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यहां भगवान शिव के साथ होती है रावण की पूजा, ये है मान्यता

चमोली जिले के बैरासकुंड में भगवान शिव का पौराणिक मंदिर है जहां रावण की भी पूजा की जाती है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 19 Oct 2018 08:53 PM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 09:00 PM (IST)
यहां भगवान शिव के साथ होती है रावण की पूजा, ये है मान्यता

गोपेश्वर, [देवेंद्र रावत]: उत्तराखंड में एक ऐसी भी जगह है जहां रावण भगवान शिव के साथ रावण की पूजा होती है। चमोली जिले के घाट विकासखंड स्थित बैरासकुंड में भगवान शिव का पौराणिक मंदिर है। कहते हैं कि यह वही स्थान है, जहां पर लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए दस हजार वर्ष तक तपस्या की थी। इस स्थान पर रावण शिला और यज्ञ कुंड आज भी मौजूद हैं। साथ ही भगवान शिव के प्राचीन मंदिर में शिव स्वयंभू लिंग के रूप में विराजमान हैं। श्रद्धालु यहां शिव के साथ रावण की भी श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं।

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'स्कंद पुराण' के केदारखंड में उल्लेख है कि यहां तपस्या के दौरान जब रावण अपने नौ शीश यज्ञ कुंड में समर्पित कर दसवें शीश को समर्पित करने लगा तो साक्षात भगवान शिव उसके सम्मुख प्रकट हो गए। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे मनवांछित वरदान दिए। लोक मान्यता है कि इस दौरान रावण ने भगवान शिव से सदा इस स्थान पर विराजने का वरदान भी मांगा था। यही कारण है कि आज भी इस स्थान को शिव की पवित्र भूमि के रूप में जाना जाता है। 

क्षेत्र की परंपराओं के जानकार पंडित हरि प्रसाद पुरोहित बताते हैं कि लंकापति रावण ने इसी स्थान पर 'नाड़ी विज्ञान' व 'शिव स्त्रोत' की रचना भी की थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि बैरासकुंड में शिव दर्शनों को आने वाले भक्त रावण को भी श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। कुंड के पास मौजूद रावण शिला में रावण की पूजा की जाती है। जानकारों का मानना है कि इस पूरे क्षेत्र का नाम रावण (दशानन) के नाम से ही दशोली पड़ा। दशोली (दशमोली) शब्द रावण के दस सिर का अपभ्रंश है। 

रावण के तप से शुरू होती है रामलीला

दशोली क्षेत्र में आज भी श्री रामलीला मंचन की शुरुआत रावण के तप और भगवान शिव द्वारा उसे वरदान दिए जाने से होती है। इसके बाद ही राम जन्म की लीला का मंचन होता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में विजयादशमी पर रावण के पुतले नहीं जलाए जाते। इसके पीछे सोच रावण के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना है। 

ऐसे पहुंचें

ऋषिकेश से बदरीनाथ हाइवे पर 198 किमी की दूरी तय कर नंदप्रयाग पहुंचा जाता है। यह बैरासकुंड मंदिर का बेस कैंप है। यहां से वाहन के जरिये 24 किमी की दूरी तय कर गिरी पुल होते हुए बैरासकुंड पहुंचा जाता है। बैरासकुंड में मंदिर समिति के आवास हैं और खाने-ठहरने की भी पर्याप्त व्यवस्था है।

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