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    भूसे के ढेर में 'दफन' हुई जांच: 6 महीने बाद भी सरकारी दवाओं की तस्करी का राज बरकरार

    Updated: Wed, 31 Dec 2025 07:00 PM (IST)

    कैलादेवी क्षेत्र में भूसे में मिली 40 हजार की सरकारी दवाइयों के मामले को छह महीने हो गए हैं, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। औषधि और स्वास्थ्य व ...और पढ़ें

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    प्रतीकात्‍मक च‍ित्र

    संवाद सहयोगी, जागरण, बहजोई। कैलादेवी थाना क्षेत्र के एक गांव में भूसे में छुपा कर रखी गईं सरकारी दवाइयां के पकड़े जाने के प्रकरण को तकरीबन छह महीने पूरे होने को हैं लेकिन अभी तक न तो औषधि विभाग और न ही स्वास्थ्य विभाग इस संबंध में कोई कार्रवाई कर सका है और न ही आरोपित के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई गई है जबकि जिसके यहां यह दवाइयां मिली थी, उसका बेटा स्वास्थ्य विभाग में ही काम करता है। फिलहाल सिस्टम की चुप्पी से जांच पर संदेह होता है।

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    दरअसल, सात जुलाई को गांव बसला में रमाबहदुर के घेर में भूसे के ढेर में मिलीं लगभग 40 हजार रुपये मूल्य की सरकारी दवाइयों का मामला सामने आया था जोकि अब तक रहस्य बना हुआ है। इस घटना को करीब छह महीने पूरे होने को हैं, लेकिन न तो किसी स्तर पर ठोस जांच सामने आई है और न ही किसी के विरुद्ध अब तक रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।

    इससे साफ तौर पर यह संकेत मिल रहा है कि पूरे प्रकरण को उजागर करने के बजाय दबाने का प्रयास किया जा रहा है, औषधि विभाग की भूमिका भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि इस पूरे मामले में कागजों का खेल खेला जा रहा है और जहां से दवाइयां बरामद हुई थीं, उस व्यक्ति या स्थल के विरुद्ध अब तक कोई वैधानिक कार्रवाई नहीं की गई है।

    वहीं स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी अब तक कोई स्पष्ट जवाब या स्थिति रिपोर्ट सामने नहीं आई है। औषधि निरीक्षक जयेंद्र कुमार का दावा है कि उनकी ओर से घटना के तत्काल बाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी को लिखित पत्र भेजा गया था, लेकिन इतने लंबे समय बाद भी उस पत्र का कोई जवाब नहीं मिला है, जिससे यह सवाल और गहरा गया है कि आखिर जांच को जानबूझकर लंबित क्यों रखा गया है।

    बरामद दवाइयों में पेरासिटामोल और बी काम्प्लेक्स जैसी सरकारी आपूर्ति की दवाइयां शामिल थीं, जो आमतौर पर सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से वितरित की जाती हैं। ऐसे में इन दवाइयों का भूसे के ढेर में मिलना सीधे तौर पर सरकारी दवा आपूर्ति तंत्र में सेंध और संभावित तस्करी की ओर इशारा करता है।

    यदि समय रहते जांच को गंभीरता से आगे बढ़ाया जाता तो अब तक यह स्पष्ट हो सकता था कि दवाइयां किस स्टोर या केंद्र से निकलीं, किन लोगों के माध्यम से आगे भेजी जा रही थीं और किन स्थानों पर इनकी अवैध सप्लाई होनी थी, लेकिन छह महीने बीतने के बावजूद न तो स्रोत तय हो सका और न ही गंतव्य, जिससे इस पूरे रैकेट के सक्रिय होने की आशंका और मजबूत हो गई है।

    अगर होती पुलिस में रिपोर्ट तो जल्द हो सकता था पर्दाफाश

    अगर औषधि निरीक्षक द्वारा इस मामले में आरोपित के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई जाती है तो पुलिस की जांच से सरकारी दवाइयों की तस्करी के पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश संभव है। पुलिस की पूछताछ में यह साफ हो सकता है कि दवाइयां कहां से लाई जा रही थीं, किन स्थानों पर भेजी जानी थीं और किन लोगों के माध्यम से इनकी अवैध सप्लाई की जा रही थी।

    पुलिसिया जांच के दौरान यह भी सामने आ सकता है कि क्या यह मामला किसी एक व्यक्ति तक सीमित है या फिर इसके पीछे संगठित रैकेट सक्रिय है। केवल पुलिस कार्रवाई के जरिए ही यह तय हो सकता है कि सरकारी दवाइयों का यह खेल किन जिलों तक फैला है और इसमें कौन-कौन लोग शामिल हैं, बिना एफआइआर के यह पूरा मामला केवल संदेह और कागजी कार्रवाई तक ही सिमटकर रह जाएगा।

     

    सात जुलाई को कैलादेवी क्षेत्र में भूसे के ढेर से सरकारी दवाइयां बरामद होने के बाद उन्होंने नियमानुसार तत्काल मुख्य चिकित्सा अधिकारी को लिखित सूचना दी थी, लेकिन अब तक उस पत्र का कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ है, बिना विभागीय सहयोग के दवाइयों के स्रोत और आपूर्ति श्रृंखला का खुलासा करना कठिन हो रहा है, फिर भी जांच प्रचलित है।

    - जयेंद्र कुमार, औषधि निरीक्षक, संभल।


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