Mahakumbh 2025: अखाड़ों के संसार में दिगंबर अनी का हर संत सैनिक, एक हाथ में माला, दूसरे में भाला; यही है इनकी पहचान
Mahakumbh 2025 दिगंबर अनी अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय का एक प्रमुख अखाड़ा है। यह लेख अखाड़े के इतिहास परंपराओं अनुष्ठानों और धार्मिक प्रथाओं की जानकारी प् ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, महाकुंभनगर। Mahakumbh 2025 सनातन धर्म मनुष्य को जीवन जीने का संस्कार देता है। व्यवस्थित बनाता है। चाहे साधु हों या गृहस्थ। सबके लिए आचार संहिता है। वह पूरी तरह से व्यवस्थित और तर्कसंगत है। यहां शास्त्र और शस्त्र साथ चलते हैं। इसके लिए अपना दर्शन है।
लोग कहते सुने जाते हैं कि सिविलाइज्ड सोसाइटी की ओर हम अंग्रेजों की राह पकड़कर आए। उन्हें हमारे साधु-संतों की दुनिया एक बार जरूर देखनी चाहिए। बात कर रहे हैं वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख अखाड़ा श्री दिगंबर अनी की पट्टिकाओं की। जिस प्रकार सेना में अलग-अलग रेजीमेंट है। ठीक उसी प्रकार अखाड़े की पट्टिका अलग पहचान व परिपाटी की द्योतक है, जिन्हें सागरिया, उज्जैनिया, हरिद्वारी और बसंतिया के नाम से जानते हैं।
पूरब की दिशा को बसंतिया, उज्जैन की दिशाा को उज्जैनिया, सागर की दिशा को सागरिया व हरिद्वार की दिशा से आकर संन्यास लेने वालों को हरिद्वारी पट्टिका में रखा जाता है। इनका नेतृत्व उसी दिशा के वरिष्ठ संत करते हैं। ये पट्टिकाएं अनुशासन और व्यवस्था की आदर्श स्थिति बनाती हैं।
सनातन धर्म की रक्षा करने वाले शैव और उदासीन की तरह वैष्णव सम्प्रदाय के अखाड़ों का गौरवशाली इतिहास है। वैष्णव संतों ने मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक से मुकाबला करके हजारों संतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर धर्म की रक्षा की। वैष्णव सम्प्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़े हैं। जिन्हें श्री निर्मोही अनी, श्रीनिर्वाणी अनी और श्री दिगंबर अनी अखाड़ा कहते हैं।
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इन अखाड़ों के 18 उप अखाड़े भी हैं, जिन्हें उनकी शाखाएं कहा जाता है। इसमें निर्मोही की नौ, निर्वाणी की सात और दिगंबर अनी की दो उप शाखाएं हैं। दिगंबर अनी अखाड़े की स्थापना 1475 ईस्वी में हुई। बालानंदाचार्य अखाड़े के संस्थापक हैं। स्वामी भावानंदाचार्य, अनुभवनंदाचार्य, बल्लभानंदाचार्य, श्रीब्रह्मानंदाचार्य ने इस सम्प्रदाय का विस्तार किया।

Prayagraj Maha Kumbh 2025 की तैयारी चल रही है। संगम की रेती पर अखाड़ो और संत-महात्माओं का छावनी प्रवेश का क्रम चल रहा है। मंगलवार को महाकुंभ मेला क्षेत्र में ड्रोन कैमरे से इस तरह नजर आया तंबुओं का नगर। मुकेश कनौजिया
धर्म की रक्षा के संतों को एक हाथ में माला और एक में भाला लेकर चलने की शिक्षा दी गई। इसका केंद्र अयोध्या बना। अखाड़े से जुड़े संतों को युद्ध लड़ने का कौशल सिखाया गया। उस दौर में युद्ध करने के लिए जाने वाले संतों के समूह को जमात व झुंडी कहा जाता था।
त्रिपुंड है पहचान
दिगंबर अनी अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़ों में से एक है। अपने सम्प्रदाय का यह बड़ा अखाड़ा माना जाता है। इसके संत सफेद वस्त्र धारण करते हैं, माथे पर उर्ध्व त्रिपुंड (तिलक) लगाते हैं। त्रिपुंड त्रिशूल के आकार का तिलक होता है। गले में कंठी माला और जटा रखते हैं। यह पहचान इन्हें शैव (संन्यासी) संप्रदाय के साधुओं से अलग करती है।
वैष्णव संत हाथ में चिमटा, फरसा व त्रिशूल लेकर चलते हैं। उक्त अखाड़े के संत भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम और श्रीकृष्ण के उपासक हैं। जिन्हें रामानंदी व श्यामानंदी कहा जाता है। इसके संत रुद्राक्ष की जगह तुलसी की माला धारण करते हैं। इस अखाड़े के संत एक-दूसरे का अभिवादन जय श्रीराम-जय श्रीकृष्ण बोलकर करते हैं। हालांकि ये लोग भगवान शिव समेत अन्य देवी-देवताओं की उपासना भी करते रहते हैं।

