UP News: वाराणसी में 300 करोड़ की बंजर भूमि माफिया से मुक्त, अब विकास को मिलेगी गति
UP News उत्तर प्रदेश के वाराणसी में जिला प्रशासन को बड़ी सफलता मिली है। शहरी सीमा में परमानंदपुर मौजा में लगभग 300 करोड़ रुपये की 16 एकड़ बंजर जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराया गया। चकबंदी अधिकारी और जिला शासकीय अधिवक्ता राजस्व की मदद से यह सफलता मिली। अब इस भूमि का उपयोग विकास परियोजनाओं के लिए किया जा सकेगा।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। जनपद में विकास की बहुत सी परियोजनाएं भूमि के अभाव में लटकी हैं। इसके विपरीत बहुत से लोग सरकारी बंजर, तालाब, भीटा आदि पर कब्जा जमाए बैठे हैं। इस दिशा में एक सार्थक प्रयास सामने आया है जिसमें शहरी सीमा में जिलाधिकारी कार्यालय से मात्र ढाई किलोमीटर की दूरी पर मौजा परमानंदपुर परगना शिवपुर में एक ही स्थान पर करीब 16 एकड़ बंजर भूमि सरकारी खाते मिली है। इसकी कीमत लगभग 300 करोड़ रुपये आंकी जा रही है।
शहर में मौजा परमानंदपुर में आराजी नंबर 319 के तीन गाटा में 8.1 एकड़, 4.72 और 3.28 एकड़ बंजर भूमि है। इसमें से 14 एकड़ पर 27 लोगों ने नाम दर्ज करा लिया था। शेष करीब दो एकड़ भूमि पर कुछ लोग काबिज होने के आधार पर सत्व (मालिकाना हक) प्राप्त करना चाहते थे।
इसी दौरान मामले का खुलासा हुआ। मामला पहली बार वर्ष 2008 में चकबंदी अधिकारी के न्यायालय में पहुंचा। दावा करने वालों से साक्ष्य मांगे गए लेकिन उन लोगों ने इसका कोई उपयुक्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया। कुछ लोगों और प्रधान ने भी दावे को फर्जी बताया।
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काशी में 16 एकड़ बंजर भूमि मिली। जागरण
जिला शासकीय अधिवक्ता राजस्व ने दस्तावेजों की जांच की। जांच में पाया गया कि उक्त भूमि राजस्व दस्तावेजों में 1291 फसली वर्ष में बंजर के रूप में दर्ज है। इस भूमि पर 1334 फसली वर्ष में बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के कुछ लोगों का नाम दर्ज हो गया। समय-समय पर इस भूमि को लेकर सीओ चंकबंदी, एसओसी और डीडीसी के न्यायालय में वाद चला। इसके बाद पुन: वाद चकबंदी अधिकारी के यहां पहुंचा।
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जिला शासकीय अधिवक्ता राजस्व अशोक कुमार वर्मा ने विभिन्न दस्तावेजों की जांच की। सभी पक्षों को साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए अवसर दिया गया। कोई भी दावेदार साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका। इस कारण चकबंदी अधिकारी तृतीय लाल सिंह ने सभी की आपत्तियों को खारिज कर दिया। भूमि एक बार फिर बंजर खाते में दर्ज करने का आदेश दिया। शहरी सीमा में इतने बड़े क्षेत्रफल की भूमि मिलने से कई प्रतिक्षित योजनाओं को स्थान मिल सकता है।
जमीदारी विनाश अधिनियम की धारा 210 में संशोधन संख्या 20 एक्ट 35 सन् 1976 के द्वारा बंजर भूमि पर किसी को भी किसी प्रकार का सीरदारी/ भूमिधरी अधिकार नहीं दिया जा सकता है और न ही उसपर कोई भूतलक्षित प्रभाव पड़ता है।
- अशोक कुमार वर्मा, जिला शासकीय अधिवक्ता राजस्व।
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