श्रीराम-निषादराज का मिलन स्थल शृंगवेरपुर, विरासत-विश्वास और विलक्षणता के साक्षी हैं यहां के घाट, एक बार यहां अवश्य आएं
श्रृंगवेरपुर धाम, श्रीराम और निषादराज के मिलन का साक्षी, गंगा के किनारे बसा है। यहां के घाट आस्था, इतिहास और संस्कृति की अनमोल कहानियों से भरे हैं। गऊघाट, पटना घाट, विभांडक घाट जैसे अनेक घाटों पर जीवन और इतिहास की झलक मिलती है। केंद्र एवं प्रदेश सरकार त्रेता युग की स्मृतियों को सहेजने के लिए प्रयासरत है, जिससे नई पीढ़ी अपनी संस्कृति से जुड़ सके।

विरासत, विश्वास और विलक्षणता के साक्षी हैं प्रयागराज स्थित शृंगवेरपुर के घाट। जागरण आर्काइव
अफजल अमीन अंसारी, लालगोपालगंज (प्रयागराज)। गंगा की मंद बहती धारा के किनारे बसे शृंगवेरपुर धाम का वातावर आज भी मानो अतीत की सांसे समेटे बैठा हो। शांत घाटों की सीढ़ियों पर बैठकर जब कोई श्रद्धालु जल को निहारता है, तो उसके भीतर इतिहास की परतें स्वयं खुलने लगती हैं।
वनगमन के दौरान श्रीराम यहां पहुंचे थे
यह वही भूमि है, जहां त्रेता युग में वनगमन करते हुए प्रभु श्रीराम ने गंगा पार करने से पहले निषादराज गुह से मैत्री सूत्र बांधा था। इसलिए यहां के घाट सिर्फ पत्थरों की सीढ़ियां नहीं, बल्कि आस्था और मित्रता की अनूठी मिसाल हैं, जो कालक्रम का साक्ष्य बनकर आज भी यथावत खड़े हैं। गऊघाट, पटना घाट, विभांडक घाट, विद्यार्थी घाट, श्रीराम घाट, राजघाट, रामचौरा और सीताकुंड घाट। हर घाट अपने भीतर ऐसी अनगिनत कहानियां समेटे हुए है, जो किसी ग्रंथ से कम नहीं।
भावनाओं व पौराणिकता की जीवंत विरासत हैं यहां के घाट
श्रीराम के चरणचिह्नों की स्मृति से लेकर निषादराज की उदारता तक, यहां हर घाट भावनाओं और पौराणिकता की जीवित विरासत है। केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा इन विरासतों को सहेजने का नया अध्याय लिखे जाने की तैयारी इस पवित्र धाम को एक बार फिर सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दहलीज पर खड़ा कर चुकी है। गंगा तट का यह शांति-विलसित संसार आज भी श्रद्धालुओं को समय से परे जाकर त्रेता की उस अनुपमेय अनुभूति से जोड़ देता है।
कहीं 35 वर्षों से अखंड संकीर्तन तो कहीं आस्था का संगम
गऊघाट पर कई मंदिर स्थित हैं। विगत 35 वर्ष से जय राम, जय जय राम का अखंड संकीर्तन चल रहा है। हालांकि यहां का घाट उपेक्षा का शिकार है। यहां अधिकारी और प्रभारी का सभी दौरा होता है, जब शारदीय नवरात्र के बाद प्रतिमाएं यहां विसर्जित की जाती हैं। पटना घाट पर क्षेत्रीय स्नानार्थी गंगा स्नान करते हैं। यहां हनुमान जी की प्रसिद्ध मंदिर में मान्यताएं अधिक पूरी होने के चलते श्रद्धालु बजरंगबली का दर्शन करने पहुंचते रहते हैं।
शृंगी ऋषि के पिता के नाम से विभांडक घाट निराला
विभांडक घाट जो श्रृंगी ऋषि के पिता ऋषि विभांडक के नाम से बना है। जिसे पिपरी घाट के नाम से भी जाना जाता है। यहां अड़गड़ानंद महराज का आश्रम स्थित है। इस घाट से थोड़ी दूर पर विद्यार्थी घाट स्थित है। जहां शृंगी ऋषि वेद पाठशाला में वेद बटुकों में ज्ञान बांटते थे। इस घाट पर विद्यार्थी स्नान ध्यान करते थे। इसी से सटे श्रीराम घाट को मुख्य घाट से जाना जा रहा है। केंद्र एवं प्रदेश सरकार ने इस घाट को सजाने संवारने के लिए विकास को गति दी है। जो ग्रामीण जीवन और आस्था का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
राजघाट स्थित है निषादराज का किला
इस घाट से पूर्व दिशा में राजघाट स्थित है। जहां निषादराज का किला है। यहां राजघराना स्नान करता था। इसके पूर्व दिशा में थोड़ी दूर पर रामचौरा घाट है। जहां प्रभु श्री राम के चौर करने की बात बयान की जाती है। फिर सीताकुंड घाट जो अब भैरव घाट के नाम से प्रसिद्ध है। इसका संबंध शृंगवेरपुर के रक्षक देवता भैरवनाथ से जोड़ा जाता है। यहां प्रतिवर्ष भैरव अष्टमी पर विशेष पूजन-अर्चन का आयोजन होता है।
संरक्षण होगा तो संस्कृति से जुड़ेगी नई पीढ़ी
शृंगवेरपुर धाम के इन घाटों की सुंदरता गंगा के तट पर बसे शांत वातावरण में और निखर उठती है। राष्ट्रीय रामायण मेला महामंत्री उमेश चंद द्विवेदी ने बताया कि श्रद्धालु और पर्यटक यहां आकर न केवल दर्शन-पूजन करते हैं। बल्कि त्रेता युग की पवित्र स्मृतियों में डूब जाते हैं। स्वामी नारायणाचार्य शांडिल्य महाराज का कहना है कि ये घाट न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इनके संरक्षण से आने वाली पीढ़ियों को भारतीय संस्कृति की जड़ों से जोड़ना संभव होगा।
घाटों के समुचित विकास की आवश्यकता
जय श्री राम सेवा समिति अध्यक्ष संजय तिवारी ने बताया कि यदि इन घाटों का समुचित विकास और संरक्षण किया जाए, तो शृंगवेरपुर धाम एक बार फिर सांस्कृतिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन जाएगा। तीर्थ पुरोहित समाज अध्यक्ष काली सहायक त्रिपाठी ने बताया कि यहां की ऐतिहासिक भूमि आज भी भक्तों और इतिहास प्रेमियों को अपने आकर्षण से खींचती है। श्रद्धालु और पर्यटकों का यहां दिन भर जमावड़ा रहता है।
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