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    महिला सशक्तीकरण: दोना पत्तल के कारोबार ने 'सीमा' को पहुंचाया 15 अगस्त को लाल किला तक, बनीं थी खास मेहमान

    सीमा पटेल की कहानी एक प्रेरणा है। पांचवीं कक्षा पास सीमा ने दोना-पत्तल के कारोबार से न केवल खुद को सशक्त बनाया बल्कि अन्य महिलाओं को भी रोजगार के अवसर प्रदान किए। उनके जुनून और कड़ी मेहनत ने उन्हें 15 अगस्त को लाल किले पर झंडा रोहण कार्यक्रम में बतौर मेहमान शामिल होने का गौरव दिलाया। जानिए सीमा की सफलता की पूरी कहानी।

    By vikas ojha Edited By: Vivek Shukla Updated: Sun, 01 Dec 2024 02:36 PM (IST)
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    मशीन पर दोना पत्तल बनाती महिला- जागरण

    विकास ओझा, जागरण, वाराणसी। जुनून हो तो खुद ब खुद मुश्किल राह आसान हो जाती है। ब्लाक आराजीलाइन के मुहम्मदपुर गांव की कक्षा पांच पास सीमा पटेल इसी जुनून को लेकर दोना पत्तल कारोबार में उतरीं और आज लखपति दीदी की अग्रिम पंक्ति में शामिल होकर महिला सशक्तीकरण का संदेश देने की सरकार की योजना का हिस्सा बनीं और 15 अगस्त को लाल किला पर झंडा रोहण कार्यक्रम में बतौर मेहमान शामिल होकर पीएम से मिलने का गौरव अपने नाम दर्ज कराया।

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    सीमा कहती हैं कि एक दौर था जब गांव में खेती-बाड़ी के अलावा कोई काम न था। न अपने पास कोई विरासत थी, न ही कोई अन्य कारोबार। न ही माहौल, पैसे की जरूरत बढ़ती जा रही थी, काम नहीं सूझ रहा था। इसी दौरान दूसरे गांव में कुछ लोगों को प्लेट व दोना बनाते देख मन में इसको बनाने की ललक हुई।

    पैसा कमाने का जुनून था। लेकिन इस कारोबार में आमदनी का पता नहीं था फिर भी दिल कह रहा था कि जरूरत की चीज है। बाजार में मांग तो होगी फिर सिंगल डाई की एक मशीन खरीदी और दोना पत्तल का कारोबार शुरू किया।

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    पहले 100 से डेढ़ सौ तक बनाया। हाथों हाथ बिक गया। मांग बढ़ती गई। आपूर्ति करने का दबाव इस कदर बढ़ा कि सिंगल व डबल डाई की आज चार मशीनें अपने पास है। दोना-पत्तल दिन रात बन रहा है। शादी ब्याह का मौसम है।

    बनारस ही नहीं आसपास के जिले गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़ समेत बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड तक इसकी मांग है। देर रात तक फुर्सत नहीं। अपनी आमदनी तो बढ़ी है दिल इस बात को लेकर ज्यादा खुश है कि चलो मेरी वजह से आज मेरी जैसी कई दीदियों के हाथ में दो पैसा आ रहा है।

    सीमा पटेल- जागरण


    मशीनें चार बजे भोर से लेकर रात नौ बजे तक तीन शिफ्ट में चल रही है और सब कुछ दीदियां संभाल रही हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने हर मौके पर संभाला। सरकार ने मदद राशि भी मुहैया करायी। समूह से जुड़ी 13 महिलाएं इस कारोबार को आगे बढ़ा रही हैं।

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    प्रतिदिन लगभग 15 से बीस 20 हजार दोना पत्तल का निर्माण

    सीमा कहती हैं कि प्रतिदिन लगभग 15 से बीस हजार दोना पत्तल का निर्माण हो रहा है। शादी ब्याह के सीजन में प्रतिमाह न्यूनतम 50 हजार से 60 हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है। परिवार में पति बाबू लाल पटेल समेत सभी को भी पूरा सहयोग रहता है। सीमा कहती है कि बच्चे भी पढ़ाई के साथ कारोबार में हाथ बंटाते हैं। माल ढ़ुलाई के लिए हाल ही में बैंक से लोन लेकर दस लाख रुपये का टाटा अल्ट्रा वाहन क्रय की। इससे माल की ढुलाई होती है।

    बाजार पर नजर, डिजाइनिंग पर विशेष काम 

    सीमा कहती है कि बाजार में बने रहने के लिए नयापन जरूरी है। एक तरह के उत्पाद बाजार में लंबे समय तक नहीं टिकते। इसलिए बाजार पर विशेष नजर रहती है। आनलाइन डिजाइन देख इसके मुताबिक निर्माण की कोशिश होती रहती है। शायद, पिछले चार साल से इसी वजह से बाजार में मजबूती के साथ् टिके हुए हैं।