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    स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज की अपील- हम दो-हमारे दो से ऊपर उठें हिंदू... धर्म और राजनीति पर क्या बोले? यहां पढ़ें

    Updated: Sat, 18 Jan 2025 08:54 PM (IST)

    सनातन धर्म एक ऐसा धर्म है जो व्यक्ति को सहिष्णुता शांति समन्वय समर्पण त्याग और अहिंसा का संदेश देता है। सनातन धर्म का वैभव और गौरव महाकुंभ में देखने को मिलेगा। श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने हिंदुओं से जाति-पंथ से ऊपर उठकर एकजुट रहने का आह्वान किया है। यहां पढ़िये उनसे बातचीत के कुछ अंश...

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    सृष्टि के कल्याण की चिंता करता है सनातन- स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज। (तस्वीर जागरण)

    जागरण संवादताता, महाकुंभनगर। सनातन धर्म से व्यक्ति को सहिष्णुता, शांति, समन्वय, समर्पण, त्याग और अहिंसा का संदेश मिलता है। सनातन व्यक्ति, पंथ की नहीं, बल्कि सृष्टि के कल्याण की चिंता करता है। सनातन में परोपकार का भाव है। जो मनुष्य के साथ पर्वत, जीव-जंतु, वनस्पतियों, नदियों को पूज्यनीय मानकर उनकी रक्षा की सीख देता है।

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    सनातनी व्यक्ति दूसरों का कल्याण करके स्वयं के धन्य होने की अनुभूति करता है। उसी सनातन धर्म को समाप्त करने के लिए कुचक्र रचा गया। भय व लोभ के माध्यम से मतांतरण कराया गया। इसके बाद भी सनातन का वैभव कम नहीं हुआ। महाकुंभ में सनातन धर्म के गौरवपूर्ण वैभव, परंपरा व संस्कारों को दुनियाभर के लोग देख रहे हैं।

    ये विचार हैं श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि के। उन्होंने सनातन धर्मावलंबी हिंदुओं के जाति, पंथ से ऊपर उठकर एकजुट रहने पर जाेर दिया है। उन्होंने अपील की है कि हिंदू हम दो-हमारे दो से ऊपर उठें और वंश वृद्धि करें।

    जातीय जनगणना की मांग करने वालों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि श्रीराम को नहीं मानने वाले जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। इसके पीछे राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करना है। स्वामी अवधेशानंद से विभिन्न मुद्दों पर दैनिक जागरण के संवाददाता शरद द्विवेदी ने बात की, प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश...

    सवाल- धर्म क्या है, उसका स्वरूप कैसा है?

    उत्तर- धर्म कर्तव्य पूर्ति का नाम है। दायित्व की पूर्ति का नाम है। जो मनुष्य को मनुष्यता का बोध कराता है। करुणा, प्रेम, वात्सल्य का भाव सनातन धर्म से प्राप्त होता है। धर्म का स्वरूप वृहद है, जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता।

    सवाल- धर्म व राजनीति से हर व्यक्ति प्रभावित है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से उससे जुड़ा है। आप दोनों में क्या अंतर पाते हैं?

    उत्तर- धर्म कहीं न कहीं सत्ता से जुड़ा है। धर्म और राजनीति साथ-साथ रहे हैं। चिरकाल से देवों के गुरु बृहस्पति, प्रभु श्रीराम के साथ वशिष्ठ रहे हैं। इसी प्रकार समस्त राजाओं के दरबार में राजगुरु का सिंहासन होता था, जो राजा को सही व गलत में अंतर बताते थे। जहां तक मैं देखता हूं, दोनों जनकल्याण के लिए कार्य करते हैं। सबका भाव पवित्र व अनुकरणीय है।

    सवाल- आप धर्म व राजनीति का भाव पवित्र बता रहे हैं, लेकिन राजनेता तो अक्सर सनातन धर्म पर कटाक्ष करते हैं। उसकी परंपराओं का उपहास उड़ाते हैं मनु स्मृति को समाज को बांटने वाला बताया जाता है। आप इसे कैसे देखते हैं?

