आंदोलन के मोर्चे पर तैनात 'चिपको' की वयोवृद्ध सिपाही, जानिए उनके बारे में
जंगलों को बचाने में अहम योगदान देने वाली 80 वर्षीय सुदेशा बहन आज भी खामोशी के साथ आंदोलन के मोर्च पर तैनात हैं।
नई टिहरी, अनुराग उनियाल। 'चिपको' आंदोलन में आगे रहकर जंगलों को बचाने में अहम योगदान देने वाली 80 वर्षीय सुदेशा बहन आज भी खामोशी के साथ आंदोलन के मोर्च पर तैनात हैं। यह ठीक है कि आज वह जंगलों को बचाने की लड़ाई नहीं लड़ रहीं, लेकिन लोगों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश बखूबी दे रही हैं। नौ फरवरी 1978 को नरेंद्रनगर में गिरफ्तारी देने वाली सुदेशा बहन का कहना है कि वर्तमान दौर में हरियाली बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए सभी को फिर से आगे आना होगा।
टिहरी जिले के रामपुर गांव निवासी सुदेशा बहन उम्र के इस पड़ाव पर भी हरियाली और पर्यावरण के लिए फिक्रमंद रहती हैं। एक दौर में उन्होंने 'चिपको' आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी और वर्तमान में नागणी के पास अपने गांव रामपुर में जैविक खेती कर रही हैं। इस काम में सुदेशा बहन के दामाद साहब सिंह सजवाण भी उनकी मदद करते हैं। गांव में वह चार खेतों में 27 तरह की फसलों को जैविक तरीके से उगाती हैं। साथ ही अन्य ग्रामीणों को भी पर्यावरण संरक्षण के लिए जैविक खेती करने को प्रोत्साहित करती हैं।
सुदेशा बहन कहती हैं कि आज के दौर में पर्यावरण को बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। विकास के नाम पर जंगल के जंगल काटे जा रहे हैं, जिसका असर जंगली जानवरों पर भी पड़ रहा है। वह आबादी के करीब आ खेती और इंसान को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लिहाजा, पर्यावरण बचाने के लिए जंगल बचाए जाने बेहद जरूरी हैं। इतिहासकार महिपाल सिंह नेगी बताते हैं कि वह भी सुदेशा बहन के गांव में खेती के तरीके को देखकर हैरान हैं। इस उम्र में भी वह जैविक खेती को समर्पित हैं। अगर उनकी यही पहल आंदोलन का रूप ले ले तो जैविक खेती को तो बढ़ावा मिलेगा ही, पर्यावरण का संरक्षण भी होगा।
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सुदेशा बहन का संघर्ष
सुदेशा बहन का जन्म वर्ष 1939 में लाहौर में हुआ था। उनके पिता हरि सिंह सजवाण वहां पर नौकरी करते थे। विभाजन के बाद वह भारत आ गए। 15 साल की उम्र में रामपुर गांव निवासी कुलवीर सिंह रौतेला से सुदेशा बहन की शादी हो गई। उनके पति फौज में थे। वर्ष 1971 में पति के सेवानिवृत्त होने के बाद सुदेशा भी घर आ गईं। पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, धूम सिंह नेगी आदि के संपर्क में आने के बाद वर्ष 1978 में वह 'चिपको' आंदोलन से जुड़ गईं।
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उन्होंने आसपास की महिलाओं को भी अपने साथ जोड़ा और नौ फरवरी 1978 को नरेंद्रनगर में गिरफ्तार होकर जेल भी गईं। इससे उनका हौसला और मजबूत हो गया। अपने तीनों बच्चों की परवरिश के साथ उन्होंने आंदोलन को भी पूरा वक्त दिया। 'चिपको' के अलावा सुदेशा बहन ने नागणी में सिंचाई जल संघर्ष, कटाल्डी खनन विरोधी आंदोलन और बलिप्रथा विरोधी आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई।
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