RSS के काशी प्रांत की पृष्ठभूमि से निकले दो सरसंघ चालक, गोलवलकर 32 वर्ष 349 दिन व रज्जू भैया 6 वर्ष तक रहे संघ प्रमुख
विजयदशमी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर लिए हैं। संगठन को अब तक छह सर संघ चालक मिले हैं जिनमें काशी प्रांत से दो हैं। माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षक थे। वे 32 वर्ष तक संघ प्रमुख रहे। रज्जू भैया इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शिक्षक थे। उन्होंने छह वर्ष तक यह दायित्व निभाया।

अमलेन्दु त्रिपाठी, प्रयागराज। विजयदशमी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर लिए। संगठन को अब तक छह सर संघ चालक मिले हैं। यह बताता है कि संघ में कितना मतैक्य है। वह अपने लक्ष्य के प्रति स्पष्ट है। निश्चित रूप से संगठन में सर्वोपरि ध्वज है, व्यक्ति नहीं, फिर भी नेतृत्व की बात करें तो काशी प्रांत से दो सर संघ चालक मिले हैं। इसमें एक की कर्मस्थली प्रयागराज तो दूसरे की काशी रही है।
27 सितंबर 1925 को नागपुर से डा. केशव बलिराम हेडगेवार ने 25 स्वयंसेवकों के साथ जो सफर शुरू किया वह देश ही नहीं विदेश तक विस्तारित हो चुका है। कुल 83,139 शाखाएं देश में लग रही हैं। काशी प्रांत में यह संख्या 3,100 है।
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प्रथम सरसंघ चालक डा. हेडगेवार रहे। मूल रूप से वह महाराष्ट्र के नागपुर के थे। उनका कार्यकाल 21 जून 1940 तक रहा अर्थात वह 14 वर्ष 268 दिन तक पद पर रहे। दूसरे सरसंघ चालक के रूप में माधव राव सदाशिवराव गोलवलकर ने दायित्व संभाला। वह महाराष्ट्र के रामटेक के रहने वाले थे लेकिन उनकी कर्म भूमि काशी क्षेत्र बनी।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बीएससी, एमएससी की पढ़ाई कर यहीं प्राणि विज्ञान के शिक्षक बने। छात्र उन्हें गुरु जी कहते थे। यही वजह है कि पूरे जीवन उन्हें सभी ने गुरुजी कहकर पुकारा। बाद में 1937 में नौकरी छोड कर संघ कार्य के लिए नागपुर गए। 21 जून 1940 से पांच जून 1973 तक सर संघ चालक के रूप में सक्रिय रहे। कुल 32 वर्ष 349 दिन तक संघ प्रमुख रहे।
तीसरे संघ प्रमुख के रूप में मधुकर दत्तात्रेय देवरस ने कार्यभार संभाला वे भी नागपुर से थे। पांच जून 1973 से 11 मार्च 1994 अर्थात 20 वर्ष 279 दिन संघ प्रमुख रहे। इसके बाद इस पद पर काशी प्रांत की पृष्टभूमि वाले राजेंद्र सिंह रज्जू भैया आए। जन्म उनका बुलंदशहर में हुआ लेकिन शिक्षा दीक्षा प्रयागराज में हुई।
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यहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के शिक्षक बने। पिता चीफ इंजीनियर बलवीर सिंह ने सिविल लाइन में आनंदा आश्रम के नाम से घर बनाया परिवार के साथ रहे। बाद में संघ से जुड़ाव हुआ तो मां भारती के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। सर संघ चालक के रूप में 11 मार्च 1994 से 10 मार्च 2000 तक सक्रिय रहे। कुल छह वर्ष इस दायित्व को निभाया।
पांचवें सर संघ चालक के रूप में कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन ने दायित्व संभाला वे मूलत: रायपुर छत्तीसगढ़ से थे। दस मार्च 2000 से 21 मार्च 2009 तक अर्थात नौ वर्ष 11 दिनों तक सर संघ चालक रहे। इसे बाद वर्तमान सरसंघ चालक डा. मोहन भागवत ने पद संभाला वह भी महाराष्ट्र के चंद्रपुर से हैं।
विजयदशमी पर शस्त्र पूजन के दौरान रज्जू भैया ने अपनी विदेशी राइफल संघ के तत्कालीन प्रमुख कार्यकर्ता छिवैया पांडेपुर निवासी शारदा प्रसाद त्रिपाठी को दे दी थी। वह आज भी उनके पुत्र डा. मुरारजी त्रिपाठी के पास सुरक्षित है। वह बताते हैं कि रज्जू भैया ने संघ कार्य के लिए नौकरी छोड़ी, घर बार और मकान तक संगठन को समर्पित कर दिया। राइफल देने की वजह यह रही कि वीरों की परंपरा आगे बढ़ती रहे। विजय दशमी पर उसका पूजन भी होता रहे।
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