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    काशी की गंगा-जैसी गूंजती स्वरधारा थे पद्मविभूषण पं. छन्नूलाल मिश्र, अब हो गई मौन

    Updated: Thu, 02 Oct 2025 12:44 PM (IST)

    पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र के निधन से काशी में शोक की लहर है। वे शास्त्रीय संगीत के अद्वितीय साधक थे जिन्होंने ठुमरी दादरा कजरी और चैती को अपनी आवाज से अमर कर दिया। संकटमोचन मंदिर से उनका गहरा नाता था और महंत वीरभद्र मिश्र से उनका विशेष संबंध था। पंडित जी ने रामचरितमानस को गाकर लोगों के हृदय तक पहुंचाया। उनका जाना संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।

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    पद्मविभूषण (2020) से अलंकृत, विश्वविख्यात शास्त्रीय गायक, ठुमरी–सम्राट और भक्ति–रस के अद्भुत साधक पंडित छन्नूलाल मिश्र। जागरण

    प्रो अनूप मिश्र, वाराणसी। आज काशी की सुर–धारा मौन हो गई। पद्मविभूषण (2020) से अलंकृत, विश्वविख्यात शास्त्रीय गायक, ठुमरी–सम्राट और भक्ति–रस के अद्भुत साधक पंडित छन्नूलाल मिश्र अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन से न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत, बल्कि संपूर्ण काशी और विशेषकर संकटमोचन की सांगीतिक परंपरा एक गहरी शोकछाया में डूब गई है।

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    पंडित जी ने ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती और होरी को जिस सहजता और आत्मीयता से गाया, वह उन्हें शास्त्रीय संगीत की भीड़ में अलग पहचान देता है। उनकी आवाज़ में गंगा–घाटों की मिठास, बनारसी बोली की आत्मीयता और लोक–संस्कारों की गहराई थी।

    वे केवल मंचीय कलाकार नहीं थे, बल्कि शास्त्रीय संगीत को लोकजीवन से जोड़ने वाले सेतु भी थे। पंडित जी ने तुलसीकृत रामचरितमानस को अपने स्वरों में गाकर अनगिनत लोगों के हृदय तक पहुँचाया। उनका गाया मानस केवल संगीत नहीं था, बल्कि भक्ति और लोकमंगल की साधना थी।

    संकटमोचन और महंत वीरभद्र मिश्र से आत्मीय संबंध

    पंडित छन्नूलाल जी का जीवन संकटमोचन मंदिर और वहाँ की परंपराओं से गहराई से जुड़ा रहा। वे वर्षों तक संकटमोचन संगीत समारोह के प्रमुख आकर्षण रहे। उनके जीवन की एक विशेष कथा यह रही कि महंत प्रो. वीरभद्र मिश्र (पूर्व महंत, संकटमोचन मंदिर, गंगा–योद्धा और समाज सुधारक) उनसे गहराई से जुड़े रहे।

    महंत जी शास्त्रीय संगीत के बड़े रसिक थे और उन्होंने पंडित जी को अपना गुरु माना। जीवन के लंबे काल तक सप्ताह में दो बार पंडित जी संकटमोचन मंदिर में जाकर महंत जी को स्वर–साधना सिखाते थे। यह गुरु–शिष्य परंपरा केवल संगीत की शिक्षा भर नहीं थी, बल्कि आत्मा और श्रद्धा का संवाद भी था। महंत जी पंडित जी को हर संभव सहयोग और संरक्षण देते रहे, और इसीलिए पंडित जी भी स्वयं को संकटमोचन का आजीवन गायक मानते रहे।

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    पंडित छन्नूलाल मिश्र केवल गायक नहीं थे, वे काशी की धरोहर थे। उनकी गायकी में बनारस की गलियाँ, घाट, उत्सव, लोकगीत, और माँ गंगा का प्रवाह सुनाई देता था।आज उनका जाना संगीत की दुनिया के लिए अपूरणीय क्षति है। परंतु यह भी सत्य है कि उनके स्वर, उनकी ठुमरी, उनकी कजरी और उनका गाया मानस, बनारस और भारत की आत्मा में सदा गूंजता रहेगा। वर्तमान महंत प्रोफेसर विश्वंभर नाथ मिश्र और हम सभी के साथ भी उनका आत्मीय और पारिवारिक संबंध बना रहा। काशी और संकटमोचन उन्हें युगों–युगों तक याद करेंगे, क्योंकि वे सिर्फ़ कलाकार नहीं, बल्कि परंपरा के वाहक और संस्कृति के अमर गायक थे।