भस्म रमाए नागा संतों का जीवन क्यों होता है इतना खास? तप में रहेंगे लीन, मौनी अमावस्या पर लगाएंगे पहली डुबकी
Maha Kumbh 2025 नागा संन्यासियों की एक खासियत होती है कि इनकी जीवनशैली दूसरों से काफी अलग होती है। वो एक कठिन तपस्या में लीन रहते हुए ईश्वर का ध्यान करते हैं। वे मौनी अमावस्या के अमृत स्नान से पहले किसी से संपर्क नहीं रखेंगे। अखाड़े के चुनिंदा संत उनसे बात करेंगे। अमृत स्नान वाली रात में आचार्य महामंडलेश्वर से मंत्र मिलेगा। इसके बाद अमृत स्नान करने जाएंगे।

जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर। जूना अखाड़ा में नए नागा संन्यासी अखाड़े की छावनी में रहेंगे। वहां रहकर जप-तप में लीन रहेंगे। नागा संन्यासियों की एक ये खासियत होती है कि इनकी जीवनशैली दूसरों से काफी अलग होती है। वो एक कठिन तपस्या में लीन रहते हुए ईश्वर का ध्यान करते हैं। वे मौनी अमावस्या के अमृत स्नान से पहले किसी से संपर्क नहीं रखेंगे।
अखाड़े के चुनिंदा संत उनसे बात करेंगे। अमृत स्नान वाली रात में आचार्य महामंडलेश्वर से मंत्र मिलेगा। इसके बाद अमृत स्नान करने जाएंगे। अखाड़े के आराध्य को स्नान कराने के बाद पहली डुबकी नए नागा संन्यासी लगाएंगे। इसके बाद समस्त संत स्नान करेंगे। नागा संन्यासी ऐसे तपस्वी हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए सांसारिक जीवन का त्याग करते हैं।
सख्त अनुशासन का पालन करते हैं नागा बाबा
वे आध्यात्मिक अर्थ में एक योद्धा की तरह जीवन व्यतीत करते हैं और विभिन्न अखाड़ों से संबंधित होते हैं। सख्त अनुशासन और जीवन शैली का पालन करते हैं। उन्हें 'नागा' इसलिए कहा जाता है क्योंकि वो किसी भी मौसम और परिस्थिति में निर्वस्त्र अवस्था में रहते हैं। दरअसल उनका यह रहन-सहन भौतिकवाद से उनके अलगाव का प्रतीक माना जाता है।
यह भी पढ़ें: स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज की अपील- हम दो-हमारे दो से ऊपर उठें हिंदू... धर्म और राजनीति पर क्या बोले? यहां पढ़ें
योगाभ्यास में संलग्न रहते हैं संत
उन्हें अक्सर शरीर में भस्म लपेटे हुए देखा जाता है और ये हाथों में त्रिशूल लिए हुए ध्यान और योगाभ्यास में संलग्न रहते हैं। नागा संन्यासी प्राणायाम समेत कई योग के उन्नत रूपों का अभ्यास करते हैं, जिससे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए अपनी सांस को नियंत्रित करना शामिल होता है।
भीषण ठंड में भी नहीं होती समस्या
इसके साथ ही वे भस्म लगाए रहते हैं। इससे उन्हें भीषण ठंड में किसी प्रकार की समस्या नहीं होती है। जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि के अनुसार, कुंडलिनी योग और तुम्मो जैसी योग शक्तियों से शरीर भीतर से गर्म रहता है। वर्षों के ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास से नागा संन्यासी में शारीरिक संवेदनाओं से वैराग्य विकसित हो जाता है।
हवन से मिलती है भस्म
उनका ध्यान भौतिक शरीर से हटकर आध्यात्मिक जीवन की ओर चला जाता है, जिससे ठंड के प्रति उनकी संवेदनशीलता कम हो जाती है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि नागा संन्यासी जो भस्म लगाते हैं वह हवन से मिलती है। इसका प्रयोग व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों अर्थ रखता है।
एक खास संदेश देता है भस्म
इसी तरह से भस्म उस अंतिम वास्तविकता का प्रतिनिधित्व भी करती है कि सभी भौतिक चीजें अंततः राख में बदल जाती हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए नागा साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। निर्वस्त्र रहकर शरीर में भस्म लपेटने वाले नागा साधु सांसारिक मोह-माया के त्याग और नश्वरता को स्वीकार करने का प्रतीक माने जाते हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।