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    Mahakumbh 2025: श्री निरंजनी अखाड़ा में बनाए पांच महामंडलेश्वर, अखाड़ा के शिविर में विधि-विधान से हुआ पट्टाभिषेक

    Updated: Sun, 19 Jan 2025 03:37 AM (IST)

    Maha Kumbh 2025 - श्रीपंचायती अखाड़ा निरंजनी ने पांच संतों को अभिषिक्त करके महामंडलेश्वर की उपाधि प्रदान की है। अखाड़े के शिविर में विधि-विधान से पट्टाभिषेक किया गया है। नवनियुक्त महामंडलेश्वरों में चंडीगढ़ के स्वामी कृष्णनंद पुरी ऋषिकेश के स्वामी आदियोगी पुरी मुंबई की स्वामी भगवती पुरी किशनगढ़ राजस्थान की साध्वी मीरा गिरि और वृंदावन के स्वामी आदित्यनंद गिरि शामिल हैं।

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    पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में पांच महामंडलेश्वर का किया गया पट्टाभिषेक। मुकेश कनौजिया

    जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर। श्रीपंचायती अखाड़ा निरंजनी ने पांच संतों को अभिषिक्त करके महामंडलेश्वर की उपाधि प्रदान की। अखाड़े के शिविर में विधि-विधान से पट्टाभिषेक किया। अभिषेक करके तिलक लगाकर चादर ओढ़ाया गया। 

    अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी के संयोजन में शनिवार को चंडीगढ़ के स्वामी कृष्णनंद पुरी, ऋषिकेश के स्वामी आदियोगी पुरी, मुंबई की स्वामी भगवती पुरी, किशनगढ़ राजस्थान की साध्वी मीरा गिरि और वृंदावन के स्वामी आदित्यनंद गिरि का पट्टाभिषेक कर महामंडलेश्वर बनाया गया।

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    उन्होंने कहा कि नवनियुक्त महामंडलेश्वर आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा धर्म की रक्षा के लिए स्थापित अखाड़ा परंपरा को आगे बढ़ाने में युवा संत अपना योगदान देंगे। महामंडलेश्वर का पद प्राप्त करने की परंपरा विशेष रूप से प्रमुख अखाड़ों में अधिक प्रचलित है। 

    इसकी परंपरा यह है कि इसे उस संत महंत को दिया जाता है, जिसने अपने जीवन में विशेष धार्मिक तप, साधना और समाज सेवा के कार्य किए हों। 

    अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि ने कहा कि महामंडलेश्वर का पद प्राप्त करने के बाद धर्म के प्रति जिम्मेदारी बढ़ जाती है। ऐसे संत का जीवन अखाड़ा, धर्म और समाज के लिए पूर्णरूप से समर्पित हो जाता है। 

    उन्होंने कहा कि महामंडलेश्वर के कर्तव्यों में अनेक धार्मिक, सामाजिक, और आध्यात्मिक जिम्मेदारियां शामिल होती हैं। यह कर्तव्य न केवल उनके व्यक्तिगत आचरण से जुड़े होते हैं, बल्कि समाज और संप्रदाय के प्रति उनके दायित्वों का भी हिस्सा होते हैं। 

    महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया में गुरु-शिष्य परंपरा का पालन

    आनंद पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरि ने कहा कि महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया में गुरु-शिष्य परंपरा का पालन किया जाता है।  एक योग्य व्यक्ति को इस पद पर नियुक्ति देने के लिए अखाड़े के प्रमुख संतों और गुरुजनों की सहमति आवश्यक होती है। 

    यह पद केवल उन संतों को दिया जाता है, जिनके पास गहरी धार्मिक शिक्षा, अनुभव और समाज के प्रति उनकी सेवा के प्रमाण होते हैं। 

    इस अवसर पर महामंडलेश्वर ब्रह्मऋषि कुमार स्वामी, श्रीमहंत रामरतन गिरि, महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानंद गिरि, महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरि, महामंडलेश्वर स्वामी अनंतानंद गिरि, महामंडलेश्वर स्वामी आनंदमयी माता आदि मौजूद रहे।

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