'दहशत में किया था हिंदू परिवारों ने पलायन, दबाव में नहीं...', संभल में दंगे के बाद की कहानी, स्थानीयों की जुबानी
खग्गू सराय और सरायतरीन के मंदिर वैसे ही खड़े हैं लेकिन वहां के लोगों द्वारा पलायन करने के बाद यह देखरेख के अभाव में जर्जर हो रहे थे। सांप्रदायिक भय के साए में हिंदू परिवारों के पलायन की कहानी संभल के खग्गू सराय और सरायतरीन के मंदिरों में फिर से गूंजे भजन-कीर्तन। दशकों बाद खुले मंदिरों में लौटी रौनक जानिए कैसे हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करते थे ये इलाके।

संवाद सहयोगी, संभल। कुछ दिन पहले तक दशकों से बंद खग्गू सराय और सरायतरीन में मिले दो मंदिरों पर खामोशी छाई थी। मुस्लिम बाहुल्य इलाके में स्थित यह दोनों मंदिर सांस्कृतिक रूप से समृद्ध रहे हैं। हिंदू समाज की आस्था का केंद्र रहे हैं। दशकों पहले यहां हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसालें दी जाती थीं।
हालांकि, समय के साथ सांप्रदायिक तनावों ने इन इलाकों को गहरे बदलावों का गवाह बनाया। आज भी खग्गू सराय और सरायतरीन के मंदिर वैसे ही खड़े हैं, लेकिन वहां के लोगों द्वारा पलायन करने के बाद यह देखरेख के अभाव में जर्जर हो रहे थे। अब यह मंदिर खुल चुके हैं और पूजा पाठ शुरू हो गई है।
दंगे के बाद हिंदू परिवारों ने घर छोड़ा
1978 के सांप्रदायिक दंगे ने खग्गू सराय के हिंदू परिवारों पर गहरा असर डाला। इन दंगों के बाद इलाके के करीब 40 हिंदू परिवारों ने अपनी जमीन और मकान छोड़कर अन्य स्थानों पर पलायन कर लिया। इस पलायन की शुरुआत दंगों के दौरान डर और असुरक्षा से हुई थी, लेकिन इसे किसी भी हिंदू परिवार ने दबाव के रूप में नहीं देखा।
बाबरी विध्वंस के बाद सांप्रदायिक तनाव बढ़ा
इसके बाद 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश भर में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा। इससे संभल भी अछूता नहीं रहा। सरायतरीन के मोहल्ला कश्यवान, जो पहले हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के लिए जाना जाता था, सांप्रदायिक तनाव की चपेट में आ गया। तनाव के चलते मोहल्ला कश्यवान में 100 से अधिक हिंदू परिवारों ने अपनी संपत्ति बेचकर अन्य सुरक्षित स्थानों पर बसने का निर्णय लिया।
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पलायन करने वाले लोगों ने भी यह बात मानी कि उनके मोहल्लों में रहने वाले मुस्लिम परिवारों ने ना तो उनका विरोध किया, ना ही उन पर किसी प्रकार का जबरदस्ती कब्जा किया और ना ही उनके खिलाफ कोई साजिश नहीं रची गई। फिर भी बढ़ते सांप्रदायिक तनाव और दंगों की आशंका ने उन्हें दूसरी जगह बसने के लिए मजबूर कर दिया था।
पलायन के बाद मंदिरों की स्थिति चिंताजनक थी
पलायन के बाद दोनों इलाकों में बने मंदिरों की स्थिति चिंताजनक हो गई थी। हालांकि, इनकी संरचना वैसी ही है, जैसा कि वह छोड़कर गए थे, लेकिन इनके आसपास का माहौल बदल चुका है। शनिवार को खग्गू सराय में मंदिर को खोला गया, जो लगभग 46 वर्षों से बंद था। वहां पूजा अर्चना भी शुरू हो गई है। पलायन करने वाले परिवारों में भी मंदिर की रौनक और सुबह शाम पूजा अर्चना होती देख उत्साह का माहौल है।
हिंदू परिवारों का कहना है कि हम स्वयं ही यहां नहीं आते थे। किसी भी मुस्लिम ने कोई विरोध नहीं किया। यही हाल सरायतरीन के मोहल्ला कश्यवान के राधा कृष्ण मंदिर का है। मंदिर में लगे ताले की चाबी भी सैनी परिवार के पास ही रहती थी। एक साल में आने वाले त्योहारों पर धूप दीप प्रज्जवलित करते थे। मुस्लिम बाहुल्य होने के चलते कोई विरोध भी नहीं करता था।
खग्गू सराय और सरायतरीन के कुछ लोगों ने दंगे के बाद की स्थिति के बारे में बातचीत की, पढ़िये उनसे बातचीत के कुछ अंश-
अपनी मर्जी से घर बेचात- स्थानीय
मुरादाबाद निवासी अनिल रस्तोगी ने बताया कि दंगों के बाद हमने खुद अपनी मर्जी से घर बेचा और मुरादाबाद चले गए, लेकिन यह भी सच है कि हम यहां सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे थे। क्योंकि यहां शत प्रतिशत मुस्लिम आबादी है।
मोहल्ला ठेर के रहने वाले विष्णु सरन रस्तोगी ने कहा कि दंगे के बाद सभी परिवार यहां से पलायन कर गए। पुलिस प्रशासन या फिर अदालत की मदद के सवाल पर कहा कि ऐसा कोई माहौल ही नहीं था और उस समय कोई सुनने वाला भी नहीं था। अब पुलिस प्रशासन की नजर पड़ी है तो मंदिर खुला है।
हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के साथ रहते थे- स्थानीय
सरायतरीन के रहने वाले बुद्धसेन ने कहा कि हम 1992 से पहले मोहल्ला कश्यवान में रहते थे। उस समय हिंदू मुस्लिम परिवार भाइचारे के साथ रहा करते थे। बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान भड़के दंगे ने सभी को झकझोर कर रख दिया। हम यहां असुरक्षित महसूस करने लगे। हालांकि हमें किसी भी मुस्लिम परिवार ने कोई परेशानी नहीं थी।
खग्गू सराय के मोहम्मद शुएब ने कहा कि यहां से हिंदू परिवारों के जाने के बाद मंदिर की स्थिति जैसे पहले थी, आज भी वैसी ही है। वे यहां पूजा अर्चना करने नहीं आते थे। हालांकि यहां कोई विरोध करने वाला नहीं था। बल्कि सभी सहयोग करते थे।
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