    उत्तर- सनातन धर्म का उपहास उड़ाने वाले अज्ञानी हैं। मनु स्मृति का भाव उन्हें पता नहीं है। उन्हें उसके विराट स्वरूप का ज्ञान नहीं है। इसी कारण अनर्गल बयानबाजी करते हैं। मैं कामना करता हूं कि ऐसे लोगों को सदबुद्धि मिले।

    सवाल- सनातन धर्म की आलोचना करने के साथ श्रीरामचरितमानस, मनु स्मृति की खुलेआम प्रतियां जलाई जाती हैं। यही कृत्य दूसरे धर्मों के साथ होता है तो वह सड़क पर उतर जाते हैं। सनातन के धर्मगुरु व धर्मावलंबी शांत बैठे रहते हैं। यह भाव उचित है?

    उत्तर- हमारा धर्म अहिंसक है। यह मानवता का धर्म है जो सबके सुख-शांति की कामना करता है। सनातन धर्म का अर्थ है, जो मनुष्य के सुखों की चिंता करे, वनस्पतियों की चिंता करे, अपने धरती के संतुलन की चिंता करे। दूसरे सम्प्रदाय, मत व पंथों से इसकी तुलना अनुचित है।

    सवाल- सनातन शांति व सबके कल्याण की चिंता करता है, लेकिन सनातनी जहां कम हैं वहां पीड़ित रहते हैं। बांग्लादेश की स्थिति आप देख रहे हैं। वहां सनातनियों को मारा-काटा जा रहा है। यह चिंताजनक नहीं है?

    उत्तर- मैं आपकी बात से सहमत हूं। भारत का स्वरूप पहले विशाल था। उसे कई बार खंडित किया गया। सीमाएं सिमटती गईं। बांग्लादेश की स्थिति कष्टकारी है। मुझे विश्वास है कि बांग्लादेश के मामले में केंद्र सरकार सही समय पर उचित कार्रवाई जरूर करेगी।

    साथ ही विश्व के मानवाधिकार संगठनों से से मुझे प्रार्थना करनी है कि इस प्रकार से मानवीय अत्याचार पर वह मौन क्यों हैं? मोमबत्ती गैंग कहां है? जो छोटी-छोटी बातों पर सड़क पर उतरता है वह हिंदुओं के अत्याचार पर मौन क्यों है? सबके लिए एक नियम होना चाहिए।

    इस पर हम सनातनियों को सजग और सावधान होना होगा। हम जातियों, पंथ व वर्ग में न बटें। किसी प्रलोभन में न आएं। अपने धर्म के प्रति समर्पित रहें। हम धर्म के प्रति समर्पित रहेंगे तो एकता बनेगी। एक रहेंगे तो किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वह हमारा शोषण करे।

    सवाल- आप हिंदुओं की एकता की बात कर रहे हैं, लेकिन कुछ राजनेता जातीय जनगणना को लेकर आवाज उठा रहे हैं, उनका कहना है कि गणना के बाद सबको अधिकार मिलेगा। इसे कैसे देखते हैं?

    उत्तर- जातीय जनगणना की बात वह कर रहे हैं, जिन्हें अपनी जाति का पता नहीं है। उन्हें स्वयं पता नहीं है कि वह किस संप्रदाय के हैं। वह धर्म जानते नहीं हैं। ये प्रभु श्रीराम का अस्तित्व नकार रहे थे। कह रहे थे कि राम काल्पनिक हैं, उनका जन्म हुआ ही नहीं। कोर्ट में एफिडेविट दे रहे थे।

    इस तरह के लोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए सनातनियों को बांटने की बातें करते हैं। हमें उसकी चिंता नहीं है, सनातन धर्म बहुत आगे जाएगा। योग के माध्यम से पूरे विश्व का ध्यान हमने अपनी ओर खींचा है। आयुर्वेद के माध्यम से भारत की आर्थिक उन्नति विश्व का ध्यान खींच रही है। आने वाली शताब्दी भारत की है।

    सवाल- इस समय संभल में वर्षों से बंद और खोदाई से निकलने वाले मंदिरों की चर्चा है। मंदिरों के निकलने से आप प्रसन्न हैं?

