबी बना रही हैं।

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यह संस्था अब तक 68 करोड़ से अधिक का ऋण दे चुकी है। स्थाई कमीशन पर फैसला आने के बाद वायुसेना ने उन्हें दोबारा फोर्स ज्वाइन करने को कहा था, पर वह अपने कदम आगे बढ़ा चुकी थीं। महिलाओं के लिए उनका संदेश है कि हमेशा खुलकर अपने विचार व्यक्त करें। आप अपनी स्थितियों का आंकलन करें, लेकिन भविष्य में क्या हो जाएगा, इस बात की चिंता में पड़कर आगे कदम बढ़ाने से न डरें। ऐसा वक्त भी आएगा, जब लोग आपके विचारों को सुनेंगे। अपने लक्ष्य को पाने की दिशा में सतत प्रयास करती रहें, क्योंकि आपका यही प्रयास आपको मंजिल तक पहुंचाएगा।

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