ब्राजील से उत्तराखंड आई तीर्थयात्री, साड़ी पहन व नंगे पैर पूरी की शीतकालीन यात्रा; बोलीं- यहां मिली आत्मशांति
ब्राजील की अधिवक्ता फर्नाडा नंगे पैर चारधाम यात्रा कर रही हैं। उन्होंने अपनी यात्रा उत्तराखंड के चमोली से शुरू की है। फर्नाडा का कहना है कि यह यात्रा ...और पढ़ें

ज्योतिर्मठ के नृसिंह मंदिर में पूजा दर्शन करती ब्राजील की फर्नाडा। जागरण
देवेंद्र रावत, जागरण गोपेश्वर: ब्राजील की पेशे से अधिवक्ता 35 वर्षीय फर्नाडा पर उत्तराखंड के लोक संस्कारों का ऐसा रंग चढ़ा की वह आत्म शांति के लिए उत्तराखंड के चारों धामों की शीतकालीन यात्रा पर निकली।
साथ ही विदेशी परिधान को छोड़कर उत्तराखंड की परंपरागत धोती को पहनकर नंगे पैरों ही चारों धामों की शीतकालीन यात्रा पूरी की है। चारधामों के शीतकालीन पूजा स्थलों के महत्व को लेकर विदेशी महिला ने स्थानीय लोगों, पंडा पुजारियों से भी ज्ञान प्राप्त किया और अब वह इसे अपने शब्दों में बता रही है।
ब्राजील की रहने वाली 35 वर्षीय फर्नाडा पेशे से अधिवक्ता है। वह ईसाई समुदाय से तालुक रखती है। उसकी 10 वर्ष की बेटी भी है। बताया गया कि पारिवारिक व्यवस्थता, दिक्कतों के बीच आत्मशांति के लिए उन्होंने उत्तराखंड का नाम सुना था।
इसलिए वह भारत आई और हरि के प्रवेश द्वार हरिद्वार पहुंची। उन्हें उत्तराखंड में आध्यात्मिक शांति के लिए हिमालय में चार धामों की यात्रा करनी थी। लेकिन ये धाम तो शीतकाल में बंद हो जाते हैं। फर्नाडा ने बताया कि उसे फिर शीतकालीन यात्रा स्थलों को लेकर जानकारी मिली।
वह पांच दिसंबर को यमुनोत्री के शीतकालीन पूजा स्थल खरसारी गांव पहुंची। यहां पूजा दर्शनों के बाद गंगोत्री की शीतकालीन पूजा स्थल मखुबा गांव पहुंची। हर्षिल होते हुए केदारनाथ की शीतकालीन पूजा स्थल ऊखीमठ के बाद ज्योतिर्मठ के नृसिंह मंदिर व पांडुकेश्वर के योगध्यान बद्री मंदिर पहुंची।
फर्नाडा का कहना है कि मंदिरों के निर्माण की शैली उन्हें काफी पसंद आई है। फर्नाडा का कहना है कि केदारनाथ के शीतकालीन पूजा स्थल ऊखीमठ में तो घरेलू विवाद के समाधान का महत्व भी बताया गया।
धोती-साड़ी, सिर में पल्लू, मंदिरों में दंडवत प्रणाम के साथ पूजा परंपराओं का पूरी तरह निर्वहन करने के दौरान उनसे जो भी मिला वह उनकी भक्ति की सराहना करने लगा। हालांकि उन्हें सिर्फ अंग्रेजी भाषा का ही ज्ञान होने के कारण आम लोगों से बातचीत में दिक्कतें हुई।
फर्नाडा के साथ यात्रा कर रहे दरबंगा बिहार के रहने वाले सुजीत कुमार चौधरी का कहना है कि फर्नाडा प्रतिदिन स्नान के बाद ही मंदिरों के दर्शन करती थी। वह माथे पर पूजा का तिलक लगाने के साथ पुजारी पुरोहितों के पैर छूकर आशीर्वाद लेती थी।
उसने अब ज्योतिर्मठ में प्रण लिया है कि वह अब शाकाहारी जीवन बिताएगी। ज्योतिर्मठ के प्रभारी दंडी स्वामी मुकुंदानंद ब्रह्मचारी का कहना है कि फर्नाडा हिंदू धर्म से प्रभावित हुई है। वह उत्तराखंड के चारधामों में शीतकालीन यात्रा पर आई है।
तथा पूरी तरह धार्मिक परंपराओं मान्यताओं के निर्वहन के साथ यात्रा की है। वह यहां की धार्मिक मान्यताओं का गहराई से अध्ययन भी कर रही है। इसे अपने जीवन में उतार भी रही है।
फर्नाडा केदारनाथ के शीतकालीन पूजा स्थल ऊखीमठ की धार्मिक मान्यता को लेकर बताती है कि इस मंदिर परिसर में भगवान कृष्ण के पोते अनिरुद्ध की शादी हुई थी। यहां पर उसने विवाह वेदी स्थल के भी दर्शन किए। इस मंदिर के महत्व को लेकर साधु संतों से उसने जो सुना था वह सचमुच पाया।
बताया कि इस स्थान में जब श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध व बाणासुर की बेटी ऊषा के साथ प्रेम में भागने पर युद्ध हुआ तो स्वयं शिव ने भगवान कृष्ण व राक्षस राज बाणासुर के मध्य समझौता कर समाधान निकाला था। इस स्थान पर तप करने से आपसी विवाद से भी मुक्ति मिलती है।

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