आइआइवीआर के विज्ञानियों ने तैयार किए मिट्टी के छह सुपरहीरो, बीसी-6 बनाएगा खेती को आसान और लाभकारी
वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने छह जीवाणुओं से बीसी-6 नामक एक जैविक मिश्रण विकसित किया है। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाकर पौधों को स्वस्थ रखता है और उपज की गुणवत्ता भी बढ़ाता है। यह फास्फोरस पोटाश और जिंक जैसे तत्वों को उपलब्ध कराता है जिससे रासायनिक खादों की आवश्यकता कम हो जाती है।

शैलेश अस्थाना, जागरण, वाराणसी। अब खेती में पौधों की बढ़त, फसलों की गुणवत्ता और चमक के लिए अलग-अलग रासायनिक खादों की जरूरत नहीं। वाराणसी के शहंशाहपुर में स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आइआइवीआर) ने जैविक सूक्ष्मजीव मिश्रण बीसी-6 तैयार किया है।
यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के साथ-साथ पौधों की सेहत, तनाव प्रबंधन और उत्पाद की गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है। यह मिट्टी के छह सुपरहीरो हैं, जो खेती न केवल आसान और किफायती बनाएंगे, पर्यावरण के अनुकूल भी बनाएंगे।
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बीसी-6 मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले छह बैसिलस जीवाणुओं का खास मिश्रण है। सबसे बड़ी बात यह रासायनिक खादों का प्रभावी और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है। ये जीवाणु मिट्टी में फास्फोरस, पोटाश और जिंक को घुलनशील बनाते हैं, जिससे पौधे आसानी से इन्हें ग्रहण कर सकें। यह पौधों के साथ सहजीवी संबंध बनाकर उनकी वृद्धि को बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा पौधों की सेहत और तनाव प्रबंधन में मददगार सिद्ध होता है। बढ़ती खाद की कीमतों, मिट्टी की घटती उर्वरता और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे किसानों के लिए बीसी-6 किसी वरदान से कम नहीं है।
आइआइवीआर के वैज्ञानिक डा. डीपी सिंह और डा. सुदर्शन मौर्य ने चार वर्षों की मेहनत से बीसी-6 को विकसित किया है। डा. सिंह बताते हैं कि संस्थान के परीक्षण फार्म से छह खास बैसिलस जीवाणुओं को चुना गया। लंबे शोध और उत्साहजनक परिणामों के बाद, बीसी-6 को रासायनिक खादों का मजबूत विकल्प बनाया गया है। आइआइवीआर के निदेशक डा. राजेश कुमार का कहना है कि हमारा लक्ष्य किसानों को ऐसी तकनीक देना है, जो उनकी आय बढ़ाए और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखे। बीसी-6 इस दिशा में एक बड़ा कदम है।
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टमाटर की फसल में दिखा कमाल
आइआइवीआर के फसल उन्नयन विभाग के अध्यक्ष डा. नागेंद्र राय के मुताबिक, बीसी-6 के फील्ड ट्रायल में शानदार परिणाम मिले। टमाटर की फसल में न केवल उत्पादन बढ़ा, बल्कि गुणवत्ता में भी सुधार हुआ। पौधों की ऊंचाई, जड़ों की लंबाई, तने की मोटाई और पत्तियों का क्षेत्रफल बढ़ा। प्रत्येक गुच्छे में 2-3 अतिरिक्त फूल आए, फल सेटिंग रेट बढ़ा, और प्रति पौधा 3.72 किलो तक टमाटर का उत्पादन हुआ। टमाटर में विटामिन सी, कैरोटेनायड्स, फ्लेवोनायड्स और कैंसर-रोधी लाइकोपीन की मात्रा बढ़ी। साथ ही, प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी, न्यूरोप्रोटेक्टिव और एंटीमाइक्रोबियल गुण भी पाए गए। बीसी-6 पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और कीटों से बचाव करता है, जिससे कीटनाशकों की लागत कम होती है।
त्रिआयामी उपयोग, आसान और प्रभावी
बीसी-6 को किसानों की सुविधा के लिए तरल, पाउडर और दानेदार तीनों रूपों में तैयार किया गया है। बीज प्राइमिंग यानी बोआई से 12-24 घंटे पहले बीज को बीसी-6 के घोल में भिगोना होता है। इससे अंकुरण तेज होता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, और स्वस्थ पौधे उगते हैं। जड़ शोधन में रोपाई से पहले पौधों की जड़ों को 30-45 मिनट तक बीसी-6 के घोल में डुबोया जाता है। इससे जड़ों का विकास तेज होता है और पौधे में पानी धारण करने की क्षमता बढ़ती है। पौधे थोड़ा बड़े हो जाएं तो कीटों और रोगों से बचाव के लिए छिड़काव करना।
पौधों की इस तरह मदद करता है बीसी-6
पोषक तत्वों की उपलब्धता: बीसी-6 मिट्टी में मौजूद फास्फोरस और जिंक को पौधों के लिए उपयोगी रूप में बदलता है।
प्राकृतिक एंटिबायोटिक्स: हानिकारक कवक और बैक्टीरिया के खिलाफ प्राकृतिक एंटिबायोटिक्स बनाता है।
हार्मोन उत्पादन: पौधों की वृद्धि को बढ़ाने वाले हार्मोन जैसे इंडोल एसीटिक एसिड (आइएए) और गिब्बेरेलिन बनाता है।
तनाव प्रबंधन: सूखा, अत्यधिक नमी या तापमान की मार से पौधों को बचाता है।
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