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    रोडवेज में 260 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी

    रोडवेज के 260 चालक परिचालक और अन्य कर्मचारियों की नौकरी खतरे में है। चालक-परिचालक अक्षम होने का हलफनामा देकर बसों पर ड्यूटी देने के बजाए कार्यालय में जमे हुए हैं।

    By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 13 Aug 2019 08:33 PM (IST)
    रोडवेज में 260 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी

    देहरादून, जेएनएन। राज्य परिवहन निगम (रोडवेज) के 260 चालक, परिचालक और अन्य कर्मचारियों की नौकरी खतरे में है। चालक-परिचालक अक्षम होने का हलफनामा देकर बसों पर ड्यूटी देने के बजाए कार्यालय में जमे हुए हैं, जबकि कुछ भ्रष्टाचार में संलिप्त बताए जा रहे। अब सभी अक्षम व दागी कार्मिकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति की तैयारी हो रही है, जो पचास साल से ऊपर हैं। इन्हें सेवा के शेष वर्षो के आधार पर एकमुश्त रकम देकर सेवानिवृत्त करा दिया जाएगा। इसका प्रस्ताव शासन को भेजा जा रहा है।

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    प्रबंधन ये भी मान रहा कि इस पर करोड़ों का भार आएगा, लेकिन प्रबंध निदेश रणवीर चौहान ने कहा कि प्रस्ताव मंजूर होने पर इस भार की व्यवस्था भी की जाएगी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चार साल पहले बस सेवा को आवश्यक सेवा की श्रेणी मानकर उत्तर प्रदेश परिवहन निगम को अक्षम चालक-परिचालकों को स्थायी रूप से सेवा मुक्त करने के आदेश दिए थे। उच्च न्यायालय ने इन कर्मचारियों को सेवा के शेष वर्षो का एकमुश्त भुगतान करने के आदेश दिए थे। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम ने आदेशानुसार कार्रवाई भी की थी लेकिन उत्तराखंड परिवहन निगम इससे कन्नी काट रहा था। इस बीच उत्तराखंड सरकार ने भी सार्वजनिक आदेश जारी किया कि जो कर्मी 50 साल से ऊपर हैं व दक्ष नहीं हैं उनकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति की की जाए। सरकार के इस आदेश और उत्तर प्रदेश हाइकोर्ट के फैसले को नजीर बनाते हुए अब उत्तराखंड परिवहन निगम भी दागी व अक्षम कार्मिकों को सेवा से बाहर करने की तैयारी कर रहा है। उत्तराखंड परिवहन निगम के रिकार्ड में 140 चालक व परिचालक अक्षम हैं। इनमें दुर्घटना में अक्षम चालक-परिचालक महज दस फीसद बताए जा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो बाकी चिकित्सीय प्रमाण-पत्र बनाकर ही अक्षम बने हुए हैं। निगम सिर्फ इनके वेतन पर लगभग 80 लाख रुपये प्रतिमाह खर्च कर रहा। इसके अलावा 120 कर्मी दागी व लापरवाह हैं। निगम अधिकारियों की मानें तो कार्यालय में बैठे इनमें से ज्यादातर कर्मचारी केवल नेतागिरी कर रहे, जबकि निगम को आउट सोर्सिग व संविदा पर चालक-परिचालकों की कमी दूर करनी पड़ी रही।

    रणवीर सिंह चौहान (प्रबंध निदेशक, उत्तराखंड परिवहन निगम) का कहना है कि जो कर्मचारी बसों पर डयूटी देने के लिए हैं, वे कार्यालय में बैठे हैं। ऐसे में सरकार के आदेश पर इन कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिलाए जाने का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा गया है। ताकि इनके स्थान पर नए कुशल कर्मचारी नियुक्त किए जा सकें। वैसे भी चालक और परिचालकों की निगम में काफी कमी है।

    ये हैं परिवहन निगम के मानक

    • मैदानी मार्ग पर चालक-परिचालक को न्यूनतम 180 किमी प्रतिदिन की औसत से 4500 किमी प्रतिमाह करना अनिवार्य है।
    • पर्वतीय मार्ग पर 120 किमी प्रतिदिन की औसत से 3000 किमी प्रतिमाह अनिवार्य।
    • मिश्रित मार्ग पर न्यूनतम 3800 किमी प्रतिमाह अनिवार्य।

    (नोट: ये मानक माह में 25 कार्यदिवस के आधार पर किया गया है।)

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