    उत्तर- संभल ही नहीं, यह पूरी धरती सनातन की है। आप यह जानकर चकित हो जाएंगे कि कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, सऊदी अरब में खोदाई करने पर मंदिर निकले हैं। आप जाइए अमेरिका में वहां ग्रैंड कैन्यन है, वहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आकृतियां मिल जाएंगी। उन पहाड़ियों का नाम ब्रह्मा, विष्णु, महेश है। धरती को खोदेंगे तो मंदिरों के अवशेष मिलेंगे।

    सवाल- आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत कह रहे हैं कि अब मंदिर-मस्जिद की बात ज्यादा न की जाय। आप उनसे सहमत हैं?

    उत्तर- मैं मोहन भागवत जी की बात से सहमत हूं। उन्होंने कहा कि हमारे लक्ष्य से पूरे हो गए हैं। हमें कोई बवाल नहीं करना है। देश में दिव्य वातावरण बनाना है, लेकिन जो प्रकरण कोर्ट में लंबित हैं उन्हें रोकने के लिए नहीं बोला। उनकी बात को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

    सवाल- आप तीर्थराज प्रयाग में संगम क्षेत्र में प्रवास कर रहे हैं। महाकुंभ की कैसी भव्यता दिख रही है?

    उत्तर- महाकुंभ की अद्भुत भव्यता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अलौकिक तैयारी की है। यह आस्था का सबसे बड़ा समागम है। आस्था और विश्वास के साथ दुनियाभर के लोग प्रयागराज आ रहे हैं।

    हम संगम पर माटी को माथे से लगाकर यहां के जल में अमृत की आकांक्षा के साथ आए हैं। यहां पर्यटन नहीं, तीर्थाटन है। श्रद्धालु अभिभूत हैं। इस कामना के साथ वह आए हैं। हमारा उद्धार होगा साथ ही पुरखे और पीढ़ियां तर जाएंगी। यहां आकर सबकी कामना पूर्ण होती है।

    सवाल- लोग अगाध श्रद्धा के साथ गंगा स्नान के लिए आते हैं, लेकिन इसकी सफाई को लेकर लोग सचेत नहीं है? आखिर क्यों हमारी सरकार और संस्थाएं गंगा को प्रदूषित होने से बचाने के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने और उन्हें संकल्प दिलाने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रही है?

    जवाब- गंगा को प्रदूषित होने से बचाने का दायित्व सिर्फ सरकार का नहीं है। यह हमारे लिए, इस देश की 140 करोड़ की जनता के लिए जीवनदायिनी मां है। क्या अपनी मां की रक्षा हम दूसरों के भरोसे करते हैं... इसी तरह गंगा की रक्षा और सफाई का दायित्व हर भारतीय पर है।

    खास तौर पर सनातन धर्म मानने वाले हर व्यक्ति को इसकी जिम्मेदारी लेना चाहिए। हमारी कोशिश हो कि हम इसमें गंदगी न डालें। पूजा करने के लिए जो फूल-माला या प्रसाद लेकर आते हैं, उसे गंगा में न बहाएं। पूजा के बाद अपने साथ लेकर जाएं और किसी गड्ढे में विसर्जित करें।

    गंगा में शरीर का मैल धोने के लिए डुबकी न लगाएं, बल्कि मन का मैल साफ करें। गंगा में डुबकी लगाने का तात्पर्य यह होता कि आप मन से निर्मल हो सकें। गंगा में बहुत से जीव-जंतु होते हैं। हमें उनका भी ध्यान रखना चाहिए। इसमें ऐसी कोई चीज न डालें, जो उनके जीवन के लिए घातक हो। कई केमिकल्स ऐसे बहा दिए जाते हैं, जिससे जीव-जंतुओं को नुकसान होता है। यह भी किसी जीव हत्या के पाप से कम नहीं।। सच्चे मन से संकल्प लेने की जरूरत है।

    सवाल- क्या गो माता की उपेक्षा हो रही है? क्या इसे पूरी तरह बंद नहीं किया जाना चाहिए?

