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    गंगा की लहरों पर डीजल का जहर, सीएनजी चालित नावों का दायरा सिमटा

    Updated: Fri, 26 Dec 2025 10:38 AM (IST)

    वाराणसी में गंगा नदी में डीजल से होने वाला प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, जिससे सीएनजी चालित नावों का संचालन सीमित हो गया है। गंगा में डीजल के रिसाव के कारण ...और पढ़ें

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    गंगा में चह रही हैं 20 क्रूज, 220 डबल डेकर, 1800 मोटर बोट और 250 चप्पू वाली नावें। जागरण

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। गंगा केवल नदी नहीं, जीवन है, मां है। उसकी लहरों में नाव खेने वाले मल्लाहों की पीढ़ियां बसी हैं और उसी धारा पर आश्रित असंख्य जलीय जीवों का अस्तित्व टिका है। कुछ साल पहले बेहतर करने की कोशिश हुई, गेल के सीएसआर से नगर निगम ने नावों में सीएनजी इंजन बदलवाने पर कार्य कराया भी मगर आज संबंधित विभाग अपनी उदासीनता की हदें पार कर गया है।

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    अब सब कुछ ठप है। अब वही गंगा डीजल के धुएं से घुट रही है। ऐसे में गंगा की लहरों पर मनमाने ढंग से नाव उतारकर आर्थिक साम्राज्य स्थापित करने की होड़ सी लग गई है।

    विडंबना यह कि स्वच्छ ईंधन सीएनजी की पर्याप्त व्यवस्था होने के बावजूद डीजल चालित नावों का बेधड़क संचालन गंगा और उसके जीव-जंतुओं के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है।

    गंगा में इस समय 20 क्रूज, 220 डबल डेकर, 1800 मोटर बोट और 250 चप्पू वाली नावें चल रही हैं। लाइसेंस लगभग 800 नावों के ही पास हैं। इस मामले में गेल के सीएनजी स्टेशन पर सख्ती है। सीएनजी उन्हें ही मिलेगी जिसके पास लाइसेंस है। लेकिन पिछले दो वर्षों से नगर निगम में लाइसेंस बनना बंद है। प्रहलाद घाट के जगदीश साहनी ने बताया कि नया लाइसेंस बनाने के लिए एक स्वयं का पुराना और एक अन्य सक्रिय लाइसेंस आवश्यक है।

    इसके चलते बड़ी संख्या में बिना लाइसेंस की नावें गंगा में चल रही हैं। अब तो कुछ सालों से मल्लाह समुदाय से इतर लोग नाव बनवाकर गंगा में उतार रहे हैं। नाविकों का आरोप है कि कुछ सालों से नाव संचालन में दबंग और पूंजीपति प्रवेश कर रहे हैं, जबकि असली माझी महीनों से दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं।

    बताया कि आरटीओ विभाग का कहना है कि जो आएगा सभी का लाइसेंस बनाया जाएगा। जबकि आरटीओ से अभी तक लाइसेंस बनने की प्रक्रिया शुरू ही नहीं की गई है।

    ऐसे में वर्तमान में गंगा में 1200 से अधिक नावें बिना लाइसेंस की संचालित की जा रही हैं। सूचीबद्ध नावें नहीं होने से कई समस्याएं उभर रही हैं। जल पुलिस प्रभारी राजकिशोर पाण्डेय के अनुसार नावों का सही रिकार्ड सुरक्षा और निगरानी में अहम भूमिका निभाता है, लेकिन अव्यवस्था के कारण यह चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।

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    नगर निगम के पीआरओ संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि गंगा में संचालित नावों को लेकर अब नगर निगम की कोई भूमिका नहीं है। वहीं स्थानीय लोगों ने बताया कि 50 प्रतिशत ही सही सीएनजी चालित नावों के चलते गंगा किनारे वातावरण ठीक महसूस होता रहा है। लेकिन बढ़ती डीजल चालित इंजनों के चलते गंगा का प्रदूषण एक बार फिर गहराता जा रहा है।

    गेल के मुताबिक रविदास पार्क स्थित सीएनजी स्टेशन की क्षमता 4000 किलोग्राम प्रतिदिन है। यहां प्रतिदिन बिक्री 100 किलोग्राम हो रहा है। वहीं नमो घाट खिड़किया पर स्टेशन की क्षमता 25,000 किलोग्राम की है। वहीं प्रतिदिन बिक्री 2000 किलोग्राम हो रही है। अनुमान है कि करीब 800 नावें सीएनजी से चल रही हैं, शेष डीजल पर निर्भर हैं। बताया गया कि इस वर्ष लगभग 1200 नई नावें संचालित हो रही हैं, जो बिना सीएनजी व लाइसेंस की हैं।

    डीजल के धुएं से निकलने वाले तत्व और नुकसान 

    • पीएम2.5/पीएम10 (सूक्ष्म कण): फेफड़ों में गहराई तक जाकर अस्थमा, हृदय रोग बढ़ाते हैं।
    • नाइट्रोजन आक्साइड : जल वायु प्रदूषण, अम्लीय प्रभाव, श्वसन समस्याएं।
    • सल्फर डाइआक्साइड : आंखों-गले में जलन, जलीय जीवन पर दुष्प्रभाव।
    • कार्बन मोनोआक्साइड : आक्सीजन वहन क्षमता घटाकर जानलेवा जोखिम।
    • ब्लैक कार्बन: जल को गर्म कर जलीय जैव-विविधता को नुकसान।