BHU के चिकित्सा विज्ञान संस्थान में सीवियर एप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित बच्चे का सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में 9 वर्षीय बालक का सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया। वह सीवियर एप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित था जिससे उसे बार-बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती थी। चिकित्सकों की टीम ने सतर्कतापूर्वक इस जटिल प्रक्रिया को पूरा किया। बीएचयू में अब तक 35 बोन मैरो ट्रांसप्लांट हो चुके हैं जिनमें दो मरीज शामिल हैं।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के बाल रोग विभाग द्वारा एक नौ वर्षीय बालक, जो गंभीर रक्त विकार सीवियर एप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित था, का सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया। यह बालक वाराणसी का निवासी है और ट्रांसप्लांट से पहले उसे बार-बार भारी मात्रा में रक्त और प्लेटलेट्स की आवश्यकता पड़ रही थी।
सीवियर एप्लास्टिक एनीमिया एक दुर्लभ लेकिन गंभीर स्थिति है जिसमें शरीर की अस्थिमज्जा (बोन मैरो) रक्त कोशिकाओं का निर्माण करना बंद कर देती है। इससे रोगी को बार-बार संक्रमण, रक्तस्राव और थकावट जैसी समस्याएं होती हैं। इस स्थिति का एकमात्र प्रभावी उपचार बोन मैरो ट्रांसप्लांट है, जो विशेषज्ञ चिकित्सा सुविधाओं में ही संभव होता है।
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इस ट्रांसप्लांट का नेतृत्व बीएचयू के विभिन्न विभागों की संयुक्त टीम ने किया, जिसमें प्रोफेसर विनीता गुप्ता, प्रोफेसर,डिवीजन ऑफ पीडियाट्रिक हीमेटोलॉजी ऑन्कोलॉजी /बोन मैरो ट्रांसप्लांट, बाल रोग विभाग; डॉ. प्रियंका अग्रवाल, एसोसिएट प्रोफेसर, डिवीजन ऑफ पीडियाट्रिक हीमेटोलॉजी ऑन्कोलॉजी /बोन मैरो ट्रांसप्लांट, बाल रोग विभाग; डॉ. संदीप कुमार, प्रोफेसर, पैथोलॉजी विभाग एवं प्रभारी, ब्लड बैंक; डॉ. ईशान कुमार, प्रोफेसर, रेडियोलॉजीडायग्नोसिस विभाग; "प्रोफेसर नेहा सिंह, प्रभारी प्रोफेसर, फ्लो साइटोमेट्री प्रयोगशाला, एचबीसीएच" डॉ. नवीन, फेलो (डिवीजन ऑफ पीडियाट्रिक हीमेटोलॉजी ऑन्कोलॉजी /बोन मैरो ट्रांसप्लांट) ; डॉ. चंद्रदीप, सीनियर रेज़िडेंट (बाल रोग विभाग)। इनके साथ ब्लड बैंक के तकनीशियन, जूनियर रेजिडेंट्स और नर्सिंग अधिकारियों की टीम ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रोगी की स्थिति अत्यंत संवेदनशील थी और ट्रांसप्लांट से पहले उसे बार-बार रक्त व प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता पड़ती थी। डॉक्टरों की सतर्क निगरानी और विशेषज्ञ देखरेख में यह जटिल प्रक्रिया सफलतापूर्वक संपन्न की गई। विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि अब तक बीएचयू में कुल 35 बोन मैरो ट्रांसप्लांट जिनमें रक्त कैंसर जैसे एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकीमिया, बच्चों में पाए जाने वाले ठोस ट्यूमर और एप्लास्टिक एनीमिया जैसे रोग, किए जा चुके हैं, जिनमें से दो मरीज एप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित थे।
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यह सफल ट्रांसप्लांट पूर्वी उत्तर प्रदेश और आस-पास के क्षेत्रों के उन रोगियों के लिए एक नई आशा का संकेत है, जो गंभीर रक्त विकारों से जूझ रहे हैं। बीएचयू में अब ऐसे जटिल मामलों का इलाज संभव हो पा रहा है, जिससे इस क्षेत्र को अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिल रहा है।
प्रोफेसर विनीता गुप्ता ने बताया,“यह मामला बीएचयू की चिकित्सीय विशेषज्ञता को ही नहीं, बल्कि जटिल बाल्यकालीन रोगों के प्रबंधन में आवश्यक समन्वित और करुणाशील प्रयास को भी दर्शाता है। हमें गर्व है कि हम अपने क्षेत्र के परिवारों को इतनी उन्नत चिकित्सा सेवा प्रदान कर पा रहे हैं और हमारा लक्ष्य है कि हम अपने बाल्यकालीन बोन मैरो ट्रांसप्लांट कार्यक्रम का विस्तार थैलेसीमिया मेजर, म्यूकोपॉलीसैकराइडोसिस जैसे दुर्लभ आनुवंशिक व चयापचयी रोगों, स्टोरेज डिसऑर्डर आदि से पीड़ित बच्चों तक करें। हमारा उद्देश्य है कि इस क्षेत्र में कोई भी बच्चा केवल संसाधनों की कमी के कारण जीवन का दूसरा अवसर न खोए।” फिलहाल बालक की हालत स्थिर है और वह ठीक हो रहा है। डॉक्टर्स द्वारा लगातार निगरानी की जा रही है।
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