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    सेवा व समर्पण का जंगल, पेड़-पौधों को छू नहीं पाती आग की लपटें; बंगाल टाइगर ने बनाया ठिकाना

    Updated: Thu, 27 Feb 2025 06:46 PM (IST)

    Advaita Ashrama Mayavati मायावती आश्रम का जंगल एक अनोखा उदाहरण है जहाँ सेवा और समर्पण की भावना हर पेड़ से महसूस की जा सकती है। मानवीय हस्तक्षेप और जंगल की आग से सुरक्षित यह जंगल न केवल जिले का बल्कि पूरे उत्तराखंड का एक आदर्श वन है। आश्रम में आने वाले हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आध्यात्मिक शांति के साथ-साथ यहाँ की प्राकृतिक विविधता से भी प्रेरणा लेते हैं।

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    Advaita Ashrama Mayavati: वन से घिरा उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित अद्वैत मायावती आश्रम। जागरण

    विनोद चतुर्वेदी, चंपावत। Advaita Ashrama Mayavati: जलवायु परिवर्तन के कारण तापवृद्धि का नुकसान इंसानों के साथ-साथ वन्यजीव व वनों को भी झेलना पड़ रहा है। 60 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र वाले उत्तराखंड में हर वर्ष जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन चंपावत जिले में एक जंगल ऐसा भी है जिसे दशकों से आग की लपटें छू तक नहीं पाई।

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    बात हो रही है लोहाघाट नगर से नौ किलोमीटर दूर अद्वैत आश्रम मायावती के पंचायत वन की। 152 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस मिश्रित जंगल की एक विशेषता यह भी है कि यहां नाममात्र का भी मानवीय हस्तक्षेप नहीं है। यहां का हर वृक्ष स्वामी विवेकानंद को समर्पित है।

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    माडल फारेस्ट के रूप में बनी पहचान

    बंगाल टाइगर समेत तमाम वन्यजीव यहां स्वछंद विचरण करते हैं। यही नहीं जैवविविधता से परिपूर्ण यह जंगल पूरे देश के लिए एक माडल फारेस्ट की पहचान भी बन गया है।

    सघन वन से घिरा उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित अद्वैत मायावती आश्रम। जागरण

    इस जंगल में नहीं पहुंच पाती आग की लपटें

    युग पुरुष स्वामी विवेकानंद के अंग्रेज शिष्य सेवियर दंपती ने 125 वर्ष पूर्व अद्वैत आश्रम मायावती की स्थापना की थी। यहां की सुंदरता में चार चांद लगाने वाले पंचायत वन में बांज (ओक) के पेड़ों की अधिकता है। बुरांश, काफल, उतीश, रियांज, खरसू आदि के पेड़ भी जंगल में काफी हैं। जंगल इतना सघन है कि सूर्य की किरणें छन-छन कर धरती पर पड़ती हैं।

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    पिछले 10 वर्षों में उत्तराखंड के अन्य जिलों की तरह ही चंपावत जनपद में भी वनाग्नि की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। 15 फरवरी से फायर सीजन शुरू होते ही जिले का कोई ऐसा जंगल नहीं बचता जहां आग लगने की घटना न होती हो, लेकिन 152 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस जंगल में आग की लपटें नहीं पहुंच पाती। आश्रम में काम करने वाले कर्मचारी रात दिन जंगल की सुरक्षा करते हैं। फायर सीजन में आसपास के जंगलों में लगी आग को इस जंगल तक पहुंचने से पहले ही बुझा दिया जाता है।

    बंगाल टाइगर ने बनाया ठिकाना

    मायावती के घने जंगल की अनुकूल परिस्थितियों के चलते यहां अब बंगाल टाइगर ने भी अपना आशियाना बना लिया है। जंगल से बाहर निकलने पर बंगाल टाइगर अक्सर दिखाई देता है।

    चंपावत वन प्रभाग के डीएफओ नवीन चंद्र पंत बताते हैं कि जंगल में मानवीय हस्तक्षेप न होने से वन्यजीवों का स्वछंद विचरण होता है। मायावती के घने जंगलों में बंगाल टाइगर के अलावा, गुलदार, हिरन, काकड़, बारहसिंगा आदि वन्यजीव हैं। विभाग अब इस बात का पता लगा रहा है कि बंगाल टाइगर ने यहां अपना स्थायी ठिकाना बनाया है या वह मैदानी क्षेत्र से प्रवास के लिए यहां पहुंचता है।

    जंगल से बहती हैं जल धारा

    मौसम चक्र में आए बदलाव के कारण भले ही मायावती आश्रम के समीपवर्ती गांवों के जलस्रोत सूख चुके हैं लेकिन मायावती के जंगल में चौड़ी पत्ती व गहरी जड़ों वाले विभिन्न प्रजातियों के वृक्षों की बहुलता के कारण जंगल से निकलने वाली जलधारा से कई गांवों के लोगों की प्यास बुझती है। इस जंगल से निकलने वाले स्रोत से लोहाघाट से लगे बिशंग क्षेत्र के दर्जनभर गांवों के लिए पेयजल योजना बनाई गई है।

    आश्रम के संतों की देखरेख में ही प्रबंधन

    वर्ष 1900 में आश्रम की स्थापना के समय भी यहां जंगल था। उसके बाद मायावती के जंगल की सुरक्षा व देखरेख का जिम्मा यहां के संतो ने संभाल लिया था। आश्रम की ओर से जंगल में सूखने वाले पेड़ों की जगह नए पौधे लगाए जाते हैं। पेड़ों के अवैध कटाव व पातन पर सख्त निगरानी रखी जाती है। जंगल में सूखी पत्तियों और घास का निस्तारण हर वर्ष किया जाता है ताकि वनाग्नि की घटना न हो सके।

    नवीन चंद्र पंत, प्रभागीय वनाधिकारी, चंपावत

    मायावती का जंगल एक ऐसी मिसाल हैं जहां हर वृक्ष से सेवा व समर्पण की महक आती है। मानवीय हस्तक्षेप व दावाग्नि से सुरक्षित होने के कारण यह जंगल न केवल जिले का बल्कि उत्तराखंड का माडल वन है। आश्रम आने वाले हजारों श्रद्धालु व पर्यटक आध्यात्मिक शांति के साथ यहां की प्राकृतिक विविधता से प्रेरणा लेते हैं। - नवीन चंद्र पंत, प्रभागीय वनाधिकारी, चंपावत