गलत खाते में ट्रांसफर हुए फीस से पैसे, बैंक ने लौटाने में कर दी देर; उपभोक्ता आयोग ने लिया एक्शन
उपभोक्ता आयोग ने एक मामले में कार्रवाई की जहां एक व्यक्ति ने गलती से किसी और के खाते में पैसे भेजे और बैंक ने उन्हें वापस करने में देरी की। आयोग ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और उपभोक्ता अधिकारों के महत्व पर जोर दिया। यह घटना वित्तीय लेनदेन में सावधानी बरतने की आवश्यकता को दर्शाती है।

गलत खाते में भेजी गई राशि लौटाने में देरी पर बैंक तथा ब्रोकरेज कंपनी पर कार्रवाई। प्रतीकात्मक
जागरण संवाददाता, बागेश्वर। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने एक महत्वपूर्ण आदेश में अल्मोड़ा अर्बन को-आपरेटिव बैंक, शाखा गरुड़ तथा बोनान्जा कमोडिटी ब्रोकर्स प्रालि दिल्ली को सेवा में कमी तथा अनुचित व्यापारिक व्यवहार का दोषी करार देते हुए कड़ी कार्रवाई की है। रेवाधर पिरसाली की शिकायत पर आयोग ने दोनों के विरुद्ध परिवाद स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि परिवादी ने 28 अप्रैल 2017 को स्कूल फीस के रूप में भेजी गई 2,10,000 राशि गलत खाता संख्या भरने के कारण बोनान्जा कंपनी के खाते में चली गई थी।
आयोग ने पाया कि बैंक को 31 जनवरी 2018 को ही यह जानकारी मिल गई थी कि राशि गलत खाते में चली गई है, परंतु बैंक ने न तो परिवादी को इसकी सूचना दी, न ही समय रहते वापसी की उचित कार्रवाई की। आयोग ने इसे घोर लापरवाही, उदासीनता तथा उपभोक्ता हितों की जानबूझकर अनदेखी माना। आयोग के अनुसार 2,10,000 रुपये गलत खाते में जमा होने की जानकारी होने के बावजूद बोनान्जा कमोडिटी ब्रोकर्स प्रालि ने न तो राशि लौटाई तथा न ही किसी प्रकार की पहल की। इससे कंपनी की दुर्भावनापूर्ण मंशा स्पष्ट होती है। अंततः आयोग के निर्देशों के बाद कंपनी ने 20 अक्टूबर 2025 को राशि वापस की।
आयोग का निर्णय
आयोग के अध्यक्ष राजेश कुमार जायसवाल, सदस्य हंसी रौतेला ने पारित आदेश में परिवादी को मानसिक वेदना के लिए 30,000, वाद व्यय के लिए 20,000 रुपये कुल 50000 रुपये, जो तत्कालीन शाखा प्रबंधक पर अर्थदंड, वेतन से कटौती के निर्देश सहित यह राशि आदेश के 45 दिनों के भीतर अदा करनी होगी।
बोनान्जा कमोडिटी ब्रोकर्स प्रालि गलत खाते में जमा 2,10,000 पर 28 अप्रैल 2017 से 20 अक्टूबर 2025 तक छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित भुगतान का आदेश। अनुचित व्यापारिक व्यवहार के लिए 25,000 का अर्थदंड।
निर्णय का महत्व
यह आदेश उपभोक्ता संरक्षण में बैंकिंग जिम्मेदारियों की अनदेखी तथा वित्तीय लेन-देन में लापरवाही के मामलों में एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है। आयोग ने स्पष्ट किया कि उपभोक्ता को सही सूचना न देना तथा वर्षों तक फाइल दबाकर रखना गंभीर अपराध है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।