    उत्तर- जी हां, गो हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगना चाहिए। उसके लिए सरकार कड़े कदम उठाए। गो-उत्पादों के व्यवसाय से अनेक लोगों को रोजगार मिल सकता है और देश की अर्थव्यवस्था भी ठीक हो सकती है। ब्राजील तो गो उत्पादों के बल पर ही आगे बढ़ रहा है, फिर हम क्यों नहीं।

    किसी भी कीमत पर गौ-हत्या नहीं होनी चाहिए। गो-हत्या के मामले में कड़े से कड़े सजा का प्रविधान होना चाहिए। मैं अपने प्रवचनों के जरिये यह संदेश देता रहता हूं कि गो-रक्षा मानवता की रक्षा है। सरकार के साथ नागरिकों को भी गो-रक्षण, पालन व संवर्धन की दिशा में अपने-अपने स्तर पर काम करना चाहिए।

    सवाल- सत, चित व आनंद स्वरूप से आशय?

    उत्तर- शास्त्रों में परमात्मा को सत, चित व आनंद स्वरूप माना गया है। परमात्मा का अंश स्वरूप होने के कारण जीवात्मा में भी वही दिव्य भगवदीय सामर्थ्य विद्यमान है। स्थायी आनंद इंद्रियों से परे आत्मानुभूति का विषय है। बाह्य जगत के वस्तु पदार्थ अस्थिर और अतृप्ति कारक हैं, इसलिए उनसे स्थायी सुख की अपेक्षा करना व्यर्थ है। हमें यह समझना होगा कि प्रसन्नता पदार्थ सापेक्ष नहीं, अपितु चिंतन एवं विचार सापेक्ष है।

    हम अज्ञान के कारण भौतिकीय उत्कर्ष को ही सुख और समृद्धि का मानक समझते हैं। आनंद जीव का मूल स्वभाव है, इसलिए जब हम शाश्वत आह्लाद की खोज कर रहे हों तो यह समझना आवश्यक है कि वह हमें बाह्य जगत से प्राप्त नहीं होगा।

    श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने तीन अपील की- 

    हम दो-हमारे दो से ऊपर उठें हिंदू

    हिंदुओं के कम बच्चे पैदा करने से पारिवारिक स्वरूप बिगड़ रहा है। चाचा, ताऊ, बुआ और मौसी जैसे पारिवारिक रिश्ते-नाते समाप्त हो रहे हैं। इसका कुप्रभाव यह है कि वृद्धा अवस्था में लोगों को वृद्धा आश्रम में डाला जा रहा है। अब हमें दो-हमारे दो की नीति से ऊपर उठने की जरूरत है। हमारे पास संसाधनों की कमी नहीं है। इस धरती पर बड़े रिसोर्सेस हैं। हिंदू वंश और परिवार की वृद्धि करें।

    संस्कृत भाषा का संरक्षण जरूरी

    देववाणी संस्कृत सबसे प्राचीन भाषा है। जो समस्त भाषाओं की जननी है। इसका संरक्षण जरूरी है। संतजन संस्कृत व वेद विद्यालयों का संचालन कर रहे हैं। सरकार से अपेक्षा है कि वह संस्कृत विद्यालयों की दशा पर ध्यान दे। खाली पद भरे जाएं। विश्वविद्यालयों में नए विभाग बनाकर वेद-पुराण पढ़ाया जाए। इससे व्यक्ति का भाव पवित्र होगा। साथ ही राष्ट्र को सही दिशा मिलेगी।

    मंदिरों का सरकारी अधिग्रहण हो समाप्त

    प्राचीन मंदिरों का अधिग्रहण कष्टकारी है। मंदिरों में किसी प्रकार का सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। मंदिरों का पैदा उसकी देखरेख अथवा गुरुकुल, गोशाला में खर्च होना चाहिए। अधिग्रहण से चढ़ावे के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है। उसे रोकना चाहिए। मेरा सरकार से आग्रह है कि वह मंदिरों का अधिग्रहण खत्म करने को लेकर शीघ्र उचित कदम उठाए। मंदिरों को अविलंब उसके सम्प्रदाय के धर्मगुरुओं को दिया जाय। यह धर्माचार्यों के साथ सनातन धर्मावलंबियों की मांग है, जिसे शीघ्र पूरा करना चाहिए।

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