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    इस महिला ने हाथों में हल उठाकर बदली खेती की तस्वीर

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sun, 16 Apr 2017 04:30 AM (IST)

    चमोली जिले के प्रखंड घाट के गांव रामणी की 27 वर्षीय हेमा देवी ने हाथों में हल थामकर न सिर्फ खेती के लिए उम्मीद जगाई है, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन गई हैं।

    इस महिला ने हाथों में हल उठाकर बदली खेती की तस्वीर

    गोपेश्वर, [देवेंद्र रावत]: पुरुषों के खेती से विमुख होने या फिर रोजगार के लिए पलायन ने पहाड़ में खेत जोतने का संकट खड़ा कर दिया है। ऐसे में सीमांत चमोली जिले के पिछड़े प्रखंड घाट के दूरस्थ गांव रामणी की 27 वर्षीय हेमा देवी ने हाथों में हल थामकर न सिर्फ खेती के लिए उम्मीद जगाई है, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन गई हैं। उनकी देखादेखी अब गांव की कई महिलाएं खुद खेतों में हल जोतने लगी हैं। इतना ही नहीं, खेतों में राजमा, चौलाई, आलू, जौ, मंडुवा, झंगोरा समेत औषधीय पादप कुटकी उगाकर वह हजारों कमा रही है।

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    उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में स्थानीय संसाधनों से निर्मित हल भारी होने के कारण इससे खेत जोतने का कार्य पुरुषों के ही जिम्मे रहा है। फिर महिलाओं के लिए हल जोतना परंपरा के अनुसार गलत भी माना जाता है। ऐसे में हल जोतने के सिवा खेती के बाकी कार्य महिलाएं ही करती हैं। 

    वर्ष 2012 में रामणी गांव निवासी रणजीत सिंह के साथ शादी के बाद हेमा को भी इन्हीं अनुभवों से दो-चार होना पड़ा। असल में पुरुष वर्ग रोजगार की तलाश में लगातार गांव छोड़कर जा रहा है। ऐसे में खेती-किसानी के समय खेतों में हल जोतने की समस्या खड़ी हो गई है। उस पर गांव में हल जोतने वाले मजदूरों की भी कमी है, क्योंकि इससे ज्यादा फायदा मजदूरी व अन्य कार्यों में मिल जाता है।

    हेमा के पति पारंपरिक शैली में भवन निर्माण का काम करते हैं और अक्सर गांव से बाहर रहते हैं। जाहिर है कार्य की व्यस्तता के बीच हल लगाना उनके लिए भी कहीं से फायदे का काम नहीं था। ऐसे मौके पर हेमा की सूझबूझ काम आई। उसे कृषि से लगाव तो था ही, वह यह भी जानती थी कि जैविक खेती कर उगाए गए अनाज की कीमत क्या है। 

    सो, हेमा ने ठान लिया कि वह हल जोतने का कार्य खुद करेगी और 2013 में उसने इस दिशा कदम भी बढ़ा दिए। शुरुआत में उसकी आलोचना भी हुई, लेकिन धीरे-धीरे गांव की अन्य महिलाओं ने हल जोतने का कार्य अपने हाथों में लेकर पूरी तरह खुद को कृषि पर निर्भर कर दिया। आज रामणी गांव की तीन हजार नाली से अधिक भूमि पर जैविक खेती हो रही है।

    अगर रामणी का कोई परिवार मैदानी क्षेत्र में माइग्रेट है तो उसकी जमीन जोतकर भी गांव के लोग मुनाफा कमा रहे हैं। लोगों ने औषधीय कुटकी का कृषिकरण भी शुरू कर दिया है। पहले तो ग्रामीण जंगलों से इसकी पौध लाते थे, लेकिन उन्होंने खुद की नर्सरी तैयार कर ली है। बकौल हेमा, 'सूबे के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को परंपरा से हटकर हल जोतने के लिए आगे आना चाहिए। महिलाएं खेती की बारीकियां समझती हैं, इसलिए हल भी ठीक ढंग से लगाकर दोहरी मेहनत से बचती हैं।

    छात्रा रीना भी चलाती है हल

    11वीं कक्षा में पढ़ने वाली रामणी गांव की रीना भी अपने खेतों में स्वयं हल लगाती है। कहती है परिवार के साथ कृषिकरण का कार्य फायदेमंद है। मजदूर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।

    अनाज की मैदानी क्षेत्रों में खासी डिमांड है

    जिला कृषि अधिकारी दिनेश कुमार का कहना है कि रामणी में जैविक खेती से उत्पादित अनाज की मैदानी क्षेत्रों में खासी डिमांड है। यही वजह है कि रामणी के कृषि उत्पाद ऊंचे दामों पर हाथोंहाथ बिक जाते हैं।

    वर्तमान में उत्पादन

    उत्पाद-----------मात्रा (क्विंटल में)

    आलू-----------2000

    चौलाई----------200

    राजमा----------600

    मंडुवा-----------300

    झंगोरा----------300

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