अब नहीं पड़ेगी X-Ray की जरूरत! हड्डी कितनी जुड़ी... बताएगा सेंसर, वैज्ञानिकों ने तैयार की खास डिवाइस
अब टूटी हड्डी के जुड़ने का पता लगाने के लिए बार-बार एक्स-रे की जरूरत नहीं पड़ेगी। मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MNIT) प्रयागराज और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) लखनऊ के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक अत्याधुनिक सेंसिंग डिवाइस विकसित की है। यह डिवाइस बिना एक्सरे के ही बताएगी कि टूटी हुई हड्डी कितनी जुड़ चुकी है। इस डिवाइस के इस्तेमाल से मरीजों को बार-बार एक्सरे कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

मृत्युंजय मिश्र, प्रयागराज। दुर्घटना के कारण टूटी हड्डियों को जोड़ने के लिए आवश्यक इलाज के तरीके में अब एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MNIT), प्रयागराज और किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू), लखनऊ के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक अत्याधुनिक सेंसिंग डिवाइस विकसित की है।
यह डिवाइस बिना एक्सरे के यह बताएगी कि टूटी हुई हड्डी कितनी जुड़ चुकी है। इस डिवाइस के इस्तेमाल से मरीजों को बार-बार एक्सरे कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिससे न केवल समय और पैसा बचेगा, बल्कि रेडिएशन से होने वाले दुष्प्रभावों से भी राहत मिलेगी।
फिलहाल इस डिवाइस का परीक्षण प्रयोगशाला स्तर पर सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। भविष्य में इसका व्यावसायिक उत्पादन कर अस्पतालों में उपयोग की योजना है।
यह सेंसर विशेष रूप से उन मरीजों के लिए उपयोगी होगा, जिनकी हड्डियां दुर्घटना या अन्य कारणों से टूट जाती हैं और जिनके इलाज में रिंग फिक्सेटर डिवाइस या लिंब रिकन्सट्रक्शन डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर ऐसी स्थिति में यह जानने के लिए कि हड्डी कितनी जुड़ गई है, बार-बार एक्सरे कराना पड़ता है।
लेकिन अब सर्जरी के समय ही यह सेंसर हड्डी जोड़ने वाली राड या फिक्सेटर पर लगाया जाएगा, जो समय-समय पर यह जानकारी देगा कि हड्डी की स्थिति क्या है।
सेंसिंग डिवाइस का प्रोटोटाइप। सौ. विज्ञानी
यह सेंसर आप्टिकल फाइबर तकनीक पर आधारित है, जो पूरी तरह से इलेक्ट्रिकल रूप से निष्क्रिय होता है और शरीर में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं करता। अब इसे वास्तविक मरीजों पर आजमाने की तैयारी की जा रही है। डिवाइस पेटेंट कराने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है।
दो वर्ष में हुई तैयार
इस परियोजना पर कार्य 2023 में शुरू हुआ था, जब इसे भारत सरकार के साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (सर्ब-एनईआरएफ) से स्वीकृति और आर्थिक सहायता प्राप्त हुई।
एमएनएनआइटी के अप्लाइड मैकेनिक्स विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ अभिषेक तिवारी, ईसीई विभाग के प्रोफेसर योगेंद्र कुमार प्रजापति, केजीएमयू के अस्थि शल्य चिकित्सक डॉ रविंद्र मोहन और शोध छात्रा अर्चना व ऋषभ सिंह इस परियोजना के मुख्य योगदानकर्ता हैं।
वास्तविक समय में डेटा, बिना बार-बार डॉक्टर के पास जाए
इस सेंसर की सबसे खास बात यह है कि इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और रियल टाइम डेटा ट्रांसमिशन से सुसज्जित किया गया है। डॉक्टर को किसी भी समय, कहीं से भी मरीज की हड्डी जुड़ने की सटीक जानकारी प्राप्त हो सकेगी। इससे न केवल इलाज अधिक प्रभावी होगा, बल्कि मरीज को बार-बार अस्पताल जाने की आवश्यकता भी नहीं होगी।
मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में अप्लाइड मैकेनिक्स विभाग में सहायक प्रोफेसर डा. अभिषेक तिवारी। जागरण
मुख्य अनुसंधानकर्ता डॉ अभिषेक तिवारी के अनुसार, “हर मरीज की हड्डी जुड़ने की गति अलग होती है। जैसे मधुमेह से ग्रस्त रोगियों में यह प्रक्रिया धीमी होती है और युवाओं तेज। यह सेंसर डॉक्टर को यह बताने में मदद करेगा कि फिक्सेटर कब हटाना है और कब नहीं।
एक्सरे से राहत और सटीक उपचार
अब तक मरीजों को हड्डी की स्थिति जानने के लिए बार-बार एक्सरे कराना पड़ता था, जो न केवल खर्चीला होता था बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो सकता था। कई बार हड्डी के पूरी तरह ना जुड़ने पर भी फिक्सेटर हटा लिया जाता था, जिससे मरीज को दोबारा सर्जरी या अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ता था।
डॉ तिवारी कहते हैं कि आमतौर पर एक्सरे की सीमाएं होती हैं और कई बार पूरी जानकारी नहीं मिल पाती, जिससे इलाज में जटिलताएं बढ़ जाती हैं। इससे डॉक्टर यह निर्णय ले सकेंगे कि हड्डी कितनी जुड़ चुकी है और किस स्तर पर उपचार को आगे बढ़ाना है।
लगभग दो वर्षों के प्रयास के बाद सेंसिंग डिवाइस को प्रयोगशाला स्तर पर विकसित कर उसका परीक्षण भी सफलतापूर्वक पूरा किया जा चुका है। अब इसे केजीएमयू के सहयोग से क्लीनिकल ट्रायल के चरण में लाया जा रहा है, जहां वास्तविक मरीजों पर इसका परीक्षण किया जाएगा।
- डॉ अभिषेक तिवारी, मुख्य अनुसंधानकर्ता
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