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अखाड़ा में है पंचायती व्यवस्था
दिगंबर अनी अखाड़ा का संचालन पंचायती व्यवस्था से होता है। अखाड़े में जगदगुरु, महामंडलेश्वर के अलावा दो श्रीमहंत और दो मंत्री होते हैं।वरिष्ठ श्रीमहंत अखाड़े के अध्यक्ष होते हैं। पांच विद्वान संतों को पंच परमेश्वर बनाया जाता है। पंच परमेश्वर अखाड़े की व्यवस्था संभालते हैं। अखाड़े में किसे संन्यास देना है? कौन महामंडलेश्वर बनेगा? कुंभ-महाकुंभ में होने वाले आयोजनों का निर्णय पंच परमेश्वर लेते हैं।
नए पदाधिकारियों का चुनाव कुंभ-महाकुंभ में किया जाता है। दिगंबर अनी अखाड़ा का देशभर में पांच सौ से अधिक केंद्र हैं। इसमें अयोध्या, चित्रकूट, नासिक, वृंदावन, जगन्नाथपुरी और उज्जैन, हरिद्वार शामिल है।
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आदि जगदगुरु रामानंदाचार्य प्रवर्तक
वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक आदि जगदगुरु रामानंदाचार्य हैं। इनके शिष्य संत कबीर दास, संत रविदास, पद्मावती, संत सुरसरि, संत योगानंद जैसे विद्वान थे। वैष्णव संप्रदाय के संत वैराग्य को अपना मूल लक्ष्य मानते हैं, इसलिए इन्हें वैरागी भी कहा जाता है। वैष्णव संतों के चार संप्रदाय हैं। जिन्हें श्री संप्रदाय या रामानुज संप्रदाय, ब्रह्म संप्रदाय या माधव संप्रदाय, रुद्र संप्रदाय या वल्लभ संप्रदाय और कुमार संप्रदाय या निंबार्क संप्रदाय के रूप में जाना जाता है।
सेवा का प्रकल्प संभालते हैं खालसा
दिगंबर अनी अखाड़ा में खासला संतों का समूह होता है। जो सेवा का प्रकल्प संभालते हैं। संतों व श्रद्धालुओं के लिए भंडारा की व्यवस्था इन्हीं के कंधों पर होती है। अखाड़े का जहां प्रवेश होता है उसके 15 से 20 दिन पहले खालसे पहुंचकर व्यवस्था संभाल लेते हैं, जिससे संतों का समूह आने पर खाने-पीने की समस्या न हो।
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सर्वप्रथम हनुमान जी को कराते हैं स्नान
वैष्णव सम्प्रदाय के संत कुंभ-महाकुंभ के राजसी (शाही) स्नान में सबसे पहले अपने आराध्य हनुमान जी को स्नान कराते हैं। जरी से निर्मित हनुमान जी की प्रतिमा को सबसे आगे ले जाया जाता है। रामानंदी की मूर्ति में हनुमान जी के साथ सूर्यदेव होते हैं। वहीं, श्यामानंदी की मूर्ति में हनुमान जी के साथ गरुण का चित्र अंकित होता है। उन्हें स्नान कराने के बाद संत डुबकी लगाते हैं।
यह है खास
- इष्टदेव: हनुमान जी
- धर्मध्वजा: पंचरंगी (लाल, पीला, हरा, सफेद व काला), उसमें हनुमान जी का चित्र रहता है।
- मुहिम: वैदिक शिक्षा, आयुर्वेद व संस्कृत का प्रचार-प्रसार
- नगर प्रवेश (पेशवाई): आठ जनवरी 2025

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