Badrinath Pooja: अनोखी है यहां की परंपरा, कॉकरोच को भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं बदरी नारायण
बद्रीनाथ धाम में भगवान नारायण को दोपहर का भोजन कराने से पहले कॉकरोचों को भोग लगाया जाता है। मंदिर में यह सदियों पुरानी परंपरा है जिसके तहत भगवान को भोग लगाने से पहले सभी जीव-जंतुओं को तृप्त किया जाता है। कॉकरोचों के साथ गाय और पक्षियों को भी भोग चढ़ाया जाता है जिसके बाद भगवान नारायण राजभोग ग्रहण करते हैं।

संवाद सहयाेगी, जागरण, गोपेश्वर। देश के हर रसोई में अगर कॉकरोच हो जाए तो इसे मारने या भगाने के लिए तरह तरह की कीटनाशक दवाईयां को प्रयोग किया जाता है। इसे घृणा भाव से देखकर रसोई ही नहीं घर से भगाए जाने के लिए तरह तरह के उपाय किए जाते हैं लेकिन भूबैंकुंठ बदरीनाथ धाम में कॉकरोचों को भोग लगाने के बाद ही नारायण दोहपर का राजभोग ग्रहण करते हैं।
बदरीनाथ धाम में पूजा परंपराएं विशिष्ट हैं । यहां पर नारायण के लिए प्रतिदिन पूजा अर्चना के साथ भोग भी लगाया जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि बदरीनाथ धाम में प्रतिदिन पूजा परंपरा के दौरान भगवान बदरी विशाल के साथ-साथ कॉकरोच ,गाय और पक्षियों को भी भोग लगाना पड़ता है। भगवान इनको खिलाने के बाद ही खुद भोग ग्रहण करते हैं। यह भोग परंपरा बदरीनाथ मंदिर में सदियों से चली आ रही है।
बदरीनाथ मंदिर में भगवान नारायण को लगता है प्रतिदिन भाेग
बदरीनाथ मंदिर में भगवान नारायण को प्रतिदिन भोग लगता है। जिसके तहत प्रभात में भगवान को पंचमेवा भोग,अभिषेक के बाद भगवान रायण को बाल भोग,व पित्रों के लिए पिंड प्रसाद तैयार होता है। इसके बाद दोपहर को राज भोग में केसर चावल,दाल चावल का भोग लड्डू के साथ समर्पित होता है। सांय को नारायण को दूध भात का भोग लगाया जाता है। लेकिन खास बात तो यह है कि नारायण को दोपहर का राजभोग लगने से पूर्व कॉकरोच,गाय व पक्षियों को भोग लगाना पड़ता है।
ये है परंपरा के पीछे का तर्क
इस अनोखी परंपरा को लेकर पूर्व धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल का कहना है कि नारायण राजभोग ग्रहण करने से पहले विश्व में सभी जीव जंतु प्राणियों को तृप्ति करने की भावना रखते हैं। कहा कि कॉकरोचजिसे स्थानीय झोडू सांगला कहा जाता है प्राणी होने के नाते इनके लिए चावल का भोग लगता है जो तप्तकुंड के पास गरुड कुटी में रखा जाता है। यहां पर मौजूद कॉकरोच इस भोग को ग्रहण करते हैं। गाय और पक्षियों को लगने वाला भोग मंदिर परिसर में ही दिया जाता है।
ये भी है मान्यता
यह भी मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में बदरीनाथ धाम की स्थापना की थी। कहा जाता है कि उन्होंने भगवान विष्णु की पद्मासन शिला को तप्तकुंड से उठाकर गरुड़ शिला के नीचे स्थापित किया था, जहां ये कॉकरोच निवास करते थे। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि भगवान के साथ इन जीवों को भी भोग अर्पित किया जाए।
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